Monday, May 12, 2025
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फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’ को लेकर आया नया अपडेट, इस दिन होगी रिलीज

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉट कॉम वेबसाइट पर आपका स्वागत और अभिनन्दन है। बॉलीवुड इंडस्ट्री के भाईजान की अपकमिंग फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’ को लेकर अपडेट आया है। हाल ही में शहनाज गिल ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो फैंस के साथ साझा की हैं। शहनाज गिल ने वीडियो को शेयर करते हुआ कैप्शन में सलमान की फिल्म की नई रिलीज डेट को लेकर बताया है जो काफी वायरल हो रहा है। इस फिल्म की नई रिलीज डेट आते ही फैंस खुशी से झूम उठे हैं।

शहनाज गिल की वीडियो की बात करें तो एक्ट्रेस ने राघव जुयाल और सिद्धार्थ निगम के साथ सॉन्ग ‘जी रहे है हम’ पर मस्ती करती नजर आ रही हैं। वहीं, शहनाज गिल ने कैप्शन में लिखा कि 30 डे टू किसी का भाई किसी की जान’। अगर इस हिसाब से देखा जाए तो फिल्म की रिलीज डेट 24 अप्रैल होने वाली है। इस वीडियो से ज्यादा कैप्शन ने फैंस का ध्यान अपनी तरफ खींचा। बता दें कि फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’ की पहले रिलीज डेट 21 अप्रैल यानी ईद के दिन थी। लेकिन शहनाज गिल के इस पोस्ट के सामने आने के बाद फिल्म की रिलीज डेट अब अलग नजर आ रही हैं।

राहुल गांधी के लिए आगे का रास्ता क्या?

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मानहानि मामले में राहुल गांधी को सूरत में कोर्ट की ओर से दो साल की सजा सुनाई गई। साथ ही उनकी लोकसभा की सदस्यता भी चली गई। अगर ऊपरी अदालतों से राहुल को राहत नहीं मिलती तो वो आठ साल तक संसद में नहीं जा सकते। लोकसभा की नोटिफिकेशन के मुताबिक राहुल को कोर्ट की ओर से सजा सुनाए वाले दिन यानि 23 मार्च, 2023 से ही अयोग्य करार दिया गया। हालांकि कोर्ट ने सजा सुनाते ही इसे 30 दिन तक टाल दिया था जिससे राहुल को ऊपरी अदालत में अपील का मौका मिल सके। ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि क्या लोकसभा स्पीकर ने जल्दबाजी में राहुल को अयोग्य ठहराने का फैसला किया?

इस पर कानूनी विशेषज्ञों की राय बंटी है। जहां कुछ लीगल एक्सपर्ट का कहना है कि स्पीकर को भी एक महीने के लिए ये फैसला टाल देना चाहिए था क्योंकि तकनीकी तौर पर सजा अभी सस्पेंड है। वहीं कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि राहुल को कोर्ट से सजा सुनाए जाने के साथ ही स्पीकर का सदन की सदस्यता को लेकर नोटिस जारी करना जरूरी था। ऐसी सूरत में राहुल गांधी के पास कानूनी तौर पर क्या विकल्प हैं? राहुल गांधी के पास अधिकार है कि अपनी सदस्यता रद्द करने के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकते हैं। राहुल साथ ही सूरत कोर्ट के फैसले को भी ऊपरी कोर्ट में चुनौती दे सकते हैं। अगर वहां से उन्हें मानहानि मामले में राहत मिलती है यानि बरी होते हैं या सजा कम होती है तो भी लोकसभा की उनकी सदस्यता खुद-ब-खुद बहाल नहीं होगी। इसके लिए उन्हें फिर हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाना होगा। राहुल को स्टे नहीं मिला तो कानूनी प्रक्रिया आगे भी चलेगी।

राहुल के लिए पॉलिटिकल प्लस या माइनस?

