- आवास विकास परिषद ने रुकवाया था निर्माण, निगम ने फिर से शुरू कराया कार्य
- निगम और आवास विकास परिषद के बीच हाईकोर्ट में भी चल चुका वाद
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: नगर निगम द्वारा शास्त्रीनगर नई सड़क के निकट स्थित भूमि खसरा संख्या-6041 को अपनी बताकर नवरात्र के प्रथम दिन नगर निगम के नए कार्यालय का शिलान्यास किया है। यदि यह भूमि पूर्ण रूप से नगर निगम की संपत्ति हाईकोर्ट एवं शासन के आदेश से निगम की घोषित हो चुकी है तो फिर निर्माण में इतनी जल्दबाजी क्यों। खुद नगरायुक्त पूर्व में निर्माण स्थल पर पहुंचकर दो शिफ्टों में निर्माण करने की चेतावनी दे चुके हैं।
उनकी चेतावनी के बाद निर्माण में तेजी आई तो आवास विकास परिषद की टीम ने निर्माण को पुलिस बल द्वारा रुकवा दिया गया। वहीं, तीसरे पक्ष धर्मपाल जोकि खुद को भूमि का स्वामित्व बता रहा है, उसके द्वारा भी हाईकोर्ट में स्टे के लिए याचिका डाली गई है। जिस पर सुनवाई चल रही है। फिलहाल आवास विकास परिषद के द्वारा लगवाई गई रोक के बाद दोनों पक्षों में आपसी सहमति से निर्माण फिर से शुरू हो गया है।
शास्त्रीनगर नई सड़क के निकट स्थित खसरा संख्या-6041 का पूर्व में कूड़ा आदि डालकर नगर निगम द्वारा कई वर्षों से डंपिंग ग्राउंड के रूप में प्रयोग किया जा रहा था। इस भूमि पर स्वामित्तव को लेकर नगर निगम व आवास विकास परिषद के बीच हाईकोर्ट तक में वाद चला। इस विवादित करीब 300 करोड़ की भूमि पर तीसरे पक्ष धर्मपाल द्वारा भी पूर्व में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया। पूर्व में नगर निगम ने इस भूमि को अपनी बताते हुए शासन को इस पर निगम के नए कार्यालय का निर्माण करने के लिए प्रस्ताव बनाकर भेजा।
जिस पर शासन की तरफ से पं. दीनदयाल नगर विकास योजना के तहत करीब 50 करोड़ के इस प्रोजेक्ट के लिए सरकार स्वीकृत कर दिए। जिसमें प्रथम किस्त के रूप में भी 11 करोड़ रुपये से अधिक की धनराशि जारी कर दी गई। अब सवाल उठता है कि यदि यह भूमि नगर निगम की है तो धर्मपाल ने हाईकोर्ट में स्टे के लिए याचिका दायर क्यों की? यदि यह भूमि पूर्ण रूप से नगर निगम के स्वामित्त में आ चुकी तो आवास विकास परिषद के अधिकारी पुलिस फोर्स लेकर मौके पर पहुंचकर निर्माण कार्य आखिर क्यों रुकवा दिया?
फिलहाल तमाम सवालों के बीच नगर निगम के द्वारा आवास विकास परिषद से बातचीत के बाद फिर से निर्माण कार्य शुरू कर दिया है। इस मामले को हाईकोर्ट में चुनौती देने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश खुराना का कहना है कि निगम ने शासन को गुमराह करके प्रोजेक्ट मंजूर कराया है। इस भूमि का स्वामित्व दोनों में से किसी विभाग के पास नहीं है। इस भूमि का आज तक अवार्ड भी नहीं हुआ है और इसलिए इस अवार्ड की कापी नगर निगम के पास नहीं है। जिन अफसरों को सरकार जिम्मेदार मानती है, उन्होंने सरकार को गुमराह करने का काम किया है।
खसरा संख्या-6041 का कब-कब चला वाद-विवाद
आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश खुराना ने बताया कि 1951 में नगर निगम ने इस जमीन के अधिगृहण की अधिसूचना जारी की थी जिस पर अधिगृहण प्रक्रिया या मुआवजा देने का कोई अभिलेख नगर निगम के पास नहीं है। 26 साल बाद 1977 में आवास विकास ने शास्त्रीनगर योजना के लिए इस जमीन का पुर्नगृहण कर लिया। इस दौरान नगर निगम ने कचरा डालकर इस जमीन पर कब्जा कर लिया। 27 दिसंबर 2017 को हाईकोर्ट ने इस मामले को शासन में भेजा और कहा कि सरकार खुद यह तय करे कि मालिक कौन है, लेकिन इस पर कोई आदेश शासन से अब तक जारी नहीं किया गया।
72 साल बाद इस भूमि पर नगर निगम ने नये कार्यालय का निर्माण शुरू कराया तो फिर से एक बार विवाद का जिन्न बाहर आ गया। लैंडयूज बदलवाये बिना नगर निगम ने निर्माण शुरू कर दिया। जिसमें इस निर्माण का मानचित्र न तो आवास विकास से एप्रूव्ड कराया गया और न ही मेरठ विकास प्राधिकरण से। वहीं नगर निगम के पास जमीन के स्वामित्व का कोई अभिलेख नही है तो शासन से बजट कैसे मंजूर हुआ। फिलहाल तमाम आरोपों प्रत्यारोपों के बीच एक बार फिर निर्माण शुरू हो गया।
नगर निगम के नए कार्यालय भवन निर्माण का कार्य आवास विकास परिषद की टीम द्वारा रुकवाया गया था, वह शुरू करा दिया गया है। इस भूमि पर कोई विवाद नहीं है, निर्माण कार्य तेजी से कराया जा रहा है, हो सकता है, होली से पूर्व प्रथम तल बनकर तैयार हो जागा और कार्यालय वहीं शिफ्ट कर दिया जायेगा। ऊपरी मंजिल का निर्माण धीरे-धीरे जारी रहेगा। -अमित शर्मा, अधिशासी अभियंता निर्माण विभाग नगर निगम।