- लायन सफारी में अपने रिश्तेदारों के साथ रहेगा शावक
- कानपुर और लखनऊ जू में तेंदुओं की संख्या काफी अधिक
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: राह देखा करोगे सदियों तक छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा। भगवानपुर बांगर के जंगल में मादा तेंदुये से बिछुड़ा दो माह का शावक अब कभी अपनी मां का ममतामयी आंचल हासिल नहीं कर पाएगा। डेढ़ किलो का शावक वन विभाग के आफिस में एक कमरे में उछलकूद कर रहा है जब उसका पेट खाली हो जाता है तब मां की तलाश में गुर्राना शुरु कर देता है।
जब वनकर्मी उसे दूध पिलाने कमरे में घुसता है तब शावक बालहठ करता हुआ पीछे पीछे भागना शुरु कर देता है। कानपुर प्राणि उद्यान, लखनऊ चिड़ियाघर और गोरखपुर चिड़ियाघर में तादाद से ज्यादा तेंदुये होने के कारण शावक को इटावा स्थित लायन सफारी में भेजने की योजना बनाई जा रही है।
तीन दिन तक मां के आंचल का इंतजार करने के बाद शावक का उसकी मां से मिलने की सारी संभावनाओं को दरकिनार करते हुए वन विभाग अपने साथ ले आया है। वन विभाग के एक कमरे में शावक को आशियाना मिल गया है। उस कमरे में प्रवेश करने का अधिकार सिर्फ उन वनकर्मियों को है जो उसको हर तीन घंटे में दूध पिलाने के लिये जाते हैं। डेढ़ किलो का रुई की माफिक शावक पूरे कमरे में चहलकदमी करता रहता है।
जब उसे मां की याद आती है तो मासूमियत दिखाते हुए गुर्राने लगता है। दो रात उसने नई दुनिया में गुजारी है और मादा तेंदुये की आवाज उसे सुनने को नहीं मिल रही। तेंदुआ शेर, बाघ और जैगुअर की तुलना में सबसे छोटा होता है। लेकिन तेंदुए बहुत शक्तिशाली और चतुर जीव है और इनकी एकाग्रता तो लाजवाब होती है। शिकार को पकड़ने की तकनीक और हमला करने की शैली इन्हें एक अव्वल दर्जे का शिकारी बनाती है।
आमतौर पर ये निशाचरी होते हैं। तेंदुए 56 से 60 किमी प्रति घण्टे की रफ़्तार से दौड़ सकते हैं। तेंदुए में शिकार करने की अदभुत क्षमता होती है। तेंदुआ हर रोज औसतन 3.5 किलो तक मांस खाता है। यह 80 किलो वजन तक के शिकार को लेकर पेड़ पर चढ़ जाता है। तेंदुआ स्वभाव से शमीर्ला होता है। यह आत्मरक्षा में कुछ भी कर गुजरता है। तेंदुआ अवसरवादी और बेहतरीन शिकारी होता है।
हिरन तेंदुए का पसंदीदा शिकार होता है। तेंदुआ औसतन 30 से 80 वर्ग किलोमीटर तक के क्षेत्र में विचरण करता है। तेंदुआ शावक जब जन्म लेते है तब उनकी आंखे बंद होती हैजो 4 से 9 के दिनों के उपरांत खुलती है। तेंदुए के शावक जब तीन महीने के हो जाते है तब अपनी मां से शिकार करने के तरके सीखना शुरू कर देते है। तेंदुआ शावक 18 से 24 महीने के होने तक अपनी मां के साथ रहते है।
उसके बाद वह खुद शिकार करने में सक्षम बन जाते है और मां से अलग हो जाते है। जिला वन अधिकारी राजेश कुमार ने बताया कि शावक को चिड़ियाघर भेजने के मामले में शासन स्तर पर बातचीत हुई है। उम्मीद जताई जा रही है कि इटावा लायन सफारी में इसके लिये अलग से बाड़ा बनाया जाएगा और उसकी देखरेख के लिये कर्मचारी की व्यवस्था होगी। फिलहाल वो वनकर्मी को ही मां समझ कर उससे बेबी डॉग मिल्क आसानी से पी रहा है।