Thursday, March 28, 2024
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भंवर में आप की नैया

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42 1दिल्ली के आबकारी घोटाले में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया है। सिसोदिया की गिरफ्तारी से आम आदमी पार्टी के भीतर बेचैनी का माहौल है। भले ही आम आदमी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व और कार्यकर्ता इसे राजनीतिक दुराग्रह से प्रेरित कार्रवाई बता रहे हों, लेकिन प्रश्न यह है कि कभी भ्रष्टाचार के खिलाफ एक उम्मीद बनकर उभरी पार्टी के मंत्री व नेता गाहे-बगाहे भ्रष्टाचार के आरोपों में क्यों घिरते नजर आ रहे हैं? पंजाब की आप सरकार के सामने भी ऐसे कई मामले उजागर हुए हैं। दिल्ली के राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर रख रहे राजनीतिक पंडितों का मानना है कि सीबीआई ने सिसौदिया के विरुद्ध काफी अहम दस्तावेज जुटाए हैं और ये भी कि अभी उन पर प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी द्वारा भी शिकंजा कसा जाएगा। सिसौदिया की गिरफ्तारी से यह बात साफ हो गई है कि आप का यह संकट जल्दी ही खत्म नहीं होने जा रहा है। दिल्ली सरकार की आबकारी नीति मंत्री-समूह ने बनाई थी। मुख्यमंत्री केजरीवाल को उसकी जानकारी नहीं होगी या कोई भी हस्तक्षेप नहीं होगा, हम ऐसा मान ही नहीं सकते। जांच से सब कुछ साफ हो जाना चाहिए। ऐसे में बड़ा प्रश्न यह है कि क्या सिसौदिया की गिरफ्तारी की आंच में अरविंद केजरीवाल भी झुलस जाएंगे?

मनीष सिसौदिया को जमानत मिलेगी या वे लंबे समय तक सीबीआई की गिरफ्त में रहेंगे ये सवाल फिलहाल अनिश्चितता के घेरे में है। गत दिवस जैसे ही सर्वोच्च न्यायालय ने जमानत देने से इंकार करते हुए उच्च न्यायालय जाने की सलाह दी है, उसके बाद ही देर शाम उपमुख्यमंत्री के साथ ही बीते 9 महीनों से जेल में बंद मंत्री सत्येंद्र जैन का इस्तीफा स्वीकार किए जाने की खबर आ गई।

हालांकि, कोर्ट से राहत न मिलने के बाद सिसौदिया और मनी लॉड्रिंग मामले में गिरफ्तार सत्येंद्र जैन के त्यागपत्रों के गहरे राजनीतिक निहितार्थ हैं। जिस मजबूती से आम आदमी पार्टी का नेतृत्व व कार्यकर्ता मनीष सिसौदिया के समर्थन में खड़े हुए हैं, उसका मकसद इस मुद्दे के भरपूर राजनीतिक निहितार्थ भी हैं। केवल दिल्ली ही नहीं बल्कि चंडीगढ़, हरियाणा व पंजाब आदि में भी आप के समर्थकों ने सिसौदिया की गिरफ्तारी के खिलाफ आंदोलन किए हैं। कहीं न कहीं आप सिसोदिया को राजनीतिक दुराग्रह से पीड़ित दिखाने का प्रयास कर रही है।

भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन की कोख से जन्मी आम आदमी पार्टी का उदय जिस शानदार अंदाज में हुआ, वह किसी आश्चर्य से कम न था। 2014 की मोदी लहर को महज एक साल के भीतर केजरीवाल के करिश्मे ने रोका वह मामूली बात नहीं थी। हालांकि नगर निगम चुनाव और फिर 2019 के लोकसभा चुनाव में वह कुछ खास न कर पाई, लेकिन उसके बाद विधानसभा चुनाव और हाल ही में हुए नगर निगम के चुनाव में मिली जीत ने दिल्ली को आम आदमी पार्टी का अभेद्य दुर्ग बना दिया।

लेकिन ये बात भी सही है कि भ्रष्टाचार के आरोप लगातार केजरीवाल सरकार पर लगते रहे। उसी के साथ अब पंजाब सरकार के राज में जिस तरह से खालिस्तान समर्थक उग्रवादी तत्व सिर उठाने लगे हैं, उससे भी पार्टी की छवि और क्षमता पर संदेह बढ़ने लगा है। इस सबके कारण न सिर्फ मुख्यमंत्री केजरीवाल बल्कि आम आदमी पार्टी की साख को भी बड़ा धक्का लगा है। कहां तो पंजाब में सरकार बनाने के बाद वह राष्ट्रीय स्तर पर अपने पैर जमाने की कार्ययोजना पर आगे बढ़ रही थी और कहां दिल्ली और पंजाब दोनों में उसकी साख और क्षमता सवालों के घेरे में आ गई है।