राहुल गांधी अदाणी को लेकर राहुल जितने मुखर हैं इतना विपक्षी खेमे में और कोई नजर नहीं आता। क्या इसीलिए सत्ता पक्ष के निशाने पर सबसे ऊपर राहुल गांधी ही दिखते हैं। कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बीजेपी खुद 2024 का लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी की पिच पर चुनाव लड़ना चाहती है। इसके लिए जरूरी है कि विपक्ष को एकजुट न होने दिया जाए। वैसी स्थिति न बनने दी जाए जैसी 1977 में सत्ता पक्ष के खिलाफ बनी थी। तब सब विपक्षी पार्टियों ने जनता पार्टी बनाकर शक्तिशाली इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस को धूल चटा दी थी। लेकिन 1977 में विपक्ष के बाइंडिंग फैक्टर के तौर लोकनायक जयप्रकाश नारायण थे। आज देश में जेपी के कद का कोई ऐसा व्यक्तित्व नजर नहीं आता।

फिर आते हैं राहुल गांधी पर। राहुल की दुविधा ये है कि सत्ता पक्ष को सीधे ललकारने के बावजूद वो प्रधानमंत्री पद की दावेदारी पर खुद खुलकर कुछ नहीं कह सकते। अगर खुद को दावेदार बताते हैं तो दूसरे विपक्षी दल कांग्रेस के पास आने से हिचकेंगे। अगर खुद को दावेदार नहीं बताते तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मनोबल पर विपरीत असर पड़ेगा। इसलिए वो इस मुद्दे पर मौन रहना ही बेहतर समझते हैं। हां उनकी कोशिश यही है कि सत्ता पक्ष को चुनौती देने में वो सबसे आगे नजर आएं। राहुल बापू के सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों को अपना धर्म भगवान, साधन बता रहे हैं तो साफ है वो गांधीगीरी के जरिए आगे बढ़ना चाहते हैं। अब इसके लिए उन्हें कांग्रेस के लिए यही क्यों न कहना पड़े- एकला चलो रे।

स्लॉग ओवर

एक महिला गोल्फ खेल रही थी। गेंद को हिट करने पर झाड़ियों में चली गई। महिला पास गई तो झाड़ी में एक मेंढक बुरी तरह फंसा देखा। मेंढक ने महिला से कहा कि ‘अगर तुम मुझे यहां से निकाल दोगी तो मैं तुम्हारी तीन इच्छाएं पूरी कर दूंगा।’ महिला ने मेंढक को झाड़ी से छुड़ा दिया। मेंढक ने महिला का शुक्रिया जताया और कहा- ‘मैं एक बात बताना भूल गया कि तुम्हारी इच्छाएं पूरी करने के साथ एक शर्त है। वो ये है कि जो कुछ भी तुम मांगोगी उसका दस गुना मुझे तुम्हारे पति को भी देना होगा।’ महिला ने कहा कि उसे शर्त पर कोई एतराज नहीं है। महिला ने अपनी पहली इच्छा जताई कि वो दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला बन जाए।

इस पर मेंढक ने चेताया- ‘इसका मतलब होगा तुम्हारा पति भी दुनिया का सबसे खूबसूरत मर्द बन जाएगा।’ महिला ने कहा-‘कोई बात नहीं। महिला की पहली इच्छा मेंढक ने पूरी कर दी। इसके बाद महिला ने दूसरी इच्छा जताई कि वो दुनिया की सबसे अमीर महिला बन जाए। मेंढक ने इस पर महिला से कहा- ‘इसका मतलब होगा, तुम्हारा पति दुनिया का सबसे अमीर पुरुष हो जाएगा, तुम से भी दस गुना ज्यादा।’ महिला ने कहा- ‘ये तो अच्छी बात है, उसका और मेरा पैसा अलग कोई है। जो मेरा वो उसका और जो उसका वो मेरा।’

मेंढक ने महिला की दूसरी इच्छा भी पूरी कर दी। तीसरी इच्छा महिला ने काफी देर सोच विचार करने के बाद बताई। महिला ने कहा- ‘मुझे हल्का सा दिल का दौरा आ जाए।’ मेंढक ने ये इच्छा भी पूरी कर दी। महिला को हल्का दिल का दौरा आया। लेकिन ये क्या पति को तो सिर्फ़ हिचकी आने के अलावा कुछ हुआ ही नहीं। दरअसल, पति को भी दिल का दौरा आया लेकिन वो पत्नी से दस गुना हल्का था।
(लेखक आज तक के पूर्व न्यूज एडिटर और देशनामा यूट्यूब चैनल के संचालक हैं)

