Wednesday, March 22, 2023
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सर्वश्रेष्ठ का अर्पण

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एक पहुंचे हुए ऋषि अपने शिष्यों के साथ एक मंदिर में रहते थे, जो नगर के मध्य स्थित था। मंदिर में श्रद्धालु आते थे, अपनी-अपनी मनोकामनाएं ईश्वर के सामने रखते और प्रसाद स्वरूप ईश्वर को कुछ अर्पण करते थे। शिष्यों ने ऋषि से प्रश्न किया, ऋषिवर, हमें ईश्वर को क्या अर्पण करना चाहिए? क्या मात्र इच्छा पूर्ति हेतु अर्पण करना आध्यात्मिकता हैं? ऋषि ने कहा, समय उत्तर देगा। शिष्य कुछ समझ नहीं पाए , पर चुप रहे।

एक दिन ऋषि अपने शिष्यों के साथ नगर भ्रमण को गए। शिष्यों ने देखा कि एक दुकान पर एक आदमी कह रहा था की दीपक का घी देना, खाने में प्रयोग नहीं करना है, सस्ता भी चलेगा। आगे बढे तो एक आदमी कह रहा था कि एक हल्की धोती देना, पंतिडत जी को दान करनी है। जब वो मंदिर गए तो वहां उन्हें अद्भुत नजारा देखने को मिला…नगर की राजकुमारी भगवान के आगे अपना मुंडन करवा रही थी।

जब राजकुमारी से पूछा तो उसने कहा, देव, एक नारी के लिए उसके सिर के बाल सबसे अधिक प्रिय होते हैं तो मैंने सोचा की मैं अपने इष्टदेव को वो समर्पित करूं जो मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। जब महात्मा जी मंदिर में गए तो वहां उन्होंने देखा, वो दोनों व्यक्ति जो सबसे सस्ता घी और सस्ती धोती लेकर आए थे, अपनी मांगों की बड़ी सूची भगवान के सामने रख रहे हैं।

तब ऋषि ने अपने शिष्यों से कहा, अतिप्रिय शिष्यों, जो तुम्हारे लिए सबसे अहम हो, जो शायद तुम्हें भी नसीब न हो, जो सर्वश्रेष्ठ हो वही ईश्वर को समर्पित करना और बदले में कुछ मांगना मत। मांगना ही है तो बस निष्काम-भक्ति और निष्काम-सेवा। भले ही थोड़ा ही समर्पित हो पर जो सर्वश्रेष्ठ हो बस वही समर्पित हो।
                                                                                          प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा

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