देवभाषा संस्कृत में भगवान शिव को साधु या किसी फक्कड़ के रूप में ही देखा गया है। मोह माया से कोसों दूर , हिमाच्छादित कैलाश पर्वत में जिनका निवास है। शंभू भोले ने जिन वस्तुओं को धारण किया है उनमें कहीं भी तो वैभव या सौंदर्य बोध प्रतीत नहीं होता है। शरीर पर राख , जटा-जूट धारी हैं। सर्पों की गले में माला , हाथों और बाजुओं में रुद्राक्ष धारण किए हुए। त्रिनेत्र धारी ( उनका तीसरा नेत्र तभी खुलता है जब शिव रौद्र में होते हैं।) सामान्यत: नेत्र बंद किए ,साधना लीन ही दिखते है भोले नाथ। इसमें में कोई अपवाद नहीं कि भोले बाबा ,साधक की प्रार्थना सबसे पहले सुनते हैं और उसको पूरी भी करते हैं। शिव का हर रूप प्रकृति को ही समर्पित है। शिव को प्रकृति और प्रकृति को शिव पुकारने में कोई भेद नहीं है। शिव की जटाएं पृथ्वी तत्व की,उसमें स्थित गंगा जल तत्व की, कपाल में स्थित तीसरा नेत्र अग्नि तत्व की, विष धारण किए नीलकंठी गला वायुतत्व का और ध्वनि प्रकट करने वाला डमरू आकाश तत्व का प्रतीक है। जीवनदायी यही पंचमहाभूत हैं।यदि पंचतत्व से निर्मित संपूर्ण भौतिक जगत की एक यज्ञ के रूप में परिकल्पना करें तो सभी भौतिक पदार्थ यज्ञ की समिधा होंगे, सूर्य उनको जलाने वाली आग और चंद्रमा उसमें दी जाने वाली आहुति और इस सृष्टि रूपी यज्ञ की प्रक्रिया को संपन्न करने वाले व्यक्ति कहलाएंगे, भगवान शिव। अर्थात शिव के इसी विलक्षण रूप में सृष्टि समाई हुई है।
महाशिवरात्रि का महत्व
महाशिवरात्रि का महत्व सांसारिक और आध्यात्मिक साधकों के लिए भिन्न भिन्न है। आध्यात्मिक साधकों के लिए, यह वह दिन स्थिरता प्राप्त करने का है जैसे भगवान शिव कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो, कैलाश की भाँति स्थिर व अविचल हो गए हो। शिव ज्ञान प्रदान करने वाले प्रथम गुरु हैं जिन्हे आदि गुरु कहना कोई अतिशयोक्ति न होगा। माना जाता है कि ध्यान और साधना के दीर्घकालीन युग का समापन भगवान शिव के स्थिर होने के साथ हुआ। जिसे महाशिवरात्रि कहा गया। साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं। यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो सांसारिक या पारिवारिक साधक के लिए महाशिवरात्रि का महत्व किसी भी दृष्टि से कम नहीं है। सांसारिक लोक में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव के रूप में मनाते हैं। एक गृहस्थ के लिए दूसरे गृहस्थ के विवाह की वर्षगांठ मानना सांसारिक और आध्यात्मिक तत्वों के मिलन के जैसा है। सांसारिक लोक में मग्न शिव भक्त अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में इस पर्व को मनाते हैं। आधुनिक वैज्ञानिक धारणाएं बदल रहीं है , पदार्थ और ऊर्जा के संबंध में परिवर्तन आ रहा है। शून्य में अस्तित्व को खोजा जा रहा है। संपूर्ण ब्रह्मांड और ऐसे लाखो करोड़ों ब्रह्मांडो में ध्वनि और शब्द ऊर्जा की मान्यता को स्वीकार्यता प्राप्त हो रही है। जब कुछ नहीं था तब या ऊर्जा अर्थात शिव था और जब कुछ नहीं होगा तब भी यह ऊर्जा और शिव होगा । शिव अनंत है ।महाशिवारात्रि की रात, व्यक्ति को इसी का अनुभव पाने का अवसर देती है।महाशिवरात्रि भगवान शिव के निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि है। भगवान शिव हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकारों से मुक्त करके सुख , समृद्धि और शान्ति प्रदान करते हैं।
महाशिवरात्रि कब मनाते है।
हर चंद्र मास का चौदहवां दिन अथवा अमावस्या से एक दिन पहले का एक दिन शिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। एक कैलेंडर वर्ष में आने वाली सभी शिवरात्रियों में से, महाशिवरात्रि, को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है, जो फरवरी-मार्च माह में आती है। ऐसी मान्यता है कि खगोलीय दृष्टि से यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है। इस समय का उपयोग कर साधक आध्यात्मिकता के शिखर पर पहुंच सकता है।
महाशिवरात्रि का शुभ मूहर्त और पूजा काल :
हर वर्ष फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। इस वर्ष 8 मार्च को महाशिवरात्रि 8 मार्च को मनाई जाएगी। पंचांग और ज्योतिष्चार्यों के अनुसार, फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 8 मार्च को संध्याकाल 09 बजकर 57 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन यानी 09 मार्च को संध्याकाल 06 बजकर 17 मिनट पर समाप्त होगी। प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। अत: 8 मार्च को महाशिवरात्रि मनाई जाएगी।
महाशिवरात्रि अनुष्ठान विधि :
महाशिवरात्रि के दिन ब्रह्म मूहर्त में उठ , सर्वप्रथम पृथ्वी को स्पर्श कर , उन्हे प्रणाम करें, तदोपरांत नित्यक्रमो से निवृत हो ,यदि नजदीक में कोई नदी या सरोवर हो तो उसमे स्नान किया जा सकता है। संभव न हो तो घर में ही गंगाजल युक्त पानी से स्नान कर सकते है। साफ और श्वेत रंग का नवीन वस्त्र धारण करें, सूर्य देव को जल का अर्घ्य दिया जाता है। घर के पूजा स्थान में एक चौकी पर लाल रंग का नया वस्त्र बिछाकर , उस पर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित कर , कच्चे दूध या गंगाजल से भगवान शिव का अभिषेक किया जाता है।
मंत्रोच्चारण के साथ, विधि-विधान से भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने का विधान है। पूजा में, भगवान शिव को भांग, धतूरा, फल, फूल, मदार के पत्ते, बेल पत्र, नैवेद्य आदि अर्पित करने का विधान है। इसके साथ ही शिव मंत्रो का जाप चलता रहता है। पूजा के अंत में आरती कर सुख-समृद्धि शांति एवं धन वृद्धि की कामना की जाती है। पूरे दिन निराहार रहकर व्रत रखा जाता है। सांयकाल ( प्रदोष काल ) पुन: स्नान-ध्यान कर भगवान शिव की पूजा-उपासना की जाती है। इसके उपरांत कुछ फलाहार किया जाता है। अगले दिन प्रात: काल स्नानादि से निवृत हो , पूजा-पाठ कर व्रत खोला जाता है , यथा सम्भव , यथा शक्ति पात्र ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर , भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। महाशिवरात्रि भगवान शिव के रूप में विद्यमान सम्पूर्ण प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करने का विशेष अवसर है।