                                                                                                      खुशदीप सहगल


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भारत का स्विट्जरलैंड मनाली

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चीड़, देवदार, तोष के वृक्षों से घिरी वादियां, सर्द मौसम, स्नोफॉल, नन्हें-नन्हें आसमान में तैरते बादल, दूब पर बिखरी बूंदें, हिम का दुशाला ओढ़े पर्वत श्रेणियाँ, यह मंजर स्विट्जरलैण्ड आफ इण्डिया मनाली में देखने को मिलेगा। समुद्रतल से 6000 फुट की ऊंचाई पर स्थित मनाली स्नोलाइन अर्थात हिम रेखा के करीब है। यहां भी कुल्लू की तरह व्यास नदी का साम्राज्य है। अद्भुत प्राकृतिक सुषमा देखकर पर्यटक भारत के अन्य भागों की भीषण गर्मी से बचने के लिए मनाली की ओर कूच करता है। शिमला और कुल्लू के बाद अत्यधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है जो पर्यटकों को रहने सहित खाने-पीने का भी उचित बंदोबस्त प्रदान करता है। देश-विदेश का परम्परागत खाना परोसने वाले यहाँ बीसियों रेस्तरां हैं। यही कारण है कि पर्यटक यहां मन माफिक खाना मिलने के कारण अन्य स्थानों के मुकाबले अधिक समय तक ठहरता है।

सर्वप्रथम अंग्रेजों की इस दिव्य स्थान पर दृष्टि पड़ी। इस मनमोहक और स्वास्थ्यवर्धक स्थान का लाभ उठाने के लिए उन लोगों ने इस स्थान का पर्यटन स्थल के रूप में विकास किया। यहां के चीड़ के वृक्ष इतने लम्बे हैं कि यदि उनकी फुनगी को टोपी पहनकर अगर नीचे से देखा जाए तो टोपी निश्चय रूप से गिर जायेगी। प्रकृति का धनी मनाली टैकिंग अभियानों का भी आधार स्थल है। अनेक विदेशी महिला-पुरुष पर्यटकों को मनाली इतना रास आया है कि उन्होंने स्थानीय लोगों से ब्याह कर यहीं पर घर बसा लिया है।

मनाली घूमने का समय अप्रैल से जून तथा सितम्बर से नवम्बर तक उपयुक्त रहता है हालांकि वषार्काल को छोडकर मनाली कभी-भी घूमा जा सकता है। मनाली रेल मार्ग द्वारा भी देश से जुड़ा हुआ है जिसका निकटतम स्टेशन चंडीगढ़ है जहां से मनाली का आगे का सफर बस अथवा हवाई मार्ग से किया जा सकता है। मनाली का निकटतम हवाई अड्डा भुंतर है जो मनाली से 50 किमी की दूरी पर स्थित है। सड़क मार्ग द्वारा मनाली चंड़ीगढ़, शिमला, दिल्ली सहित कई दूसरे शहरों से सीधा जुड़ा है।

मनाली के दर्शनीय स्थल

माल रोड मनाली का मुख्य मार्ग है। मुख्य मार्ग होने के कारण प्रत्येक पर्वतीय क्षेत्र की तरह यह भी आकर्षक है। बस स्टैण्ड से आरंभ होकर यह मार्ग हिडिम्बा मंदिर की तरफ जाता है। खास बात यह है कि व्यास पुल के मोड़ तक मनाली की माल रोड पर काफी चहल-पहल रहती है मगर उसके आगे यह चहल-पहल ठहर सी जाती है कारण यह है कि एक ओर वन विहार है दूसरी ओर आवासीय स्थल और रेस्तरां आदि। नवयुगलों की चहल-पहल तो इसी तरफ देखी जा सकती है।
हिडिम्बा मंदिर जो माल रोड से निकट ही स्थित है। यह सबसे पुराने मंदिरों में से एक है? ऐसा माना जाता है इस मंदिर का निर्माण 1553 ईसवीं में हुआ था।

