- गांधी, जिन्ना, नेहरू, राजगोपालाचारी और पाक के पहले पीएम लियाकत अली की कई बार आमद
- स्वतंत्रता सेनानियों का रहा था कभी ठिकाना, अब चंद सिक्कों की खातिर अब किया जा रहा खुर्दबुर्द
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: ऐतिहासिक इमारत मुस्तफा महल जो अब कैसल व्यू बना दिया गया है और इसको खुर्दबुर्द कर ग्रांड कैसल व्यू में तब्दील किए जाने पर सेना के आला अफसरों खासतौर से सीईओ और डीईओ प्रशासन जिनके आधीन काम करता है भारत सरकार के बंगलों की जिनके कंधों पर जिम्मेदारी है इस बेशकीमती बिल्डिंग पर ऐसे अफसरों की चुप्पी पर अब पब्लिक भी सवाल पूछ रही है।
ऐसी क्या वजह जो एतिहासिक घटनाक्रमों की गवाह रही आजादी की जंग के इतिहास के गवाह रहे इस महल को क्यों और किस के इशारे पर खुर्दबुर्द किया जा रहा है? इसको बचाने के लिए जनवाणी के प्रयासों के बाद अब कई सामाजिक संगठनों ने भी इसे मुहिम का हिस्सा बनाने की ठान ली है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, नेहरू, राजगोपालाचारी, आचार्य कृपालानी, पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली सरीखे तमाम आजादी के परवाने की मौजूदगी का गवाह जो मुस्ताफा महल (जिसको अब कैसल व्यू के नाम से जाना जाता है) रहा है, उसको खुर्दबुर्द किया जा रहा है।
चंद सिक्कों की खातिर, लेकिन एएसआई के अफसर इससे पूरी तरह से बेखबर हैं। कैंट के वेस्ट एंड रोड स्थित बंगला 210 और 210ए के जिस परिसर में बहुचर्चित लाला किला साजिश कांड की पैरवी की तैयारी की गयी थी। उसके एक बडेÞ हिस्से को विवाह मंडप में तब्दील कर दिया गया है। पूरी दुनिया को मद्य निषेध का नारा देने वाले बापू की मौजूदगी की गवाह जो स्थान रहा है वहां अब शराब की पार्टियां चला करेंगी ऐसी आशंका जतायी जा रही है। यह सब कुछ रकम के लिए किया जा रहा है।
दायर की जा सकती है पीआईएल
मुस्तफा महल केसल व्यू या फिर कहें ग्रांड कैसल व्यू को बचाने के लिए कैंट प्रशासन के आला अफसरों की जिम्मेदारी को लेकर भी सवाल उठाएं जाएंगे। इसको आधार बनाते हुए पीआईएल दायर किए जाने की तैयारी है। यह पीआईएल हाईकोर्ट में दायर की जाएगी। इसको लेकर तमाम साक्ष्य जुटाए जा रहे हैं।
साथ ही वरिष्ठ विधि विशेषज्ञों व पुरातत्व विदों से भी इसको लेकर राय ली जा रही है। पीआईएली में केवल सैन्य प्रशासन ही नहीं बल्कि भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण के अधिकारियोें को भी इसकी जद में लाया जाएगा। पीआईएल दायर होने से सबसे ज्यादा मुसीबत सैन्य प्रशासन के लिए खड़ी हो सकती है।
ये है महल का इतिहास
साल 1803 में मेरठ छावनी वजूद में आ चुकी थी, लेकिन मुस्तफा महल का वजूद 1855-60 के दरमियांन आया। यहां एक खेत हुआ करता था जिसकी मिलकियत मुजफ्फरनगर के रईस लाला जिया लाल के पास थी। बुलंदशहर के गांव दौलतपुर के रहने वाले मोहम्मद इशाक खान जो तत्कालीन अंग्रेजी सरकार में आईसीएस अफसर हुआ करते थे, उन्होंने इस जगह का सौदा लाला जिया लाल से किया। याद रहे कि इशाक खान बाद में नवाब रामपुर के एजुकेशन मंत्री बन गए थे।
महल की तामीर के लिए बंगाल प्रेसीडेंसी ली एनओसी
साल 1878 में इशाक खान ने लाला जिया से जमीन का सौदा किया। नवाब रामपुर के यहां बतौर एजुकेशन मंत्री बनने के बाद उन्होंने इस जगह पर अपने पुरखों की याद में महल बनाने की सोची, लेकिन इसके लिए ब्रिटिश अफसरों की मंजूरी जरूरी थी। मंजूरी के लिए बंगाल प्रेसीडेंसी के गर्वनर जनरल के यहां अर्जी दायर की गयी। तब देश भर में तीन प्रेसीडेंसी हुआ करती थीं बंगाल, मद्रास और बोम्बे। यहां बैठने वाले ब्रिटिश अफसर देश भर की छावनी संचालित किया करते थे। उसके बाद महल की तामीर शुरू की गयी।
