चीड़, देवदार, तोष के वृक्षों से घिरी वादियां, सर्द मौसम, स्नोफॉल, नन्हें-नन्हें आसमान में तैरते बादल, दूब पर बिखरी बूंदें, हिम का दुशाला ओढ़े पर्वत श्रेणियाँ, यह मंजर स्विट्जरलैण्ड आफ इण्डिया मनाली में देखने को मिलेगा। समुद्रतल से 6000 फुट की ऊंचाई पर स्थित मनाली स्नोलाइन अर्थात हिम रेखा के करीब है। यहां भी कुल्लू की तरह व्यास नदी का साम्राज्य है। अद्भुत प्राकृतिक सुषमा देखकर पर्यटक भारत के अन्य भागों की भीषण गर्मी से बचने के लिए मनाली की ओर कूच करता है। शिमला और कुल्लू के बाद अत्यधिक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है जो पर्यटकों को रहने सहित खाने-पीने का भी उचित बंदोबस्त प्रदान करता है। देश-विदेश का परम्परागत खाना परोसने वाले यहाँ बीसियों रेस्तरां हैं। यही कारण है कि पर्यटक यहां मन माफिक खाना मिलने के कारण अन्य स्थानों के मुकाबले अधिक समय तक ठहरता है।
सर्वप्रथम अंग्रेजों की इस दिव्य स्थान पर दृष्टि पड़ी। इस मनमोहक और स्वास्थ्यवर्धक स्थान का लाभ उठाने के लिए उन लोगों ने इस स्थान का पर्यटन स्थल के रूप में विकास किया। यहां के चीड़ के वृक्ष इतने लम्बे हैं कि यदि उनकी फुनगी को टोपी पहनकर अगर नीचे से देखा जाए तो टोपी निश्चय रूप से गिर जायेगी। प्रकृति का धनी मनाली टैकिंग अभियानों का भी आधार स्थल है। अनेक विदेशी महिला-पुरुष पर्यटकों को मनाली इतना रास आया है कि उन्होंने स्थानीय लोगों से ब्याह कर यहीं पर घर बसा लिया है।
मनाली घूमने का समय अप्रैल से जून तथा सितम्बर से नवम्बर तक उपयुक्त रहता है हालांकि वषार्काल को छोडकर मनाली कभी-भी घूमा जा सकता है। मनाली रेल मार्ग द्वारा भी देश से जुड़ा हुआ है जिसका निकटतम स्टेशन चंडीगढ़ है जहां से मनाली का आगे का सफर बस अथवा हवाई मार्ग से किया जा सकता है। मनाली का निकटतम हवाई अड्डा भुंतर है जो मनाली से 50 किमी की दूरी पर स्थित है। सड़क मार्ग द्वारा मनाली चंड़ीगढ़, शिमला, दिल्ली सहित कई दूसरे शहरों से सीधा जुड़ा है।
मनाली के दर्शनीय स्थल
माल रोड मनाली का मुख्य मार्ग है। मुख्य मार्ग होने के कारण प्रत्येक पर्वतीय क्षेत्र की तरह यह भी आकर्षक है। बस स्टैण्ड से आरंभ होकर यह मार्ग हिडिम्बा मंदिर की तरफ जाता है। खास बात यह है कि व्यास पुल के मोड़ तक मनाली की माल रोड पर काफी चहल-पहल रहती है मगर उसके आगे यह चहल-पहल ठहर सी जाती है कारण यह है कि एक ओर वन विहार है दूसरी ओर आवासीय स्थल और रेस्तरां आदि। नवयुगलों की चहल-पहल तो इसी तरफ देखी जा सकती है।
हिडिम्बा मंदिर जो माल रोड से निकट ही स्थित है। यह सबसे पुराने मंदिरों में से एक है? ऐसा माना जाता है इस मंदिर का निर्माण 1553 ईसवीं में हुआ था।
