जनवाणी फीचर डेस्क
वैदिक सूत्रम चेयरमैन एस्ट्रोलॉजर पंडित प्रमोद गौतम ने शिवरात्रि और महाशिवरात्रि में अंतर के रहस्यमयी तथ्यों के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि यूं तो शिव की उपासना के लिए सप्ताह के सभी दिन अच्छे हैं, फिर भी सोमवार को शिव का प्रतीकात्मक दिन कहा गया है। इस दिन शिव की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। सोमवार चंद्र से जुड़ा हुआ दिन है। शैव पंथ में चंद्र के आधार पर ही सभी व्रत और त्योहार आते हैं। हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि कहते हैं। लेकिन, फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी पर पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है, जिसे बड़े ही हषोर्ल्लास और भक्ति के साथ मनाया जाता है। पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि शिवरात्रि बोधोत्सव है। ऐसा महोत्सव, जिसमें अपना बोध होता है कि हम भी शिव का अंश हैं, उनके संरक्षण में हैं।
माना जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में इसी दिन आधी रात में भगवान शिव का निराकार से साकार रूप में (ब्रह्म से रुद्र के रूप में) अवतरण हुआ था। ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में आदि देव भगवान श्री शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंग रूप में प्रकट हुए।
वैदिक हिन्दू ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि में चंदमा सूर्य के नजदीक होता है। उसी समय जीवन-रूपी चंद्रमा का शिव-रूपी सूर्य के साथ योग-मिलन होता है। इसलिए इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने का विधान है।
प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं। इसलिए इसे महाशिवरात्रि या जलरात्रि भी कहा गया है। इस दिन भगवान शंकर की शादी भी हुई थी। इसलिए रात में शंकर की बारात निकाली जाती है। रात में पूजा कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेल पत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।
पंडित प्रमोद गौतम ने बताया कि सभी शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि, को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य के भीतरी ऊर्जा का प्रवाह प्राकृतिक रूप से ऊपर की और जाती है। यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक ले जाने में मदद करती है।
इस समय का उपयोग करने के लिए इस परंपरा में, हम एक उत्सव मनाते हैं, जो पूरी रात चलता है। पूरी रात मनाए जाने वाले इस उत्सव में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऊर्जाओं के प्राकृतिक प्रवाह को उमड़ने का पूरा अवसर मिले इसके लिए आप अपनी रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए इस दिव्य रात्रि को निरंतर जागते रहने की कोशिश करनी चाहिए और शिवजी के अमोघ महामृत्युंजय मन्त्र का मानसिक जाप पूरी रात्रि अर्थात सुबह 4 बजे तक करते रहें।