Friday, January 10, 2025
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राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम: मासूमों की जिंदगी में ला रहा बहार

  • सरकारी खर्चे पर होता है नौनिहालों का इलाज

जनवाणी संवाददाता |

सहारनपुर: केस-1- मुजफ्फराबाद विकास खंड के गांव भोजपुर के रहने वाले अनीस को दो साल पहले बेटी हुई तो पैर जन्म से ही टेढ़े थे। वह चलने में पूरी तरह असमर्थ थी। परिवारिजनों की चिंता इतनी बढ़ गई कि वह बेटी के भविष्य को लेकर परेशान रहने लगे। निजी चिकित्सकों से संपर्क किया तो लाखों का खर्च सुनकर हिम्मत जवाब दे गयी। आखिरकार, अनीस की बेटी अना को राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की टीम ने ही खोज लिया। फिर शुरू हुआ बच्ची के इलाज का उपक्रम। टीम ने अनीस को आश्वस्त किया कि बेटी का पैर ठीक हो जाएगा और एक पाई खर्च नहीं करनी होगी।
पिछले दिनों अना को जिला अस्पताल में दाखिल किया गया। उसका क्लब फुट का आपरेशन किया गया। आपरेशन पूरी तरह सफल रहा। अनीस का एक पैसा भी खर्च नहीं हुआ। अब परिवारिजन खुश हैं। दरअसल, राष्ट्रीय  बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत अना का सरकारी खर्चे पर इलाज कराया गया।

केस-2 -साढ़ोली कदीम के रहने वाले मोहम्मद कादिर के मासूम बेटे को भी जन्म से ही पैरों में दिक्कत थी। कादिर के बेटे मोहम्मद अहमद का पैर भी अना की तरह जन्म से ही टेढ़ा था। करीब दो साल से परिजन परेशान थे। कादिर के परिवार की माली हालत ऐसी न थी कि वह बच्चे का कहीं निजी अस्पताल में आपरेशन करा पाते। आखिरकार,आरबीएसके की टीम ने मोहम्मद अहमद के पिता से संपर्क किया। उन्हें राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम की जानकारी दी। पिछले हफ्ते मोहम्मद अहमद का जिला अस्पताल में क्लब फुट का सफल आपरेशन हुआ। अब बच्चा पूरी तरह स्वस्थ है और चलने लगा है।

केस-3 चिराऊं के बिट्टू की उम्र केवल तीन साल है। वह जन्म से मूक-वधिर था। परिवार वाले इसे लेकर बहुत चिंतित रहने लगे। किसी ने बिट्टू के पिता विशाल राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी। विशाल खुद आरबीएसके दफ्तर गए। वहां बेटे की बीमारी के बारे में बताया। टीम ने गांव जाकर बच्चे को देखा। फिर उसके आपरेशन के लिए परिजनों को राजी किया। बिट्टू का 30 जनवरी 2023 को कानपुर में सफल आपरेशन हुआ। अब बह सुन सकता है और बोलने भी लगा है।

यह तीन उदाहरण मात्र हैं। जनपद में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत तमाम जन्मजात विकारों वाले बच्चों को जीवनदान मिल चुका है। चाहे वह जन्म से मूक-वधिर बच्चे हों, या फिर क्लब फुट अथवा किसी अन्य बीमारी वाले।

वर्जन:-

राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम सन् 2013 से संचालित है। जनपद में आरबीएसके की टीम लगातार सक्रिय रहकर इस तरह के बच्चों का खोजती है और उनका सरकारी खर्चे पर इलाज कराती है।
मोनिका पंवार, प्रोजेक्ट मैनेजर राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम, सहारनपुर।

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