यह मंदिर अलग प्रकार की शैली का है। महाबली भीमसेन की पत्नी हिडिम्बा को समर्पित यह मंदिर पुरातन हिसाब का है। मंदिर में प्रवेश करने हेतु बड़ी-बड़ी पेडि पर चढ पड़ता है मंदिर में पंक्तिबद्ध जाने की व्यवस्था है। भीतर से मंदिर के दर्शन करने पर तथा मंदिर परिसर देखने पर हमें महाभारत काल की याद ताजा हो जाती है। मंदिर में दर्शनार्थियों को प्रसाद दिया जाता है। लगभग पाँच शताब्दी पुराने इस मंदिर के पास ही याक पशु को लिए बेरोजगार खड़े रहते हैं जो चंद रुपयों में याक पर सवारी करने तथा छायाचित्र उतारने की इजाजत देते हैं।

मनु मंदिर मनाली का प्रमुख आकर्षण है। लकड़ी से निर्मित यह मंदिर आदि पुरुष मनु को समर्पित है जिसके नाम से मनाली शहर का बसना माना जाता है। लकड़ी की सोंधी गन्ध के बीच जब हम मंदिर का अवलोकन/दर्शन करते हैं तब हमें लकड़ी की भव्य कलात्मक इमारत दृष्टिगत होती है। मंदिर के बाहर तीन-चार सीढ़ियां हैं, पश्चात तोरणद्वार शुरू होता है। इसके बाद बहुत बड़ा घण्टा लटका हुआ है। फिर भीतर प्रविष्ट होते हैं। मंदिर शांत वातावरण के आगोश में समाया हुआ प्रतीत होता है।

कुल मिलाकर यह मंदिर भव्य जान पड़ता है। इस मंदिर की जब हम यात्र करते हैं तो इससे पूर्व राह में पुरानी मनाली से रूबरू होते हैं। वही पुराना अंदाज, वही पुराना परिवेश, वही पुराने घर, चढ?े-उतरने का स्थल, असमतल चारों ओर हरी-भरी वादियां, इस रास्ते में अलग ही प्रकार की अनुभूति होती है। एक प्रकार से पुरातनता के साथ हमें निर्धनता का आलम यहां दिखाई देता है।

मनाली से 3 किमी दूर व्यास नदी के मुहाने पर स्थित वशिष्ट गर्म पानी के चश्मों के लिए प्रसिद्ध है। यहां का मंदिर भी देखने योग्य है। पर्यटन विभाग की ओर से यहां एक स्नान परिसर बनवाया गया है जो प्राकृतिक रूप से निकले गर्म पानी से नहाने का आनन्द प्रदान करता है।

मनाली से 5 किलोमीटर दूर अर्जुन गुफा स्थित है जिसका क्र म महाभारत से जुड़ा है। कुंती पुत्र अर्जुन ने यहाँ पशुपत अस्त्र प्राप्त करने हेतु कठोर तपस्या की थी। मनाली से 6 किलोमीटर दूर जगत सुख पत्थरों से बने प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यह एक समय कुल्लू की राजधानी था। यहाँ गौरीशंकर मंदिर है जो लगभग 1200 वर्ष पुराना है। मंदिर के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से यहां आते हैं।

जून से अक्टूबर के बीच रोहतांग दर्रा खुलता है जो वर्ष के बाकी 7 महीनों में बर्फ से ढका होने के कारण बंद रहता है। हालांकि बर्फ तो जून से अक्टूबर के बीच भी होती है, वह भी मोटी तह वाली मगर पर्यटकों के लिए इन बर्फ से ढकी पर्वत श्रृंखलाओं को जो काफी ऊंची-ऊंची होती हैं, अवलोकनार्थ खोल दिया जाता है।

पहले तो इस स्थान को मौत का द्वार ही कहा जाता था मगर समय अन्तराल के बाद यहां खतरा कुछ कम हुआ है हालांकि अभी-भी यहां की यात्र कुछ खतरे से खाली नहीं होती है। लगभग दो किमी लंबे रोहतांग दर्रे पर बर्फ से क्रीड़ा करने हेतु पर्यटकों को उसी तापमान के अनुरूप पहने जाने वाली डेऊस पहननी होती है जो दर्रे के आसपास ही मिल जाती है।