दुनिया भर से मंगाई नायाब चीजें
इस महल को सजाने संवारने के लिए दुनिया भर के देशों से नायाब चीजें मंगाई गयीं। दो मंजिला इस महल में एक तहखाना भी है। बताया जाता है कि यह तहखाना ही स्वतंत्रता सेनानियों की मीटिंगों का ठिकाना हुआ करता था। इसके अलावा 60 कमरे इसमें मौजूद हैं।
उस वक्त मेरठ से दिल्ली के दरमियान इससे बढ़िया कोई दूसरी हवेली या महल नहीं था। हालांकि दिल्ली में जरूर एक से एक आलिशान इमारतों की मौजूदगी थी। इसके भरे पूरे गार्डन में सफेद संगमर की मेज, कुर्सियां, महल में एक बड़ी संख्या में लिए मार्बल की डायनिंग टेबल ये तमाम चीजें मौजूद थीं। ये बात अलग है कि वक्त के थपेड़ों ने कुछ चीजें खत्म भी हो गयीं। रही सही कसर अब यहां विवाह मंडप बनाकर पूरी की जा रही है।
इन पर किया जा सकता है गर्व
नवाब इशाक खान ने यह महल अपने दादा मुस्ताफा खान की मेमोरी में बनवाया था। उनके चार बेटे थे जिनमें एक इस्माइल भी थे। जो पंडित नेहरू के साथ इंग्लैंड में बैरिस्टर की पढ़ाई कर रहे थे। दोनों अच्छे दोस्त थे। यह दोस्ती मुल्क की आजादी के बाद भी कायम रही।
नवाब इस्माइल और पंडित नेहरू की दोस्ती की बदौलत ही मुस्तफा महल आजादी की जंग के दौरान गांधी जी, जिन्ना, पंडित नेहरू, राज गोपालाचारी, आजाद पाकिस्तान के अंतरिम प्रधान मंत्री लियाकत अली, मोहम्मत अली, शौकत अली सरीखों का ठिकाना बना था। यहीं आजादी के आंदोलन की रूपरेखा तय करने के लिए कांग्रेस के तमाम नेता जुड़ते थे। साल 1920 में जिन्ना बतौर कांग्रेस अध्यक्ष यहां आए थे। उन्होंने इसके हाल में एक मीटिंग को संबोधित किया था।
लालकिला साजिश केस की पैरवी
लाल किला साजिश केस की पैरवी की तैयारी बैरिस्टर इशाक खान व पंडित नेहरू इसी महल के एक कमरे में बैठकर किया करते थे। उल्लेखनीय है कि नेता जी सुभाष चंद बोस के भारत से चले जाने के बाद उनके तीन जरनलों शाहजनवा, ढिल्लो व जरनल सहगल के खिलाफ अंग्रेजों ने साजिश का केस कर दिया था। वह मुकदमा लाल किले में चला था। बैरिस्टर इशाक खान व पंड़ित नेहरू की मजबूत पैरवी के चलते अंग्रेजी अदालत ने तीनों को बरी कर दिया गया था।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का पद ठुकराया
जानकार बताते हैं कि जब देश का बंटवारा हुआ तो इस महल के मालिक इशाक खान को जिन्ना अपने साथ पाकिस्तान ले जाना चाहते थे। सुना तो यहां तक जाता है कि उन्हें पाकिस्तान के पीएम का पद आफर किया गया था, लेकिन उन्होंने हिन्दुस्तान छोड़ने से इनकार दिया था, लेकिन उनके चारों बेटे जिनमें लियाकत अली थे जो पाकिस्तान के पहले अंतरिक सरकार के प्रधानमंत्री बने थे, जिन्ना के आग्रह को नहीं टाल सके। इशाक के तीन अन्य बेटों में एक पाकिस्तान रिजर्व बैंक के गवर्नर बने जबकि एक बेटा अमेरिका में राजदूत बना। दो अन्य पुत्र भी पाकिस्तान सरकार में अच्छे पदों पर रहे।
इस्माइल डिग्री और इंटर तथा हमियादा स्कूल है देन
नवाब इशाक की पत्नी अशफाक जमानी बेगम बेहद तालीम याफ्ता महिला थीं। लड़कियों की शिक्षा की बड़ी पैरोकार थीं। उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए ही ईस्माई डिग्री व इंटर कालेज के अलावा खैरनगर स्थित हमिदिया कन्या स्कूल की स्थापना करायी।