Home संवाद सप्तरंग बर्हिमुखी दृष्टि

बर्हिमुखी दृष्टि

बर्हिमुखी दृष्टि

 

Samvad 8

 


किसी गांव में एक बुढ़िया रात के अंधेरे में अपनी झोपडी के बहार कुछ खोज रही थी। तभी गांव के ही एक व्यक्ति की नजर उस पर पड़ी , अम्मा! इतनी रात में रोड लाइट के नीचे क्या ढूंढ रही हो? व्यक्ति ने पूछा। कुछ नहीं! मेरी सुई  गुम हो गयी है, बस वही खोज रही हूं। फिर क्या था, वो व्यक्ति भी महिला की मदद में जुट गया और सुई  खोजने लगा। कुछ देर में और भी लोग इस खोज अभियान में शामिल हो गए और देखते- देखते लगभग पूरा गांव ही इकठ्ठा होकर, सुई  की खोज में लग गया। किसी ने बुढ़िया से पूछा, अरे अम्मा! जरा ये तो बताओ कि सुई गिरी कहां थी? बेटा, सूई तो झोपड़ी के अंदर गिरी थी।

Weekly Horoscope: क्या कहते है आपके सितारे साप्ताहिक राशिफल 3 अप्रैल से 9 अप्रैल 2022 तक || JANWANI

भीड़ में से किसी ने ऊंची आवाज में कहा, कमाल करती हो अम्मा ,हम इतनी देर से सुई यहां ढूंढ रहे हैं। बुढ़िया बोली, झोपडी में तो घुप्प अंधेरा था, यहां रोड लाइट का उजाला जो है, इसलिए। मित्रों, हमारी दशा भी इस बुढ़िया के समान है। हमारे चित्त की शांति, मन का आनन्द तो हमारे हृदय में ही कहीं खो गया है, उसे भीतर आत्म-अवलोकन के द्वारा खोजने का प्रयास होना चाहिए।

वह श्रम तो हम करते नहीं, क्योंकि वहाँ सहजता से कुछ भी नजर नहीं आता, बस बाहर की भौतिक चकाचौंध में हमें सुख और आनन्द मिल जाने का भ्रम लगा रहता है। शायद ऐसा इसलिए है कि अंतर में झांकना बडा कठिन कार्य है, वहां तो हमें अंधकार प्रतीत होता है, और चकाचौंध में सुख खोजना बडा सहज ही सुविधाजनक लगता है।

किन्तु यथार्थ तो यह है कि आनन्द जहां गुम हुआ है उसे मात्र वहीं से ही पुन: प्राप्त किया जा सकता है। आनन्द अन्तर्मन में ही छुपा होता है। बाहरी संयोगों का सुख, केवल और केवल मृगतृष्णा है। यदि हृदय प्रफुल्लित नहीं तो कोई भी बाहरी सुख-सुविधा हमें प्रसन्न करने में समर्थ नहीं। और यदि मन प्रसन्न है, संतुष्ट है तो कोई भी दुविधा हमें दुखी नहीं कर सकती।


janwani address 32