पवन कुमार कल्ला


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आज से शुरू हुआ दिल्ली से धर्मशाला के लिए नया हवाई रूट

जनवाणी ब्यूरो |

नई दिल्ली: आज रविवार को केंद्रीय राज्य मंत्री विजय कुमार सिंह और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने दिल्ली से धर्मशाला के लिए नए हवाई रूट की शुरुआत की है।

इसी दौरान केंद्रीय मंत्री ने शुरू किए गए नए हवाई मार्ग पर कहा कि, धर्मशाला को देश से जोड़ने के इस कदम के लिए मैं पीएम मोदी को धन्यवाद देता हूं। इससे यहां आने वाले पर्यटकों, श्रद्धालुओं, छात्रों और कई अन्य लोगों को लाभ मिलता है।

साथ ही वह बोले, “इस नए रूट से हिमाचल आने वाले सैलानियों, सेना के जवानों, व्यापारियों, कर्मचारियों और छात्रों को सुविधा मिलेगी।”

सत्ता का चहेता चुनाव आयोग

RAVIWANI


KUMAR PRASHANTकेंद्र की सत्ता पर काबिज पार्टियों की मनमर्जी से मनचीते चुनाव आयुक्तों की बहाली पर अब सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले से रोक लगने की संभावना है, लेकिन क्या यह मौजूदा राजनीतिक जमातों के चलते संभव होगा? क्या बेलगाम लोकतांत्रिक संस्थाओं, खासकर विधायिका के होते हुए यह कारगर हो सकेगा? सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आ गया है कि अब चुनाव आयोग का चयन तीन सदस्यों की एक समिति करेगी, न कि प्रधानमंत्री के इशारे पर नौकरशाही के चापलूसों का पत्ता फेंटकर चयन किया जाएगा। यह फैसला तब तक लागू रहेगा, जब तक संसद इसके लिए कोई नया कानून नहीं बनाती। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि न्यायपालिका ने विधायिका को उसकी भूमिका और मयार्दा इस तरह आदेश देकर समझाई है। सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले के बाद से सत्तापक्ष में एकदम सन्नाटा है। विपक्ष ने भी थोड़ी-बहुत प्रतिक्रिया से ज्यादा कुछ नहीं कहा है। यह सन्नाटा क्यों है भाई? इसलिए कि सभी जान रहे हैं कि सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला सत्ता व विपक्ष दोनों के पर कतर रहा है। जिस हम्माम में सब नंगे हों, उसमें तौलिये की बात करना सबकी नंग खोल देता है।

सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला सत्तापक्ष की नीयत पर तीखी टिप्पणी करता है। यह टिप्पणी इतनी कठोर व मर्म पर चोट करने वाली है कि यदि हमारी व्यवस्था में थोड़ी भी लोकतांत्रिक आत्मा बची होती तो चुनाव आयोग के वर्तमान अध्यक्ष का इस्तीफा कब का हो गया होता।

सरकार का यदि कोई लोकतांत्रिक चरित्र होता तो उसने इस फैसले के तुरंत बाद वर्तमान चुनाव आयोग भंग कर दिया होता तथा प्रधानमंत्री- नेता प्रतिपक्ष – प्रधान न्यायाधीश की समिति ने रातों-रात बैठकर नया चुनाव आयोग गठित कर दिया होता। ऐसा हुआ होता तो सत्ता पक्ष को अपनी विकृत लोकतांत्रिक छवि सुधारने तथा चुनाव आयोग को अपनी हास्यास्पद स्थिति से बचने का मौका मिल जाता, लेकिन जो लोकतांत्रिक आत्मा कहीं बची ही नहीं है, उसकी कोई लहर उठे भी तो कैसे? हमारी संसद में भी इतनी नैतिक शक्ति नहीं बची है कि वह खुद को सुधार सके, बे-पटरी हुई अपनी गाड़ी को पटरी पर लौटा सके।

