Tuesday, March 19, 2024
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भविष्य के लिए उपयोगी है जैविक खेती

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KHETIBADI


NRIPENDRA ABHISHEK NRIPआज तकनीक का दौर है और इसमें विभिन्न प्रकार के तकनीकों के साथ उत्पादन की विधि भी आ चुकी है। कृषि की इन्हीं विधियों में एक है जैविक खेती, जो क प्रदूषित होते संसार के लिए वरदान साबित हो सकता है। आर्गेनिक वर्ल्ड रिपोर्ट 2021 के आधार पर वर्ष 2019 में विश्व का 72.3 मिलियन हेक्टयर क्षेत्र जैविक खेती हेतु उपयोग में लिया गया। जिसमें एशिया का 5.1 मिलियन हेक्टयर क्षेत्र भी शामिल है। भारत में भी पिछले कुछ वर्षों में जैविक खेती से वृद्धि हुई है। भारत मे 2019 में जैविक खेती का क्षेत्र बढ़कर 22,99,222 हेक्टयर हो गया है। हालांकि अब भी यह परंपरागत कृषि क्षेत्र की तुलना में मात्र 1.3 प्रतिशत ही है। भारत मे अभी मध्यप्रदेश महाराष्ट्र और ओड़िशा समेत दर्जन भर राज्यों में जैविक खेती हो रही है। इस समय देश में लगभग 43,38,495 किसान आॅर्गेनिक खेती कर रहे हैं, जिसमें से अकेले 7,73,902 मध्य प्रदेश के हैं।
जैविक खेती क्या है ?

वक़्त के साथ हर चीज में बदलाव आता है। ऐसे ही खेती की तकनीक में भी बदलाव आया है। जैविक खेती हर तरह से हमारे जीवन के लिए फायदेमंद है और यह हमारी प्रकृति को भी हरा भरा रखने में मदद करती है।जैविक खेती फसल उगाने की वह नई तकनीक है जिसमें रासायनिक खादों व कीटनाशकों का प्रयोग करने के बजाय , जैविक खाद , हरी खाद, गोबर खाद , गोबर गैस खाद, केंचुआ खाद का प्रयोग किया जाता है। खेती करने के इस नए तरीके को जैविक खेती का नाम दिया गया है।

जिस दौर में पर्यावरण को लेकर पूरी दुनिया चिंतित है उस दौर में जैविक खेती रसायनों से होने वाले दुष्प्रभाव से पर्यावरण का बचाव करती है। भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि करती है। फसलों की पैदावार में बढ़ोतरी करती है। जैविक खेती विधि द्वारा उगाया गया अनाज उच्च गुणवत्ता लिए हुए होता है जो स्वास्थ्य की दृष्टि से उत्तम होता है।

जैविक खेती का मतलब यह नहीं है कि मानव निर्मित रसायनों का उपयोग नहीं किया जाता है। बल्कि जैविक खेती के कई तरीकों में भी मानव निर्मित उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग फसल उत्पादन में सुधार के लिए नहीं बल्कि मिट्टी की उर्वरता में सुधार के लिए किया जाता है। इसका मतलब है कि ये रसायन मिट्टी में जाते है लेकिन यह हमारे द्वारा खाए जाने वाले भोजन में नहीं जाते है।

हरित क्रांति के समय से बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए एवं आय की दृष्टि से उत्पादन बढ़ाने की जरूरत महसूस होने लगी थी। जिसके लिए अधिक उत्पादन के लिये खेती में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरको एवं कीटनाशक का उपयोग करना पड़ा, जिससे सामान्य व छोटे कृषक के पास कम जोत में अत्यधिक लागत लग रही है और जल, भूमि, वायु और वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है और इसके साथ ही खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो रहे है। इसलिए इस प्रकार की उपरोक्त सभी समस्याओं से निपटने के लिये पिछले कुछ सालों से सरकार भी जैविक खेती की पहल कर रही है।

वर्तमान में काफी फायदेमंद साबित होगा जैविक खेती

जैविक खेती काफी फायदेमंद साबित होगा। इससे भूमि की उर्वरक क्षमता बनी रहती है। और जैविक खादों का प्रयोग करने से मिट्टी की उर्वरक क्षमता की गुणवत्ता में निरन्तर सुधार होता रहता है। यही नहीं बल्कि इसमें सिंचाई की आवश्यकता कम होती है और भूमि की जलधारण क्षमता भी बढ़ती है। जो पहले रासायनिक खादों के प्रयोगों से वातावरण प्रदूषित हो रहा था, जैविक खादों के प्रयोग से वातावरण प्रदूषण रहित रहता है।अनेक बीमारियों से इंसान व पशु , पक्षियों का बचाव होता है। साथ मे फसलों की अच्छी पैदावार तो बढ़ती हो है। जैविक खेती के द्वारा उगाया गया अनाज उच्च गुणवत्ता वाला होता है , जो स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उत्तम होता है। जैविक खेती के द्वारा उगाए गए अनाज का मूल्य भी अधिक होता है जिससे किसान की आमदनी में बढ़ोतरी होती है। यानी कम लागत में अच्छा मुनाफा।

