- द्रोपदी का कुंआ और मंदिर आज भी महाभारत काल इतिहास की दे रहा गवाही
जनवाणी ब्यूरो |
नूरपुर: जनपद को महापुरुषों की धरती कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। बिजनौर की धरती पर सिक्खों के प्रथम और जगतगुरु श्री गुरु नानक देव जी के चरण हल्दौर में राजा कमल नैन के बाग में पड़े। वहीं, महाभारत काल में पांडवों और द्रोपदी ने नूरपुर के गांव हसुपुरा में अंतिम चरण में चार माह का वनवास यहां पर बिताया था।
द्रोपदी का कुंआ और मंदिर व पांडवों के मंदिर आज भी इस ऐतिहासिक पल की गवाही दे रहे हैं। यह बात अलग है कि महाभारत सर्किट में इस गांव को शामिल नहीं किया गया। अगर ऐसा होता तो गांव एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित हो सकता था।
जनपद से सपा सरकार में पर्यटन मंत्री बने मूलचंद चौहान से ग्रामीणों को इस गांव को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कराये जाने की उम्मीदें जगी थी। लेकिन उनकी उम्मीदें खरी नहीं उतरीं। नतीजन, आस-पास के ग्रामीणों ने द्रोपदी के कुएं और पांडवों के मंदिरों को चाहरदीवारी के अंदर कैद कर कब्जा कर लिया है।
गांव के वयोवृद्ध भाजपा के पूर्व जिला महामंत्री धर्मपाल सिंह सैनी बताते है कि महाभारत काल के दौरान यहां चहुओर घना जंगल था। यहां से गुजर रही गांगन नदी के किनारे पांडव और द्रोपदी ने अंतिम चरण में चार माह का वनवास बिताया था। वनवास के दौरान द्रोपदी और पांडवों ने पूजा के लिए अलग-अलग मंदिर बनाऐ थे।
पीने के पानी के लिए एक कुंआ बनवाया था। उस दौरान उनके साथ जयपाल नामक महापुरुष भी आये थे। जो इनसे करीब एक किलोमीटर दूर हरकिशनपुर में रहने लगे। वह बताते है कि वनवास के दौरान महात्मा विदुर बीच बीच में उनसे मिलने आते थे। अंतिम चरण का वनवास बिताने के बाद पांडव और द्रोपदी विराटनगर के लिए चल दिये। लेकिन जयपाल नामक महापुरुष यहीं पर रुक गये। उन्होंने यहीं पर समाधि ली।
ग्रामीणों द्वारा बनाई गई समाधि आज भी स्थापित है। जहां पर रामनवमी पर विशेष भंडारा किया जाता है। वह बताते हैं कि उन दिनों हरकिशनपुर में कोई महामारी आने के कारण गांव वाले हसुपुरा आकर बस गये थे। तब से हसुपुरा आबाद है। गांव के ज्योतिषाचार्य करन सिंह सैनी बताते है कि पांडव और द्रोपदी के पीने के लिए दूध काशीपुर अब उत्तराखंड से आता था। वह बताते हैं कि ग्रामीणों की आशा है कि महाभारत काल की इस धरोहर को पर्यटक स्थल के रूप में विकसित किया जाये।
पूर्व मंत्री ठाकुर यशपाल सिंह और ग्राम प्रधान के सहयोग से हुआ द्रोपदी के मंदिर का जीर्णोद्वार महाभारत काल की धरोहर को ग्रामीण आज भी संजोए हुए हैं। द्रोपदी के मंदिर पर दिया जलाने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। वर्ष 2015 में इस मंदिर के जीर्णोद्वार का बीड़ा उठाया गया।
उस समय की मौजूदा ग्राम प्रधान विमला देवी और पूर्व मंत्री ठाकुर यशपाल सिंह के आर्थिक सहयोग से मंदिर के जीर्णोद्वार का कार्य प्रारंभ हुआ। इस दौरान पंचायत चुनाव की घोषणा होने पर प्रधान पद की उम्मीदवार उषा देवी पत्नी परम सिंह ने मंदिर के पूर्ण जीर्णोद्वार का वादा करते हुए अधिकांश आर्थिक सहयोग किया। इसके अलावा ग्रामीणों द्वारा मंदिर के लिए चंदा एकत्रित किया गया।