लोकतंत्र का पेंच यह है कि उसमें संसद बनती भले बहुमत के बल पर है, पर चलती परस्पर विश्वास व सहयोग के बल पर ही है। ऐसा नहीं होता तो भारतीय संसद के इतिहास में अब तक की सबसे बड़े बहुमत से बनीं दो सरकारें- इंदिरा गांधी व राजीव गांधी की – ताश के पत्तों-सी बिखर नहीं जातीं?! इसलिए लोकतांत्रिक नैतिकता का तकाजा है कि संवैधानिक संस्थाएं एक-दूसरे की सुनें, एक-दूसरे का सम्मान करें। जिस संसदीय लोकतंत्र की रजत जयंती मानने की हम तैयारी कर रहे हैं, वह इतने वर्षों में हमें यह भी नहीं सिखा सका कि हमारी सारी लोकतांत्रिक संस्थाएं संविधान के गर्भ से पैदा हुई हैं इसलिए इनमें कोई संप्रभु नहीं है।

संप्रभु है, इस देश की जनता, जिसने अपना संविधान बनाकर, अपने ऊपर लागू किया है। तो वह संविधान सबका पिता है। पिता के संरक्षण का दायित्व सबका है, लेकिन न्यायपालिका उसकी खास प्रहरी है। संविधान ने जितनी संस्थाएं बनाई हैं उनमें से किसी को उसने संप्रभु नहीं बनाया है, बल्कि इन सबका परस्परावलंबन निर्धारित किया है, सबकी दुम एक-दूसरे से बांध दी है।

विधायिका कानून बनाने की सर्वोच्च संस्था है; न्यायपालिका उन कानूनों की वैधता जांचने वाली सर्वोच्च संस्था है; न्यायपालिका का कोई भी निर्णय संसद पलट सकती है, लेकिन संसद कोई भी ऐसा निर्णय नहीं ले सकती, जिससे हमारे संविधान का बुनियादी ढांचा प्रभावित होता हो; और यह फैसला सिर्फ, और सिर्फ न्यायपालिका कर सकती है कि कब, कहां और किसने यह लक्ष्मण-रेखा पार की है।

कार्यपालिका विधायिका के निर्देश पर काम करती है, लेकिन वह पे-प्रमोशन-पेंशन के पीछे भागती चापलूसों की जमात नहीं है। असंवैधानिक निर्देश मानने के लिए वह लाचार नहीं है। उसमें अनैतिक व असंवैधानिक निर्देश मानने से इंकार करने का नैतिक बल होना चाहिए। वह न्यायपालिका की मदद लेने को भी स्वतंत्र है।

लोकतंत्र के विकास-क्रम में एक चौथा खंभा भी विकसित हुआ है जिसे आज मीडिया कहते हैं। स्वतंत्रता, साहस व विवेक के तीन खंभों पर यह मीडिया टिका हुआ है जो स्वायत्त व स्वतंत्र तो है, लेकिन अपने लिखे-बोले-दिखाए हर शब्द के लिए वह समाज, न्यायपालिका व संसद के प्रति जवाबदेह भी है। इन चारों के बीच यह गजब की स्वायत्तता व गजब का परस्परावलंबन है, जो संविधान ने रचा है। इसके आलोक में सारी संवैधानिक संस्थाओं को अपना आंकलन करना चाहिए। इस आलोक में हमें अपनी न्यायपालिका को देखना चाहिए तथा न्यायपालिका को इस आईने में अपनी सूरत देखनी चाहिए।

हम जब इस आलोक में अपनी न्यायपालिका को देखते हैं तो हमें अफसोस होता है; न्यायपालिका जब इस आईने में खुद को देखेगी तो डर जाएगी। मनुष्य ढेरों कमजोरियों का पुतला है- इस हद तक कि यह कहावत ही बन गई है कि गलती करना मनुष्य होने की पहचान है झ्र टू इर इज ूमन ! यह जानने व मानने के बाद हमने ही कुछ ऐसी संस्थाएं बनाईं, कुछ ऐसे पद बनाए जिनकी नैतिक जिम्मेवारी है कि वे सामान्य मनुष्यों की सामान्य कमजोरियों से ऊपर उठकर सोचें व व्यवहार करें।