राजनीति के जानकारों के अनुसार केजरीवाल राष्ट्रीय नेता बनने की जल्दबाजी के फेर में वही सब करने पर मजबूर हो गए हैं, जो अन्य राजनीतिक दल करते हैं। इसी वजह से पार्टी के संस्थापकों में से अनेक उनका साथ छोड़कर जा चुके हैं। मुख्यमंत्री एवं संजय सिंह जैसे नेताओं की तुलना में मनीष काफी शांत नजर आते हैं। ऐसे में सवाल है कि अपने पास कोई मंत्रालय न रखने का जो निर्णय केजरीवाल ने लिया, उसके पीछे शायद अपनी छवि बनाए रखते हुए मुसीबत आने पर अपने साथियों की बलि देने की सोच ही रही होगी। आम आदमी पार्टी को महीनों से ये अंदेशा था कि सीबीआई उपमुख्यमंत्री के गिरेबान पर हाथ डालेगी। जिस आबकारी नीति को लेकर ये बवाल हुआ, यदि वह सही थी, तब केजरीवाल सरकार ने उसे वापिस क्यों लिया? इस प्रश्न का जवाब न दिया जाना सरकार के अपराध बोध का परिचायक था।

आम आदमी पार्टी को सिसौदिया की गिरफ्तारी पर यूं तो विपक्षी दलों की तरफ से जोरदार समर्थन मिला, लेकिन कांग्रेस इस मामले में भी दुविधा का शिकार होकर विभाजित हो गई। राहुल गांधी तो लंदन में हैं, किंतु अशोक गहलोत, शशि थरूर ने जहां केंद्र सरकार पर तानाशाही का आरोप लगाया वहीं दिल्ली की अलका लांबा और अजय माकन ने इसे भ्रष्टाचार का मामला बताते हुए आम आदमी पार्टी की तीखी आलोचना कर डाली। इस मामले के बाद अरविन्द केजरीवाल की एकला चलो नीति को भी धक्का लग सकता है और बड़ी बात नहीं उनको अपनी ईमानदारी का अहंकार छोड़कर उन्हीं दलों और नेताओं के साथ गठबंधन करना पड़ जाए जो उनके द्वारा जारी भ्रष्ट नेताओं की सूची में शामिल थे।

बहरहाल, आम आदमी पार्टी और मुख्यमंत्री केजरीवाल के लिए मौजूदा स्थिति बहुत ही कठिन है। यदि मनीष भी सत्येंद्र की तरह लंबे समय तक हिरासत में रहे, तब इस्तीफे का दबाव अरविन्द पर भी पड़ेगा। दिल्ली में ये चर्चा भी है कि मुख्यमंत्री स्वयं मनीष सिसौदिया से छुटकारा पाना चाहते थे। सच्चाई जो भी हो लेकिन इस घटनाचक्र से मुख्यमंत्री चाहकर भी भी पाक-साफ नहीं निकल सकेंगे, क्योंकि मनीष सिसौदिया ने भ्रष्टाचार किया हो और अरविंद केजरीवाल को उसका पता न चले ये कोई नहीं मानेगा। ऐसे में यदि सीबीआई के आरोप सही प्रमाणित हो गए, तब आम आदमी पार्टी के लिए ये डूब मरने वाली बात होगी। इससे ये विश्वास और प्रबल हो जाएगा कि आंदोलन से निकली पार्टियां आखिरकार अपने ही अंतर्विरोधों में फंसकर पतन के रास्ते पर चली जाती हैं।

यदि सीबीआई शराब घोटाले में सिसोदिया के खिलाफ पुख्ता सबूत जुटा लेती है, तो आप सरकार की मुसीबतें और बढ़ जाएंगी। दूसरी ओर पार्टी स्तर पर यदि केजरीवाल अन्य राज्यों में सक्रिय भूमिका निभाते रहे तो उसकी एक वजह यह थी कि सिसौदिया राजकाज को बढ़िया ढंग से संभाले हुए थे। वहीं विपक्षी दल व राजनीतिक पंडित कहते हैं कि यदि आप खुद को राजनीतिक दुराग्रह से पीड़ित दर्शा पाती है तो उसे इसका राजनीतिक लाभ मिलेगा। लेकिन यदि आबकारी मामले में गिरफ्तार लोगों के बीच सिसोदिया की संलिप्तता साबित होती है तो भाजपा इसका राजनीतिक लाभ उठा सकती है।


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