Monday, June 23, 2025
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जेलों में नरक से भी बदतर है जीवन कैदियों का

 

 

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भारतीय जेलों की चरमराती व्यवस्था किसी से छुपी नहीं है। जेलों में बंद कैदियों का हाल क्या है? शायद आज तक किसी ने जानने की कोशिश ही नहीं की। जेलों में बंद कैदी किस प्रकार से अपना जीवन जीते हैं, यह उनसे बेहतर कोई नहीं जानता।

यहां आराम से बैठने और लेटने की जगह मिलना सौभाग्य की बात है लेकिन भर पेट भोजन मिलना स्वप्न पूरा होने के समान है। यदि कोई कैदी बीमार पड़ जाए तो उसका भगवान ही मालिक है। यहां जो भी व्यवस्थायें कैदियों के लिये उपलब्ध की जाती हैं, उनका उपयोग कोई और ही करता है।

जेलों के अंदर बिगड़ती अर्थव्यवस्था के लिये जेल प्रशासन तो जिम्मेदार है ही, इसके साथ-साथ सरकार का दोष भी कुछ कम नहीं है क्योंकि जेलों में हो रहे अत्याचार इस बात का पूर्ण सबूत हैं कि यहां मानवाधिकारों का हनन पूरी तरह हो रहा है। जेल की चारदीवारी में कैद कैदियों के जख्मों पर कोई मरहम लगाने वाला नहीं है। जेल में जाने वाले को इस तरह का जीवन जीना ही पड़ेगा।

जेल से रिहा हुये महेन्द्र सिंह का कहना है कि आज जेलों में ऊंची पैठ रखने वाले लोग सुखी हैं और वे बड़े आराम से रहते हैं। दूसरी बात कहते हैं कि यहां पैसा हर बात में चलता है, यहां तक कि खाना पीना भी पैसे के बलबूते पर मिलता है। जिन कैदियों के पास पैसा नहीं होता, उन्हें बहुत कष्ट उठाना पड़ता है और उनसे मेहनत वाला काम लिया जाता है। जो लोग पैसे देते हैं, उन्हें हर बात की सुविधा उपलब्ध रहती है। यहां पर ड्यूटी कर रहे कर्मचारी बहुत बुरा बर्ताव करते हैं। यहां तक कि गेट पर ड्यूटी कर रहे कर्मचारी बीड़ी माचिस के अलावा अन्य सभी वस्तुयें ले लेते हैं और अंदर दुगुने और तिगुने दाम में समान बेचते हैं। कैदियों को सामान आसानी से उपलब्ध नहीं होता, इसलिये वे मजबूर होकर खरीदते हैं। इस प्रकार से जेलों में धंधा होता है।

जेल से रिहा दूसरे कैदी रमाकांत सिंह का कहना है कि जेल में पुराने कैदियों की तानाशाही चलती है और अक्सर मार पिटाई भी हुआ करती है। प्रशासन बहुत ही लापरवाह रहता है। कोई भी काम नियम से नहीं होता। सब कुछ पैसे के बलबूते पर होता है। यहां तक कि अगर कोई कैदी बीमार पड़ जाता है तो उसको इलाज बड़ी मुश्किल से उपलब्ध कराया जाता है।

कहते हैं कि जेल में तो ईश्वर के सहारे जीते हैं क्योंकि खाना भी मिलता है लेकिन उल्टा सीधा। दाल मिलती है तो दाल कम और पानी ज्यादा, रोटी मोटी, अधपकी लेकिन इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है पेट की भूख मिटाने के लिए। उल्टा सीधा पेट भर जाता है। कभी कभी तो रोटी इतनी सूखी होती है कि दांतों से काटना मुश्किल पड़ जाता है।

सबसे ज्यादा कष्ट बूढ़े कैदियों को होता है। वे कभी कभी भूखे पेट ही सो जाते हैं। इनका कहना है कि यहां कैदियों से मिलने के लिये उनके परिजन कई दिनों तक चक्कर काटते हैं, तब जाकर कहीं उनसे मुलाकात हो पाती है। उसमें भी पैसा देना पड़ता है। इतनी सब बातों के बावजूद हमारी सरकार ने कभी इन बंद कैदियों का हाल जानने की कोशिश नहीं की। ये लाचार मजबूर कैदी आखिर इंसान ही हैं। इनके साथ ऐसा व्यवहार करना अमानवीय व्यवहार है। ये सजा के लिये जेल भेजे जाते हैं लेकिन इनका हक छीनने का अधिकार किसी को नहीं है।

पुरुषों के अलावा महिलाओं को भी बड़ी कष्टदायी जिंदगी जीनी पड़ती है। जेलों में बंद महिलाओं की स्थिति जेल में बंद पुरुषों से कई मामलों में भिन्न है। छोटे बच्चे के लालन पालन की जिम्मेदारी महिलाओं की होने के कारण उनके जेल में बंद होने पर नवजात शिशुओं की परवरिश की समस्या खड़ी होती है। उनके पास कोई और विकल्प न होने की वजह से इन मासूमों को भी जेल में ही रहना पड़ता है। इस प्रकार बिना कसूर के ये बच्चे भी जेल में बंदी हो जाते हैं।

इससे भी अधिक दुखदायी बात यह है कि जिनके बच्चे बड़े हो जाते हैं और जेल के माहौल से बचाने के लिए वे उनको अपने साथ नहीं रखना चाहती तथा जिनके परिवार वालों ने उन्हें छोड़ दिया, उनके बच्चे लावारिस होकर सड़कों पर अपराधी या अपराधियों के शिकार बन जाते हैं। सरकार को चाहिए कि अगर मां सजा भुगत रही है तो उसमें बच्चे का क्या दोष। कम से कम इन बच्चों के लिए तो जेल के बाहर कोई इंतजाम करना चाहिए। जो बच्चा जेल में ही पलेगा, उसका जीवन क्या होगा? वह सदैव अपराध में ही फंसा रहेगा।

महिलाओं के लिए जेल में कोई विशेष प्रबंध नहीं है। जेल से रिहा हुई एक महिला कैदी द्रोपदी देवी का कहना है कि महिलाओं के लिए जेल नरक से भी बदतर है क्योंकि महिलाओं का यहां बहुत शोषण होता है। उन्हें अपनी इज्जत तक दांव पर लगानी पड़ती है। कभी-कभी गर्भवती महिलायें जेल में आ जाती हैं और ऐसी स्थिति में इनको बहुत परेशानी उठानी पड़ती है। इसके लिए कोई प्रबंध नहीं। भगवान के भरोसे सब कुछ होता है। कई बार बच्चे के जन्म के समय डॉक्टर ही नदारद रहते हैं।

यहां पर महिलाओं को सब कुछ करना पड़ता है। बच्चे के जन्म के बाद मां को अधिक खुराक की आवश्यकता होती है। इनके खान पान में कोई परिवर्तन जेल प्रशासन की ओर से नहीं किया जाता। जेलों में बंद बहुत-सी महिलाओं से छुटकारा पाने के लिए उनके रिश्तेदार पुलिस से मिलीभगत करके महिलाओं को झूठा फंसवा देते हैं। जेलों में महिलाओं की दुर्दशा के लिये जहां एक ओर सरकार जिम्मेदार है, वहीं दूसरी ओर जेल प्रशासन। सरकार जेल मैनुअल में समुचित बदलाव ला रही है पर भ्रष्टाचार के चलते जेल प्रशासन महिलाओं को मौजूदा हकों से भी वंचित रखता है।

आशीष कुमार कटियार


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