जेबकतरा लोभ व बेईमानी की मानवीय कमजोरी का एक उदाहरण है। वह भीड़ का फायदा उठाकर जेब काटता है। उससे नागरिक व पुलिस निबटते ही रहते हैं, लेकिन पुलिस ही जेबकतरा बन जाए तो हम क्या करेंगे? इसलिए जरूरी है कि पुलिस का ऐसा प्रशिक्षण किया जाए, उसमें ऐसा दायित्व-बोध भरा जाए कि वह सामान्य मानवीय कमजोरियों से ऊपर उठकर काम करे। जब पुलिस ऐसी कल्पना पर खरी नहीं उतरती तो हम उसके प्रशिक्षण की नई योजना पर काम करते हैं। सारे पुलिस आयोग इसी कोशिश में बने हैं।

ऐसा ही विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका के साथ भी है। इनकी निरंतर पहरेदारी होनी चाहिए – आंतरिक भी और बा भी ! हमारी न्यायपालिका खुद की पहरेदारी कैसे करती है? उसने चुनाव आयोग के गठन के बारे में जो फैसला दिया है क्या वह बीमारी उसे आज दिखाई दी है? यह तो पहले दिन से ही हमें दिखाई दे रहा था कि चुनाव यदि संसदीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा अवलंबन है तो उसकी निगरानी करने वाली संस्था को मजबूत, आत्मनिर्भर तथा सत्तानिरपेक्ष होना चाहिए।

जो हमें दिखाई दे रहा था वह न्यायपालिका को क्यों नहीं दिखाई दिया? उसका यह अपराध बहुत संगीन हो जाता है क्योंकि संविधान ने उसे यही जिम्मेवारी दी है कि वह संवैधानिक संस्थाओं की ऐसी हर कमजोरी पर नजर रखे, उसे जांचे-परखे और उसे ठीक करने की ठोस पहल करे। अपने वक्त में टीएन शेषन ने यह दिखलाया भी था कि चुनाव आयोग यदि साहसपूर्ण स्वतंत्रता से काम करता है तो संसदीय लोकतंत्र को संभालने में कितनी मदद मिलती है।

न्यायपालिका ने वह संकेत क्यों नहीं समझा? उसने उस दिशा में क्यों काम नहीं किया? बीमारी इतनी बिगड़ जाए कि मरीज मरणासन्न हो जाए, यह डॉक्टर की विफलता है। मरणासन्न मरीज को बचाकर वाहवाही लूटने से यह बात छिपाई नहीं जा सकती कि आप अपनी प्राथमिक जिम्मेवारी में विफल हुए हैं। ऐसा ही न्यापालिका के साथ भी हो रहा है।
हमारी न्यायपालिका इस कदर सामान्य मानवीय कमजोरियों की गिरफ्त में है कि वह सामान्य मनुष्य जितना संयम, समझदारी व साहस तक नहीं दिखा पाती।

वह सत्ता से डरती है, वह सत्ता की कृपाकांक्षी होती है, वह केरियररिस्ट है, वह पाटीर्बाजी की घटिया मानसिकता की शिकार है। वह मुकदमा जीतने के लिए शील व विवेक की कीमत नहीं करती। वह मानवीय कमजोरियों से ऊपर उठने का कोई तरीका विकसित नहीं कर सकी है। राहुल गांधी लंदन में क्या कहते हैं इस पर चिल्ल-पों करने वाले इस पर क्यों चुप्पी साध लेते हैं कि हमारा लोकतंत्र क्या कहता है? वह संवैधानिक आॅक्सीजन की मांग कर रहा है। वह कह रहा है कि मेरी आवाज सुनो।


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सत्याग्रह का कार्यक्रम शुरू, कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर हुए शामिल

