Friday, January 3, 2025
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गली-कूचों में अवैध कॉम्प्लेक्सों पर अगली सुनवाई 12 नवंबर को

  • हाईकोर्ट में आज होनी थी सुनवाई, नहीं आ सका केस का नंबर

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: गली-कूचों में अवैध कॉम्प्लेक्सों पर हाईकोर्ट में अगली सुनवाई 12 नवंबर को होगी। सोमवार को इस मामले में सुनवाई होनी थी, लेकिन आज होने वाले केसों की लिस्टिंग में नंबर 81वां होने की वजह से सुनवाई पर नहीं आ सका। लिस्टिंग के केवल 57 केस सुने जा सके। शहर के अवैध कंप्लैक्सों के मामले में मेरठ विकास प्राधिकरण पर उचित कार्रवाई न करने का आरोप लगाते हुए जनहित याचिका दायर करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट थापर नगर के मिशन कंपाउंड निवासी मनोज चौधरी ने जानकारी दी कि अब इस मामले में अगली सुनवाई 12 नवंबर को होगी। उन्होंने बताया कि सोमवार को मेडा प्रशासन की ओर से इस मामले जवाब दाखिल करना था, लेकिन केस ही सुनवाई पर नहीं आ सका।

मनोज चौधरी की जनहित याचिका में शहर की पुरानी आबादी वाले इलाकों में मकानों को अवैध कॉम्प्लेक्सों में बदल कर वहां तंग गलियों जिनमें से कुछ गलियां तो मुश्किल से दो फीट की हैं, वहां 200-200 दुकानों के बहुमंजिला कॉम्प्लेक्स बनाने का उल्लेख करते हुए इसके लिए मेरठ विकास प्राधिकरण के अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया है। उनका आरोप है कि भूमाफिया प्रवृत्ति के कारोबारियों ने ये अवैध कॉम्प्लेक्स बनाए हैं। इनके खिलाफ जो कार्रवाई की जानी चाहिए थी वह नहीं की गयी। नतीजा यह हुआ कि तमाम पुराने मकान जो तंग गलियों में हैं वहां अवैध कॉम्प्लेक्सों का जाल बिछा दिया गया। ये तमाम अवैध कॉम्प्लेक्स कोई एक दिन में नहीं बनवा दिए गए, बल्कि एक लंबा अरसा इन अवैध निर्माणों में लगा है।

मेडा अफसरों ने कार्रवाई के नाम पर केवल कागजी खानापूर्ति की है। उन्होंने बताया कि मौत के कुंओं की मानिंद इन अवैध कॉम्प्लेक्सों को लेकर उन्होंने मेरठ प्राधिकरण के अफसरों के अलावा जिला प्रशासन के तमाम उच्च पदस्थ अफसरों तक से इनकी शिकायत की है, लेकिन उसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं की गयी। ये तमाम अवैध कॉम्प्लेक्स बडेÞ हादसों को न्योता देते नजर आते हैं। यदि इनमें कभी कोई आग सरीखा हादसा हो गया या कभी भगदड़ मच गयी तो वहां हताहत होने वालों की संख्या इतना ज्यादा होगी कि गिने भी नहीं जा सकेंगे।

मनोज चौधरी का आरोप है कि किसी भी कॉम्प्लेक्स में फायर एनओसी तक नहीं है। फायर एनओसी के बगैर तो कोई भी अवैध कॉम्प्लेक्स बन नहीं सकता। इसके अलावा यहां सबसे बड़ी समस्या पार्किंग की है। तमाम ऐसे अवैध कॉम्प्लेक्स हैं जहां घरों को तोड़कर उन्हें कॉम्प्लेक्स में बन दिया गया। 100-100 दुकानें बना दी गईं, लेकिन इन कॉम्प्लेक्सों में आने वालों के वाहन कहां पार्क होंगे इसको लेकर सभी ने चुप्पी साध ली है।

शहर में ई-रिक्शा की बाढ़ पर हाईकोर्ट में कल होगी सुनवाई

मेरठ: शहर में जगह-जगह लगने वाले यातायात जाम की बड़ी वजह अवैध ई-रिक्शाओं के मुद्दे पर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस की कोर्ट में सुनवाई बुधवार को होगी। इसको लेकर दायर की गई जनहित याचिका पर कोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव व आरटीओ व एसपी टैÑफिक से जवाब मांगा है। शहर में जगह-जगह लगने वाले यातायात जाम की समस्या को लेकर आरटीआई एक्टिविस्ट मिशन कंपाउंड थापर नगर निवासी मनोज चौधरी ने जनहित याचिका दायर की है। उस याचिका पर हाईकोर्ट मेरठ समेत प्रदेश के सभी शहरों में बेतरतीब तरीके से चले रहे हजारों बैटरी रिक्शा को लेकर में जवाब मांग चुकी है।

याचिका में कोर्ट को बताया कि प्रदेश के हजारों गैर रजिस्टर्ड बैटरी रिक्शा दौड़ रहे हैं। खास बात यह कि इनकी न कोई गाइडलाइन है और न ही रूट निर्धारित हैं। मेरठ शहर का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां 35 लाख आबादी में करीब 18 हजार बैटरी रिक्शा रजिस्टर्ड हैं। जबकि हकीकत में 60 हजार से ज्यादा बैटरी रिक्शा वहां बेतरतीब दौड़ रहे हैं। इससे ट्रैफिक व्यवस्था की हालत गंभीर है और लोग परेशान हैं। जनहित याचिका में मांग की गई है कि उचित गाइडलाइन बने इनकी संख्या व इनके रूट और सवारी निर्धारित हों। ई-रिक्शाओं की समस्या से लोगों को राहत दिलाने के लिए टैÑफिक पुलिस काफी प्रयास कर रही है। जोन सिस्टम लागू किया गया है।

स्टीकर लगाए गए हैं, लेकिन अभी भी ई रिक्शाओं की वजह से लगने वाले जाम की मुसीबत से छुटकारे के लिए काफी कुछ करना बाकि है। ई रिक्शाओं की वजह से अक्सर जाम रहने वाले बेगमपुल व हापुड़ स्टैंड चौराहे को नो एंट्री जोन बना दिया गया है। नो एंट्री जोन बन जाने से हापुड़ स्टैंड चौराह और बेगपुल पुल चौराहे पर बड़ी राहत है, लेकिन आसपास के इलाकों के लिए यह व्यवस्था आफत बनी हुई है। वहीं, इस संबंध में एसपी टैÑफिक राघवेन्द्र मिश्रा ने बताया कि शहर को जाम से मुक्त कराने के लिए ई-रिक्शाओं को लेकर गाइड लाइन तय कर दी गई है। काफी काम हुआ है। असर भी नजर आ रहा है। उम्मीद है कि आने वाले समय में बड़ा सुधार दिखाई देगा।

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