Thursday, January 2, 2025
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मंडी, जहां खरीदार भी इंसान, बिकने वाला भी इंसान

  • पेट की खातिर रोज होता है मोल-भाव, लगती है बोली
  • दिहाड़ी मजदूरों के लिए पूरा जीवन ही चुनौती

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: दिहाड़ी मजदूरों के जीवन का हर दिन संघर्ष और चुनौतियों से घिरा हुआ है। हर नयी सुबह उनके लिए एक नयी चुनौती लेकर आती है। और परिस्थितियां कुछ ऐसी हैं कि जब तक घट में सांस है तब तक इस मजदूर वर्ग को संघर्ष करते रहना पडता है। शहर में कई ऐसे चौक-चौराहे हैं, जो लेबर चौक के नाम से ही जाने जाते हैं और जहां प्रतिदिन सुबह मजदूरों की जैसे कोई मंडी लगती है। जहां खरीदार भी इंसान होता है और बिकने वाली भी इंसान।

कोई नहीं चाहता कि उसे अपनी इस तरह नुमाइश करनी पड़े, लेकिन पेट भरने की मजबूरी में इन्हें ऐसा करना पड़ता है, क्योंकि न तो ये इतने शिक्षित होते हैं कि कोई अन्य नौकरी कर सके। और न ही इनके पास इतनी पूंजी होती है कि जिससे ये कोई व्यव्साय कर सके। न चाहते हुए भी इनके पास इसके अलावा कोई रास्ता नहीं। असंगठित होने के कारण इस क्षेत्र में अनेक समस्याएं इनके सामने आती हैं, लेकिन सबसे बड़ी समस्या नियमित काम का न होना है, काम मिला तो ठीक वरना फिर से अगले दिन का इंतजार शुरू हो जाता है।

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इनका सारा जीवन व परिवार दिहाड़ी मजदूरी पर ही र्निभर करता है। ऐसे ही एक दिहाड़ी मजदूर शयाम से जब बात की तो उसका कहना था कि न तो उनके लिए कोई स्वास्थ्य की परवाह करता है न ही उनके परिवार के भरण पोषण की और न ही उनके बच्चों की शिक्षा की। काम मिला तो ठीक वरना खाने के भी लाले पड़ जाते हैं। उसने कहा कि कभी तो हम भीतर से हताश व निराश होते हैं तो कभी बाहर वाले लोग हमें निराशा व हताशा में धकेल देते हैं।

दिहाड़ी पर काम करने वालों को एक दिन के काम के एवज़ में जहां मजदूर को 450 रुपया तो राज मिस्त्री को 550 रुपया मिलते हैं। लेकिन ये स्थिति हमेशा एक जैसी नहीं रहती। क्योंकि न तो इसका कोई मापदंड़ है और न ही कोई पैमाना कि पैसे कितने बढ़ेंगे और कैसे बढेÞंगे। क्योंकि न तो इनकी कोई यूनियन है और न ही इनके लिए बोलने वाला कोई यूनियन लीडर जो इनकी बात रख सके। कई बार लगातार काम न मिले तो ये लोग जैसे मौके पर जैसे काम मिलता है उसे कर लेते हैं और उसी के हिसाब से इन्हें पैसे दे दिये जाते हैं।

सरकारी योजनाएं आज भी इनसे दूर

कहने को तो सरकार समय-समय पर इन दिहाड़ी मजदूरों के लिए योजनाओं की घोषणा करती रहती हैं, लेकिन शिक्षा व जागरू कता के अभाव में और सरकारी तंत्र के निम्न प्रयासों के कारण ये कभी इनका लाभ पूर्ण रूप से ले ही नहीं पाते। मजदूरों से बात करने पर पता चलता है कि उनके जीवन की सुरक्षा और असमय दुर्घटना की स्थिति से निपटने के लिए उनके पास कोई भी योजना नहीं होती।

स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से रोज होते हैं दो-चार

मजदूरों के पास अगर पेट भरने का कोई हुनर है तो वह है उनका शारारिक परिश्रम और परिश्रम तभी संभव है जब कोई व्यक्ति पूर्ण रूप से स्वस्थ्य रहे, लेकिन इन्हें आये दिन स्वास्थय संबंधी समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। जिसका मूल कारण है इनके रहने की स्थिति। बता दें कि इन दिहाड़ी मजदूरों में एक बड़ी संख्या प्रवासी मजदूरों की भी है। जो रोटी कमाने के लिए बाहर से काम करने के लिए आते हैं जिस कारण से उनके पास रहने के लिए उचित स्थान नहीं होता।

आसपास गंदगी, मच्छर और पौष्टिक खान-पान न होने के कारण ये जल्द ही मौसमी बिमारियों की चपेट में आ जाते हैं। यही कारण है कि सुबह से शाम तक हड्डी तोड़ मेहनत के बावजूद कभी भूख से कभी गर्मी में हैजा से तो कभी कुपोषण और ठंड़ में गर्म कपड़ों के अभाव में अपना स्वास्थ्य तो कभी-कभी जान तक भी गवा देते हैं।

बच्चों को नहीं मिलती उचित शिक्षा

कहने को तो देश में हर व्यक्ति को शिक्षा का अधिकार है, लेकिन इन दिहाड़ी मजदूरों के बच्चे जहां उनके हाथों में किताबे होनी चाहिए वहां उनके हाथों में झाडू, चाय की केतली और सर पर सामर्थ्य से अधिक बोझा लाद दिया जाता है। यही कारण है कि उन्हें न तो उचित शिक्षा मिल पाती है और न ही अच्छा भविष्य।

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