जैसे कि हम देख रहे है कि रासायनिक खाद और कीटनाशक मिट्टी को खराब कर रहे हैं तो ऐसे में इससे निपटने में जैविक खाद बेहद मददगार साबित हो सकता है। भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ाता है और भूमि से पानी का वाष्पीकरण भी कम करता है। इसके साथ ही जैविक खेती से भूमि में नाइट्रोजन स्थिरीकरण बढ़ता है तथा मिट्टी का कटाव भी कम होता है जो कि इस समय की बड़ी समस्या बनती जा रही है। जैविक खेती पर्यावरण की दृष्टि से भी काफी लाभकारी है। इससे भूमि के जल स्तर में भी वृद्धि होती है। मिट्टी , खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है। खाद बनाने के लिए कचरे का उपयोग करने से बीमारियों में भी कमी आती है। फसल उत्पादन की लागत में कमी और आय में वृद्धि होती है।

भारत में क्या है संभावनाएं

जैविक खेती त्वरित रूप से फायदेमंद साबित होने वालों में नहीं है। इसके लिए वक़्त देना पड़ता है। भारत के साथ कुछ अन्य देशों के किसानों के अनुभव बताते हैं कि रासायनिक खेती को तत्काल छोड़कर जैविक खेती अपनाने वाले किसानों को पहले तीन साल तक आर्थिक रूप से घाटा हुआ था, चौथे साल बराबरी का सौदा होता है और फिर पांचवे साल से लाभ मिलना शुरू होता है। अब ऐसे में बहुत सारे किसान शुरूआत में ही खेती की तकनीक बदल लेते है।

भारत में 70 प्रतिशत छोटी जोत वाले सीमित साधन वाले किसान हैं। अभी के समय में इन किसानों के पास पशुओं की संख्या भी तेजी से कम होती जा रही है जिससे जैविक खाद उन्हें घर पर बनाना मुश्किल होता जा रहा है और जैविक खेती के लिए उन्हें जैविक खाद बाजार से खरीदना पड़ता है। वैसे तो जैविक खाद निमार्ताओं की संख्या की दृष्टि से देखें तो भारत में साढ़े पांच लाख जैविक खाद निमार्ता हैं, जो विश्व के जैविक खाद निमार्ताओं के एक तिहाई हैं। किन्तु भारत के 99 प्रतिशत खाद उत्पादक असंगठित लघु क्षेत्र के हैं तथा इनमें से अधिकांश बिना प्रमाणीकरण करवाए जैविक खाद की आपूर्ति करते हैं।

भारत सरकार के द्वारा जैविक खेती को प्रोत्साहित करने हेतु बहुत सी योजनाएं बनाई जा रही हैं, जिनके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत में जैविक खेती का क्षेत्र एवं उत्पादन तेजी से बढ़ा है।आर्गेनिक फार्मिंग एक्शन प्रोग्राम 2017-2020 का उद्देश्य भी जैविक खेती को प्रोत्साहित एवं विकसित कर भारतीय कृषि को नए आयाम में ले जाना है। आज भारत में जैविक खेती में अपना योगदान देने के साथ ही यहाँ 8,35,000 पंजीकृत जैविक खेती के उत्पादक हो गए है।

वर्तमान खेती से उत्पन्न समस्याएं क्या है?

हाल ही में आस्ट्रेलिया में दुनिया भर के वैज्ञानिकों की एक बैठक हुई थी। इन वैज्ञानिकों का कहना था कि अनुमान के अनुसार 75 अरब टन मिट्टी प्रत्येक वर्ष बेकार हो रही है। इसके कारण 80 प्रतिशत दुनिया की खेती की जमीन की उपजाऊ शक्ति पर असर पड़ रहा है। सिडनी के विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने एक व्यापक खोज की जिसके अनुसार चीन की धरती कुदरती खाद के साधनों जैसे गोबर, गोमूत्र, पेड़ों के गिरे पत्ते इत्यादि से ठीक न होने के कारण सबसे अधिक खराब हो रही है। ऐसे ही भारत की धरती भी जहां रासायनिक खादों का अधिक प्रयोग है, यह खराबी चीन के मुकाबले बहुत कम है परंतु फिर भी चिंताजनक है। यूरोपीय देशों में धरती की खराबी चीन के मुकाबले एक तिहाई है क्योंकि वहां रासायनिक खादों का उपयोग बहुत कम हो रहा है, अमेरिका और आस्ट्रेलिया में सबसे कम।

उपर्युक्त तथ्यों से स्पस्ट है कि समस्या दिन पर दिन विकट होती जा रही है। ऐसे में इसका एकमात्र समाधान यह है कि भारत की परंपरागत धरती पोषण की नीति को अपनाकर गोबर, गोमूत्र और पत्ते की पौष्टिक खाद का प्रयोग किया जाए । वैसे भी भारत की लंबी संस्कृति रही है। गोबर इत्यादि की खाद से किसान युगों-युगों से अपनी धरती की उपज बढ़ा रहे हैं। इसका व्यापक असर तब दिखेगा जब सरकार हानिकारक रासायनिक खाद का आयात बंद कर दे और किसानों को देशी खाद से खेती करने को प्रोत्साहित करे। शुरूआत के कुछ सालों तक दिक्कतें तो आएगी लेकिन सरकार किसानों के साथ खड़ी होगी तो इसे अमलीजामा पहनाया जा सकता है। ऐसा न करने से भारत की खेती का वही हाल होगा जो चीन की खेती का हो रहा है।


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