चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने देश की नौसेना को दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बनाने जो संकल्प लिया था, वह पूरा हो गया है। अमेरिका की ऑफिस ऑफ नेवल इंटेलीजेंस की रिर्पोट पर विश्वास करे तो चीन ने साल 2020 तक समुद्र में 360 से ज्यादा युद्धपोतों की तैनाती कर सबसे बड़ी समद्री ताकत का रूतबा हासिल कर लिया है। साउथ चाइना सी और ईस्ट चाइना सी में अमेरिका के साथ चल रही तनातनी के बीच ऑफिस ऑफ नेवल इंटेलीजेंस द्वारा जारी की गई इस रिपोर्ट ने न केवल अमेरिका बल्कि कई अन्य देशों की नींद उड़ा दी है। साल 2025 तक चीन 400 जंगी जहाज बनाने के लक्ष्य पर आगे बढ़ रहा है। चीन के युद्धपोतों की बढती हुई संख्या को देखकर अब अमेरिका भी अपने युद्धपोतों की संख्या 297 से बढ़ाकर 355 से अधिक करने की मुहिम में जूट गया है। साल 2015 में जब शी जिनपिंग ने अपनी नौसेना को दुनिया की सबसे बड़ी ताकत बनाने का संकल्प लिया था उस वक्त चीनी नौसेना के बेड़े में महज 255 युद्धपोत थे। युद्धपोत और पनडुब्बियों के निर्माण में शी जिनपिंग की रूचि का परिणाम यह निकला कि महज पांच साल में ही चीन अमेरिका को मात देकर आगे निकल गया है।
उसका रक्षा बजट भी पिछले वर्षों से लगातार बढ़ रहा है। साल 2021 के लिए उसने अपने रक्षा बजट के लिए 209 अरब डॉलर का प्रावधान किया है, जो भारत के रक्षा बजट से तीन गुना अधिक है। इतना ही नहीं चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) ने सशस्त्र सेनाओं में भर्ती हेतु देश के युवाओं को आकर्षित करने के लिए वेतन में 40 फीसदी की बढ़ोतरी की है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि चीन जिस गति से अपनी सेना और नौसेना की ताकत बढाने में लगा हुआ है, उसकी वजह क्या है। यह सवाल उस वक्त और अधिक अहम हो जाता है, जबकि कोरोना संकट के बीच दुनिया भर के देशों की अर्थव्यवस्था में गिरावट आई है। ऐसे में रक्षा बजट में इजाफा कर चीन दुनिया को क्या संदेश देना चाहता है।
नि:संदेह चीन की बढती सैन्य ताकत उन देशों के लिए खतरे की घंटी हैं, जिनका चीन के साथ समुद्री विवाद है। चीन साउथ चाइना सी और ईस्ट चाइना सी के बड़े हिस्से पर अपना दावा करता है। इसे लेकर उसका वियतनाम, ताइवान, फिलिपींस, मलेशिया, इंडोनेशिया और ब्रुनेई से विवाद चल रहा है। ताइवान उसकी सूची में सबसे ऊपर है। वह इस द्वीप को हमेशा से अपना कहता आया है और उस पर बलपूर्वक कब्जे की धमकी भी दे चुका है। अमेरिका को भी इस बात का अंदेशा है कि चीन कभी भी ताइवान पर हमला कर सकता है। जापान के साथ भी कुछ द्वीपों को लेकर चीन का विवाद है। वह जापान के नियंत्रण वाले सेंकाकुस द्वीप पर दावा कर रहा है।
इंडोपेसिफिक में भी चीन की सक्रियता बढ रही है। इंडोपेसिफिक में उसे नियंत्रण करने के लिए क्वाड (अमेरिका, जापान, ऑस्टेज्लिया और भारत) लगातार आक्रामक रुख अपना रहा है। अगले कुछ दिनों में क्वाड की शिखर बैठक भी होने वाली है। इस बैठक में सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष उपस्थित रहेंगे और चीन के प्रभाव के खिलाफ लड़ने की रणनीति पर चर्चा करेंगे। ऐसे में चीन अपनी बढ़ती हुई सैन्य क्षमता का उपयोग कई मोर्चों पर करना चाहता है।
प्रथम, वह अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाकर अपने पड़ोसी और शत्रु देशों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। द्वितीय, अपनी बढ़ती सैन्य क्षमता के सहारे वह साउथ चाईना सी और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमेरिका के प्रभाव को सीमित करना चाहता है। तृतीय, भारत के पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चीनी सेनाओं के कदम पीछे खींचने की घटना के बाद चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने खोये हुए रूतबे की फिर से प्राप्त करना चाहता है। चतुर्थ, अमेरिका हमेशा चीन को लोंगटर्म खतरे के तौर पर देखता है।
जो बाइडेन के सत्ता में आने के बाद जिस तरह से उन्होंने क्वाड में रुचि दिखाई है उसे देखते हुए कहा जा सकता है, चीन के प्रति अमेरिका के रुख में कोई बहुत बड़ा परिर्वतन हाल फिलहाल दिखाई नहीं दे रहा है, ऐसे में चीन के लिए यह जरूर हो गया था कि वह अपनी सैन्य क्षमता का प्रदर्शन कर अमेरिका को काउंटर कर सके।
साल 2027 चीन की सेना का शताब्दी वर्ष मनाने जा रहा है। पिछले साल ही चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी ने एक सम्मेलन में साल 2027 तक अपनी सेनाओं को अमेरिका के बराबर की सेना बनाए जाने का संकल्प लिया है। अब चीन जिस गति के साथ अपनी सेना के अत्याधुनिकीकरण और मजबूत करने के एक सूत्री कार्यक्रम पर आगे बढ़ रहा है उसे देखते कहा जा सकता है, अगले कुछ वर्षों में चीन समुद्री युद्ध क्षेत्र की सबसे बड़ी ताकत होगा।
लेकिन, पड़ोसी देशों के प्रति चीनी शासकों का जो नजरिया रहा है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि अमेरिकी नेवी की रिपोर्ट दुनिया के लिए खतरे की घंटी से कम नहीं है। क्योंकि, चीन जिस तरीके से रक्षा क्षेत्र में खर्च कर रहा है, उसकी विस्तारवादी नीति आने वाले समय में विश्व को किसी बड़े संघर्ष की ओर धकेल सकती है।