यह मंदिर अलग प्रकार की शैली का है। महाबली भीमसेन की पत्नी हिडिम्बा को समर्पित यह मंदिर पुरातन हिसाब का है। मंदिर में प्रवेश करने हेतु बड़ी-बड़ी पेडि पर चढ पड़ता है मंदिर में पंक्तिबद्ध जाने की व्यवस्था है। भीतर से मंदिर के दर्शन करने पर तथा मंदिर परिसर देखने पर हमें महाभारत काल की याद ताजा हो जाती है। मंदिर में दर्शनार्थियों को प्रसाद दिया जाता है। लगभग पाँच शताब्दी पुराने इस मंदिर के पास ही याक पशु को लिए बेरोजगार खड़े रहते हैं जो चंद रुपयों में याक पर सवारी करने तथा छायाचित्र उतारने की इजाजत देते हैं।
मनु मंदिर मनाली का प्रमुख आकर्षण है। लकड़ी से निर्मित यह मंदिर आदि पुरुष मनु को समर्पित है जिसके नाम से मनाली शहर का बसना माना जाता है। लकड़ी की सोंधी गन्ध के बीच जब हम मंदिर का अवलोकन/दर्शन करते हैं तब हमें लकड़ी की भव्य कलात्मक इमारत दृष्टिगत होती है। मंदिर के बाहर तीन-चार सीढ़ियां हैं, पश्चात तोरणद्वार शुरू होता है। इसके बाद बहुत बड़ा घण्टा लटका हुआ है। फिर भीतर प्रविष्ट होते हैं। मंदिर शांत वातावरण के आगोश में समाया हुआ प्रतीत होता है।
कुल मिलाकर यह मंदिर भव्य जान पड़ता है। इस मंदिर की जब हम यात्र करते हैं तो इससे पूर्व राह में पुरानी मनाली से रूबरू होते हैं। वही पुराना अंदाज, वही पुराना परिवेश, वही पुराने घर, चढ?े-उतरने का स्थल, असमतल चारों ओर हरी-भरी वादियां, इस रास्ते में अलग ही प्रकार की अनुभूति होती है। एक प्रकार से पुरातनता के साथ हमें निर्धनता का आलम यहां दिखाई देता है।
मनाली से 3 किमी दूर व्यास नदी के मुहाने पर स्थित वशिष्ट गर्म पानी के चश्मों के लिए प्रसिद्ध है। यहां का मंदिर भी देखने योग्य है। पर्यटन विभाग की ओर से यहां एक स्नान परिसर बनवाया गया है जो प्राकृतिक रूप से निकले गर्म पानी से नहाने का आनन्द प्रदान करता है।
मनाली से 5 किलोमीटर दूर अर्जुन गुफा स्थित है जिसका क्र म महाभारत से जुड़ा है। कुंती पुत्र अर्जुन ने यहाँ पशुपत अस्त्र प्राप्त करने हेतु कठोर तपस्या की थी। मनाली से 6 किलोमीटर दूर जगत सुख पत्थरों से बने प्राचीन मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। यह एक समय कुल्लू की राजधानी था। यहाँ गौरीशंकर मंदिर है जो लगभग 1200 वर्ष पुराना है। मंदिर के दर्शन करने के लिए श्रद्धालु दूर-दूर से यहां आते हैं।
जून से अक्टूबर के बीच रोहतांग दर्रा खुलता है जो वर्ष के बाकी 7 महीनों में बर्फ से ढका होने के कारण बंद रहता है। हालांकि बर्फ तो जून से अक्टूबर के बीच भी होती है, वह भी मोटी तह वाली मगर पर्यटकों के लिए इन बर्फ से ढकी पर्वत श्रृंखलाओं को जो काफी ऊंची-ऊंची होती हैं, अवलोकनार्थ खोल दिया जाता है।
पहले तो इस स्थान को मौत का द्वार ही कहा जाता था मगर समय अन्तराल के बाद यहां खतरा कुछ कम हुआ है हालांकि अभी-भी यहां की यात्र कुछ खतरे से खाली नहीं होती है। लगभग दो किमी लंबे रोहतांग दर्रे पर बर्फ से क्रीड़ा करने हेतु पर्यटकों को उसी तापमान के अनुरूप पहने जाने वाली डेऊस पहननी होती है जो दर्रे के आसपास ही मिल जाती है।
पवन कुमार कल्ला