कोरोना वायरस ने जहां पूरी दुनिया में मनुष्यों पर कहर बरपाया, वहीं इस समय एक और ऐसे वायरस का कहर देखा जा रहा है, जो गाय-भैंसों जैसे मवेशियों का काल बन रहा है। अभी तक देशभर में इस वायरस की चपेट में आने से 80 हजार से भी ज्यादा मवेशियों की मौत हो चुकी है और कई राज्यों में लाखों मवेशी इसकी चपेट में हैं, इसीलिए इसे अब महामारी घोषित करने की मांग की जा रही है। यह वायरस है ‘लंपी’, जिसे ‘गांठदार त्वचा रोग वायरस’ भी कहा जाता है और जिसका सबसे ज्यादा कहर राजस्थान में देखा जा रहा है। ग्लोबल अलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्युनाइजेशन के अनुसार, लंपी चर्म रोग ‘गोट पॉक्स’ तथा ‘शीप पॉक्स’ वायरस के परिवार से संबंधित ‘कैपरी पॉक्स’ नामक वायरस के चलते होने वाली एक संक्रामक बीमारी है, जो एक पशु से दूसरे पशु में फैलती है। पशु चिकित्सकों के मुताबिक यह बीमारी मच्छर के काटने और खून चूसने वाले कीड़ों के जरिये मवेशियों को होती है। मच्छर, मक्खी या कीड़े द्वारा संक्रमित गाय को काटने के बाद दूसरी गाय को काटने पर उसमें लंपी वायरस प्रवेश कर जाता है। वैसे लंपी वायरस या लंपी चर्म रोग कोई नई बीमारी नहीं है बल्कि इसका प्रकोप समय-समय पर देखने को मिलता रहा है। देश में 2019 में भी पश्चिम बंगाल तथा उड़ीसा में इसका कहर देखने को मिला था लेकिन तब यह इतना घातक नहीं था परंतु अब इसने अपना वेरिएंट बदल लिया है, इसीलिए यह इतना घातक हो गया है और डेयरी क्षेत्र के लिए चिंता का कारण बना है। इस पर किसी एंटीबायोटिक का असर नहीं हो रहा है और लक्षणों के आधार पर ही पशुओं का उपचार किया जा रहा है। चूंकि यह चेचक जैसी ही बीमारी है, इसलिए कई जगहों पर पशुओं को ‘गोट पॉक्स’ का टीका दिया जा रहा है। राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, दिल्ली सहित कई राज्यों में लाखों मवेशी लंपी की चपेट में आ चुके हैं।
लंपी पशुओं में फैलने वाली एक प्रकार की त्वचा की बीमारी है, जिसमें गाय या भैंस की त्वचा पर गांठें नजर आने लगती है, जिसे एलएसडीवी कहा जाता है। गांठें निकलने के साथ मवेशियों को बुखार आता है, दूध की मात्रा कम हो जाती है और कुछ पशुओं की मौत हो जाती है। पशु चिकित्सकों के अनुसार इसके लक्षण शुरुआत में दिखाई नहीं देते लेकिन आयुर्वेदिक इलाज से इसे ठीक किया जा सकता है। यह वायरस खासतौर पर कमजोर इम्युनिटी वाली गायों को प्रभावित करता है और इस रोग का कोई ठोस इलाज नहीं होने के कारण केवल वैक्सीन के द्वारा ही इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। वैसे पिछले महीने लंपी की रोकथाम और नियंत्रण के लिए हरियाणा के हिसार स्थित राष्ट्रीय घोड़ा अनुसंधान केंद्र तथा उत्तर प्रदेश के बरेली स्थित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान के सहयोग से बनाई गई ‘लंपी प्रोवैकइंड’ नामक एक स्वदेशी वैक्सीन लांच की गई थी, जिसके बारे में दावा किया जा रहा है कि यह सौ फीसदी असरदार है लेकिन जरूरत इस बात की है कि इसे पूरे देश में जल्द से जल्द उपलब्ध कराए जाने की व्यवस्था बनाई जाए।
वर्ल्ड आॅर्गेनाइजेशन फॉर एनिमल हैल्थ (डब्ल्यूओएएच) के मुताबिक इस बीमारी से पशुओं की मृत्यु दर एक से पांच फीसदी तक है। यह वायरस पशुओं के लिए घातक होता है और इससे इंसानों के संक्रमित होने का अब तक कोई मामला सामने नहीं आया है, लेकिन फिर भी विशेषज्ञों की यही सलाह है कि लोगों को संक्रमित पशुओं से थोड़ी दूरी बरतनी चाहिए। इस बीमारी की शुरुआत जाम्बिया से हुई मानी जाती है, जहां से यह दक्षिण अफ्रीका में फैली थी और 2012 में मध्य एशिया होते हुए दक्षिण-पूर्वी यूरोप में भी फैल गई थी। यूरोप में एक टीकाकरण कार्यक्रम के जरिये इसके प्रसार पर काबू पा लिया गया है लेकिन अब यह पश्चिमी तथा केंद्रीय एशिया में फैलने लगी है। पशु चिकित्सकों के मुताबिक यदि गाय की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक है तो वह 15 दिन में ठीक हो जाती है अन्यथा उसके शरीर पर गांठें पड़ जाती है, जो एक माह तक रहती हैं और उसे ठीक होने में काफी समय लगता है।
लंपी वायरस से संक्रमित होने के प्रमुख लक्षणों में गाय-भैंस को बहुत तेज बुखार आना, उनके शरीर पर 10-50 मिलीमीटर गोलाई वाली गांठ निकलना, उनका वजन तेजी से कम होना, उनकी दूध उत्पादन की क्षमता घटना, कमजोरी आना, सुस्त रहना, चबाने या निगलने में परेशानी होने की वजह से खाना बंद करना प्रमुख हैं। विशेषज्ञों के अनुसार संक्रमित पशुओं की नियमित सफाई करें, उनके घावों को साफ रखें, कीटनाशक का प्रयोग करें, मच्छर-मक्खियों को पशुओं से दूर रखने के लिए गंदगी नहीं होने दें और मच्छर भगाने वाली क्वॉयल जैसे संसाधनों का उपयोग करें, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए पशुओं को पौष्टिक आहार खिलाएं, ऐसे पशुओं का कच्चा दूध हरगिज न पीएं, दूध को अच्छी तरह उबालकर ही उपयोग करें ताकि उसमें मौजूद बैक्टीरिया खत्म हो सकें। चूंकि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है, जहां प्रतिवर्ष करीब 21 करोड़ टन दूध का उत्पादन होता है, ऐसे में गाय-भैंसों को लंपी के प्रकोप से बचाने के लिए युद्धस्तर पर प्रयास किए जाने की दरकार है। दरअसल इस बीमारी में पशुओं की दूध उत्पादन क्षमता और गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित होती है।
फिलहाल उम्मीद की जानी चाहिए कि भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा तैयार स्वदेशी टीके के देशभर में तेजी से प्रसार पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा और इसकी मदद से लंपी पर बहुत जल्द काबू पा लिया जाएगा।