रमेश सर्राफ धमोरा |
देश में पिछले एक वर्ष से अधिक समय से लाकडाउन चल रहा है। इस कारण लोगों का घरों से बाहर निकलना कम हो रहा है। कोरोना के दौर में बच्चों के स्कूल भी बंद हैं। छोटे बच्चे भी लंबे समय से अपने घरों में ही कैद होकर रह गए हैं। उनका भी घरों से बाहर निकलना नहीं हो रहा है। लगातार घर पर रहने के कारण बच्चे या तो मोबाइल चलाते हैं या टेलीविजन देखते रहते हैं। इससे बच्चों में चिड़चिड़ापन आ जाता है।
कोरोना के दौर में हमें बुजुर्गों के साथ बच्चों का भी विशेष ध्यान रखना चाहिये। चूंकि बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं और उन पर बातों का असर भी जल्दी होता है। ऐसे में हमें हर संभव बात का प्रयास करना चाहिए कि बच्चों के दिमाग पर ऐसा कोई प्रभाव नहीं पड़े जिससे आगे चलकर उनको परेशानी उठानी पड़े।
सभी अभिभावकों को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि उनके छोटे बच्चों को एकाकीपन महसूस नहीं होने पाए। बड़े शहरों में परिवार छोटे फ्लैटों में रहतें है। इस कारण बच्चों को खेलने के लिए अधिक जगह नहीं मिल पाती है। इसके उपरान्त भी जितनी जगह उपलब्ध हो उसी में इस तरह का प्रयास करना चाहिए कि बच्चे अधिकाधिक समय खेल सकें। जिससे उनके मन की स्थिति अच्छी बनी रहे। अभिभावकों को अपने बच्चों को दिन भर मोबाइल व टेलीविजन के साथ चिपके नहीं रहने देना चाहिए।
अभिभावकों को खुद बच्चों के साथ समय निकालकर खेलना चाहिए। उनका मनोरंजन करना चाहिए। चूंकि छोटे बच्चे अधिकतर उन्ही खेलों को खेलते हैं जो या तो स्कूल में खिलाये जाते हैं या फिर टेलीविजन मोबाइल पर देख कर सीखते हैं। ऐसे में घर के बड़े बुजुर्गों को बच्चों को अपने पुराने समय में खेले जाने वाले खेल भी खिलाने चाहिए। बच्चों को दादी नानी की पुरानी कहानियां सुनानी चाहिएं। इससे बच्चों में पुरानी बातों को जानने की जिज्ञासा बढ़ेगी। जिससे वो व्यस्त भी रह सकेंगें। साथ ही उनका मोबाइल व टेलीविजन से भी संपर्क कम हो जाएगा।
कोरोना के चलते लाकडाउन के दौरान घर में बच्चों के मनपसंद का खाना बनाना चाहिए। खाने में फास्ट फूड के बजाय घरों में बनने वाले पारंपरिक भोजन को अधिक प्राथमिकता देनी चाहिए और बच्चों को उस खाने के गुणों से अवगत करवाते रहना चाहिए। जिससे बच्चों का फास्ट फूड से रुझान कम होकर घरों में बनने वाले देसी लजीज खाने की तरफ झुकाव हो सके।
लॉकडाउन के चलते घर के सभी सदस्य एक साथ घरों में ही रह रहे हैं। ऐसे में बच्चों के साथ दोस्त की तरह से हिल मिल जाना चाहिए। जिससे वह आप से पूरी तरह घुलमिलकर अपने मन की बात साझा कर सकें। इससे लाकडाउन के दौरान बच्चों का मन तो बहला रहेगा ही साथ ही वह आपसे इस कदर घुल मिल जाएंगे की भविष्य में भी वह अपने मन की बात आपको खुल कर कह सकेंगे।
लाकडाउन को एक सुअवसर की तरह उपयोग में ले कर बच्चों व घर के अभिभावकों के बीच जो जनरेशन गैप रहता है। उसको कम करने का यह सबसे अच्छा अवसर है। इसको सकारात्मक उपयोग करना चाहिए। जहां तक हो सके बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार बनाना चाहिए।
छोटे बच्चे अक्सर जिद्दी स्वभाव के होते हैं और अपनी बात हर संभव मनवाने का हर प्रयत्न करते हैं। हमें खेल खेल में उनके जिद्दी स्वभाव को बदलने का प्रयास करना चाहिए। उनके मन में स्वयं के प्रति ऐसा जुड़ाव पैदा करना चाहिए जिससे बच्चा अभिभावकों की बात आसानी से मानने लगे वह जिद्द करना छोड़ दें।