Tuesday, April 16, 2024
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निजी नौकरियों में स्थानीय आरक्षण

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31आज बढ़ती बेरोजगारी और लोगों के असंतोष से जूझते हुए कई राज्य जिसमें महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, झारखंड और हरियाणा हाल के दिनों में स्थानीय लोगों के लिए निजी क्षेत्र की नौकरियों को आरक्षित करने की कोशिश की है। जिसकी वजह से उपराष्ट्रवाद, प्रतिस्पर्धा, स्थानीयतावाद, नौकरी में आरक्षण जैसे मुद्दों पर बहस शुरू हो गई है। हाल ही में हरियाणा सरकार एक कानून लाई, जो निजी क्षेत्र की उन नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए कोटा का प्रावधान करता है, जिनमें मासिक वेतन 50,000 रुपये से कम हो। कानून के मुताबिक, यह कोटा शुरुआत में 10 साल तक लागू रहेगा। कानून के दायरे में राज्य में निजी कंपनियां, सोसाइटी, ट्रस्ट, साझेदारी फर्म आएंगे और योग्य लोगों के उपलब्ध नहीं होने की स्थिति में योग्य स्थानीय उम्मीदवारों के प्रशिक्षण का प्रावधान भी किया गया है।

ऐसे प्रयास पहले भी होते रहे है। आंध्र सरकार ने इसी तरह के फैसले लिए थे, लेकिन उसे इसलिए नहीं लागू कर सकी, क्योंकि उसे उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी गई। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य की सरकारी नौकिरयों में स्थानीय लोगों को 100 फीसद आरक्षण देने की घोषणा पिछले ही वर्ष की थी, तो वही वर्ष 2019 में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी मध्य प्रदेश के स्थानीय लोगों के लिए निजी क्षेत्र की नौकरियों में 70 फीसद आरक्षण की घोषणा की थी।

सवाल उठता है कि क्या निजी क्षेत्र की नौकरियों मे ऐसा आरक्षण करना उचित है? क्या ऐसे आरक्षण के प्रावधान करने से निजी निवेश प्रभावित नही होगा? क्या हम रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की तुलना में प्रतिस्पर्धा की बलि तो नही चढ़ा रहे? इन सभी सवालों पर आज विचार करना बहुत जरूरी हो गया है।

भारत को राज्य की सीमाओं मे बाधकर कही हम ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ मिशन का गला तो नही घोंट रहे? हरियाणा सरकार के इस कानून के लागू होने के बाद मान लीजिए कोई निवेशक हरियाणा में उद्योग लगाता है और उसे यह निर्देश दिया जाएगा की आपको 75 फीसद लोगों की भर्ती स्थानीय स्तर से ही करनी होगी, तो क्या निवेशक यह नहीं सोचेगा कि अगर हमें अत्यधिक कार्य कुशल लोग मध्य प्रदेश से मिल रहे हैं तो मै हरियाणा से लेकर अपना निष्पादन प्रभावित क्यों करूं? साथ ही, एक निवेशक के लिए तो पूरा भारत ही खुला हुआ है, ऐसी स्थिति में निवेशक अपना निवेश वहां करेगा जहां उसे प्रतिबंध नहीं बल्कि छूट मिलती हो।

गौरतलब है कि सरकार को कोई निर्णय लेने से पहले यह अवश्य सोचना चाहिए कि क्या ऐसे निर्णय से निवेश तो प्रभावित नही होगा? लेकिन हरियाणा सरकार के इस कानून से निश्चित तौर पर उद्योग जगत हतोत्साहित होगा। उल्लेखनीय है कि हमारे देश में बहुत कम कामगारों के पास सुरक्षित नौकरी है। कामगारों का विशाल बहुमत अनिवार्य रूप से निजी क्षेत्र का हिस्सा है और ऐसे कानूनों से वे श्रमिक बुरी तरह प्रभावित होंगे, जो गरीब हैं।

सर्वविदित है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, झारखंड की एक बड़ी मजदूर आबादी देश के उन प्रदेशों में जाकर रोजगार पाती है, जो औद्योगिक रूप से मजबूत हैं। अगर सभी प्रदेश इसी तरह संरक्षण की नीति अपनाने लगेंगे तो क्या आपको नहीं लगता कि बेरोजगारी का ग्राफ घटने की बजाय बढ़ जाएगा?

आज देश मे बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है, जिस पर हमें ध्यान देने की दरकार है। राज्य स्तर पर नौकरी में संरक्षणवाद की नीति अपनाना एक पक्षीय सही कहा जा सकता है। लेकिन यह भी सोचना होगा कि हरियाणा के लोग भी अन्य प्रदेश में रोजगार के लिए जाते हैं। जैसे ही यह कानून प्रभावी होगा और अन्य प्रदेश के लोगों को हरियाणा से रवाना किया जाएगा, तो क्या यह संभावना नहीं होगी कि जो हरियाणा के लोग अन्य प्रदेश मे काम कर रहे है, उनको भी वहां निकाल दिया जाएगा। यह कानून रोजगार देने नहीं बल्कि निजी क्षेत्र और नागरिकों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।

क्योंकि इससे निजी निवेश और प्रतिस्पर्धा दोनों को जोरदार धक्का लगेगा। गौरतलब है कि निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय लोगों के लिए संरक्षण, संविधान के कई प्रावधानों का उल्लंघन करता है। जिसमें संविधान के अनुच्छेद 15 में कहा गया है कि धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता है। साथ में, अनुच्छेद 19 मे स्पष्ट प्रावधान है कि व्यक्ति को देश में कहीं भी वृत्ति व्यापार कारोबार करने और रोजगार पाने का अधिकार है।

लेकिन आरक्षण के इस कानून के लागू होने के बाद किसी से नहीं छुपा है कि अन्य राज्य के लोग उक्त राज्य में रोजगार से वंचित अवश्य होंगे। हरियाणा के कानून मे कुछ ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जो आज के बदलते भारत के परिदृश्य से उलट चित्र प्रकट करता है। जैसे, कोई युवक नौकरी के लिए योग्य नहीं पाया जाता है तो फर्म उसे रखने के लिए बाध्य नहीं होगी, लेकिन अधिकारी इस प्रक्रिया पर नजर रखेगा और अधिकारी ही रिकॉर्ड जांचने के लिए फर्म में जाएंगे।

क्या आपको नही लगता कि इससे अफसरशाही बढ़ सकती है और हम पुन: इंस्पेक्टर राज की ओर बढ़ चलेंगे? कानून में कुछ ऐसा बदलाव करने की जरूरत है, जिससे एक भारत श्रेष्ठ भारत की छवि भी मजबूत हो और रोजगार के अवसर भी उपलब्ध हो सकें।

इसके लिए कानून में जो वेतन की श्रेणी 50 हजार रखी गई है, उसे घटा कर 20 हजार तक किया जाए। साथ ही, अवधि 10 साल की बजाय 2 साल करना सही हो सकता है। रोजगार देने वालों और चाहने वालों को पोर्टल पर जबरन न लाकर इसके लिए उन्हें प्रेरित करना ज्यादा उचित है।


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