यूपी में अब भोंपू से कोलाहल कम होगा। अजान तथा आरती में संतुलन रहेगा। ध्वनि विस्तारित उपकरणों पर पाबंदी लगेगी। नतीजन अफवाहों की खलनायकी भी घटेगी।
शायद पहली बार बिना कोर्ट के हस्तक्षेप के शासकीय स्तर पर ही ध्वनि प्रदूषण को बाधित करने का सम्यक प्रयास हुआ है। गोरखधाम के पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथजी ने यह मुमकिन कर दिखाया है। कारण भी है। योगीजी पर न तो वोट का बेजा दबाव है न मतविषमता का खौफ है मगर प्रश्न उठता है कि इतने वर्षों से यह सुकार्य क्यों नहीं किया जा सका? इससे पूर्व के मुख्यमंत्रीगण हिचकते क्यों रहे? इससे मुस्लिम तुष्टिकरण भी नहीं होता क्योंकि शिया-सुन्नी तो टकराते ही रहे जुलूस और आवाज के मसले पर।
मुख्यमंत्री ने 18 अप्रैल को जारी किये निर्देशों से कई दुविधाओं और भ्रमों का स्पष्ट भी हो गया है। योगीजी ने अफसरों को आदेश दिया कि धार्मिक कार्यक्रम, पूजाकृपाठ तय स्थान पर ही हों। सड़क मार्ग, यातायात बाधित कर कोई धार्मिक आयोजन न हो। अपनी धार्मिक विचारधारा के अनुसार सभी को अपनी उपासना पद्धति को मानने की स्वतंत्रता है। माइक का उपयोग किया जा सकता है लेकिन यह सुनिश्चित हो कि माइक की आवाज उस परिसर से बाहर न आये।
अन्य लोगों को कोई असुविधा नहीं होनी चाहिये। नये स्थानों पर माइक लगाने की अनुमति न दें। कोई शोभायात्र या धार्मिक जुलूस बिना अनुमति के न निकाली जाये। अनुमति देने से पूर्व आयोजक से शान्ति सौहार्द कायम रखने के संबंध में शपथपत्र लिया जाये। अनुमति केवल उन्हीं धार्मिक जुलूसों की दी जाये जो पारंपरिक हों। नये आयोजनों को अनावश्यक अनुमति न दी जाये।
यूपी के इन उच्चस्तरीय शासकीय निर्देशों से भारत के कई राज्यों के लिये मिसाल बन सकती है। कारण यही कि महाराष्ट्र में गणेश चतुर्थी तथा गुजरातियों में नवरात्रि पर गर्बा के कारण अत्यधिक शोर होता है। इसी अनुमति की याचिकाएं उच्चतम न्यायालय कई बार खारिज कर चुका है। शोर शरीर पर बड़ा घातक होता है। इस पृष्ठभूमि में याद रखें कि तुलसी के मानस में उल्लेख है कि हनुमान के गर्जन से रावण की लंका में राक्षसिणियों का गर्भ गिर गया था।
नोबेल पुरस्कार विजेता जर्मन वैज्ञानिक ने कहा भी था कि ध्वनि प्रदूषण इंसान का सबसे खतरनाक शत्रु है। एक अनुमान के अनुसार विश्व में हर साल प्रदूषण से तेरह करोड़ लोग काल कवलित हो जाते हैं। भारत में ही तीस लाख से अधिक।
वस्तुत: ध्वनि प्रदूषण एक किस्म का कचरा है। इसको हटाना चाहिये क्योंकि 125 से से ऊपर वाला डेसिबल कर्णद्यातक होता है, अत: साइलेंसर, वायु स्वच्छीकरण और ध्वनि मापक यंत्र भी आम स्थलों पर लगे। मुसलमानों को कुरान की आयात याद दिलानी होगी, लकुम दीनोकुम, वलीदा दीन। (तुम्हारा मजहब तुम्हारे लिये। हमारा धर्म हमारे लिये।)। शोर दोनों के लिये वर्जित हो।
चन्द वैज्ञानिक पहलुओं पर चर्चा हो।
स्वास्थ्य के पैमाने पर पर्याप्त निद्रा हर प्राणी के लिये आवश्यक है। जैविक जरुरत है। उच्चतम न्यायालय का यह आग्रह है। संदर्भ था कि एकदा न्यायाधीशों ने शिक्षण संस्थानों तथा अस्पतालों से सौ मीटर दूर एक संगीत कार्यक्र म के आयोजन की अनुमति नहीं दी थी। आराम में खलल पड?ा मृत्यु का खतरा सजार्ता है। इसीलिये सर्वोच्च न्यायालय (नवंबर 1998 में) ने कोलकाता के इमामों की याचिका निरस्त कर दी थी।
कोलकाता उच्च न्यायालय के आदेश को निरस्त करने की इमामों की मांग थी जिसमें मस्जिदों के लिये लाउडस्पीकरों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। तब ध्वनि प्रदूषण परिभाषित हुआ था कि जो कानों को सुरीले संगीत स्वर लगने के बजाये अवांछित आवाज में हो। मसलन सुरंग तथा पुल तोड़ने हेतु धमाके की आवाज बड़ी होती है। यह हाइपरटेंशन का कारण होगा मगर संगीत मनोरम होता है। यूं तो सुईपटक सन्नाटा वातावरण हेतु अति उपयोगी तथा लाभकारी है मगर वह संभव नहीं है।
पक्षियों पर भी ध्वनि प्रदूषण का प्रभाव देखा गया है। यूं भी टीवी और मोबाइल टावर के परिणामस्वरुप चिड़ियों की मौत आम बात हो गयी है। दीपावली पर पटाखे या शादी पर गाने बजाने के कारण भी घोंसले तक की हानि होती है। शायद यही कारण था कि दिल्ली चिडियाघर में सारे कर्मचारियों के लिये गत वर्ष के जुलाई से साइकिल पर चलने का नियम बना दिया गया|
ताकि पशुकृपक्षियों को वाहनों के ध्वनि प्रदूषण से बचाया जा सके। जर्मनी के मेक्स प्लांक पक्षी पालन केन्द्र ने तो ट्रैफिक के शोर के कारण जीव जंतुओं की रक्षा का विशिष्ट कार्यक्र म भी बनाया है। मनुष्यों को मिचली, मतली, उबकाई और खिजाऊपन से ग्रसित होने से रोकना जरुरी है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश वीआर कृष्ण अय्यर ने तो संगीत तथा कला को प्रोत्साहित करने तथा निद्रा में विघ्न रोकने हेतु आदेश भी दिया था। इन पर कानून अब बनना चाहिये।
के. विक्र म राव