जनवाणी ब्यूरो |

नई दिल्ली: आज रविवार को राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द होने के खिलाफ कांग्रेस का महात्मा गांधी की समाधि पर सत्याग्रह होगा। यह कार्यक्रम सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक होने का अनुमान लगाया जा रहा है। राजधानी दिल्‍ली के राजघाट पर कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, प्रियंका गांधी समेत बड़े नेता ‘संकल्प सत्याग्रह’ में हिस्सा लेंगे।

बता दें कि, कांग्रेस का महात्मा गांधी की समाधि पर सत्याग्रह का कार्यक्रम शुरू हो गया है। इसी दौरान कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर राजघाट पर पार्टी के संकल्प सत्याग्रह में शामिल हुए।

संसद सदस्य के रूप में राहुल गांधी की अयोग्यता के विरोध में कांग्रेस पार्टी राजघाट पर एक दिवसीय संकल्प सत्याग्रह कर रही है।

आज कांग्रेस का प्रदर्शन, महात्मा गांधी की समाधि पर सत्याग्रह

जनवाणी ब्यूरो |

नई दिल्ली: आज रविवार को राहुल गांधी की संसद सदस्यता रद्द होने के खिलाफ कांग्रेस का महात्मा गांधी की समाधि पर सत्याग्रह होगा। यह कार्यक्रम सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक होने का अनुमान लगाया जा रहा है। बता दें कि, राजधानी दिल्‍ली के राजघाट पर कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, प्रियंका गांधी समेत बड़े नेता ‘संकल्प सत्याग्रह’ में हिस्सा लेंगे।

आज नवरात्रि का पांचवा दिन, स्कंदमाता की करें आराधना…

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉट कॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन है। आज नवरात्रि का पांचवा दिन है। आज के दिन मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप मां स्कंदमाता की आराधना की जाती हैं। स्कंदमाता शेर पर सवार चार भुजाओं वाली देवी हैं। माता हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और उनकी गोद में उनके पुत्र स्कंदकुमार होते हैं।

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भगवान कार्तिकेय को ही स्कंद कुमार कहा जाता हैं इसी कारण देवी का नाम स्कंदमाता पड़ा। सच्चे मन से पूजा करने पर स्कंदमाता सभी भक्तों की इच्छाओं को पूरी करती हैं और कष्टों को दूर करती हैं। वहीँ, स्कंदमाता मोक्ष का मार्ग दिखाती हैं और इनकी पूजा करने से ज्ञान की भी प्राप्ति होती है।

मां स्कंदमाता की ऐसे करें आराधना

आज सुबह स्नान के बाद मां स्कंदमाता की पूजा करें। मां स्कंदमाता को लाल पुष्प जैसे गुड़हल, गुलाब, अक्षत्, कुमकुम, धूप, दीप, नैवेद्य, गंध आदि चढ़ाएं। फिर मां स्कंदमाता के मंत्रों का उच्चारण करें। मंत्र करने के बाद माता को केले और बताशे का भोग लगाएं। फिर कपूर या घी के दीपक से स्कंदमाता की आरती करें। पूजा अर्चना के बाद मां के चरणों में शीश झुकार नमन करें।

मां स्कंदमाता के मंत्र

बीज मंत्र: ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नम:
पूजा मंत्र: ओम देवी स्कन्दमातायै नमः
महाबले महोत्साहे महाभय विनाशिनी। त्राहिमाम स्कन्दमाते शत्रुनाम भयवर्धिनि।।

बीकानेर में महसूस किये गए भूकंप के तेज़ झटके

जनवाणी ब्यूरो |

राजस्थान: आज रविवार को राजस्थान के बीकानेर में भूकंप के तेज़ झटके महसूस किये गए हैं। राष्ट्रीय भूकंप विज्ञान केंद्र के मुताबिक बताया जा रहा है कि बीकानेर में 4.2 तीव्रता का भूकंप आया है। भूकंप महसूस होते ही लोगो में हड़कंप मच गया।

आज भारत का सबसे बड़ा LVM3 रॉकेट इसरो ने किया लॉन्च

जनवाणी ब्यूरो |

नई दिल्ली: आज रविवार को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) 36 उपग्रहों को ले जाने वाला भारत का सबसे बड़ा LVM3 रॉकेट लॉन्च किया है। बता दें कि LVM3 रॉकेट को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया है।