- श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ के आठवें और अंतिम दिन चिंतक विचारक भाईश्री ने गृहस्थ जीवन को तपस्या बताया
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ के आठवें और अंतिम दिन चिन्तक विचारक पूज्य रमेश भाई ओझा ने गृहस्थ जीवन को तपस्या बताते हुए कहा कि पारिवारिक जीवन का पालन करते हुए अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना चाहिए। समापन सत्र में भाईश्री का पंडाल द्वार पर शंखनाद मंत्रोच्चार के साथ भव्य स्वागत हुआ। उनके व्यासपीठ पर विराजमान होने के बाद नित्य नियमानुसार मुख्य यजमान राम किशोर सर्राफ, ब्रजबाला, विपिन अग्रवाल, अलका अग्रवाल (मीनाक्षी ज्वैलर्स परिवार) ने भागवत जी की पूजा एवं भाईश्री का माल्यार्पण कर स्वागत किया। इसके उपरांत समर्थ त्रयम्बकेश्वर चैतन्य महाराज, ब्रज भूषण गुप्ता, सौरभ गर्ग, संदीप गर्ग, अशोक गुप्ता, अन्नी भाई ने व्यास पीठ को प्रणाम कर भाईश्री से आशीर्वाद ग्रहण किया।
समर्थ चैतन्य महाराज ने कथा आयोजन के लिए समिति को साधुवाद देते हुए कहा कि कथा प्रांगण में रोज हनुमान चालीसा का संकल्प सामूहिक पाठ अभूतपूर्व रहा। प्राणी मात्र को सुख मिले, ये सबकी आकांक्षा है। शास्त्रीयता धर्म के बिना सुख नहीं मिलता, शास्त्र सास्वत है और रहेगा। भाई श्री ने कथा प्रारंभ करते हुए जीवन यापन के बोर में बताया। कहा कि कथा में महापुरुषों व मस्ती के संग्रह है। मनुष्य अपनी सांसो को बर्बाद नहीं करेंगे, पैसा कमाना ही यदि मानव जीवन का ध्येय रहा, तो व्यर्थ है। दुलर्भ शरीर को पाना शास्वत सुख प्रतिदिन संत्सग से ही संभव है, तभी अनित्य से विराग होगा।
अनासक्ति भाव से जिया जीवन दर्शन अनासक्ति योग है। कर्म करते हुए कर्म बंधन से मुक्त होना चाहिए। परिस्थिति नहीं बदल सकते तो मन स्थिति बदलो। चिपकने से पराधीनता आती है। श्रीकृष्ण का जन्म से लेकर प्रत्येक लीला का वर्णन करते हुए कहा कि दामोदर लीला (ओखली) में श्रीकृष्ण ने कुबेर पुत्रों का नारद श्राप से उद्धार कराया। भाईश्री ने माता-पिता की भक्ति के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि माता-पिता प्रत्यक्ष देव हैं, घर का तीर्थ हैं।
मां-बाप की सेवा सुखद सुखदायी होता है। मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, गुरु देवो भव, अतिथि देवो भव कहलाते हैं। उन्होंने कहा कि आज की जीवन शैली बदल गई है। बच्चों को पुष्प की भांति धीरे-धीरे खेलने का अवसर दिया जाना चाहिए, लेकिन अपनी अपेक्षाओं का बोझ बच्चों पर डालने से तनाव की स्थिति बनती जाती है। इस स्पर्धा में तनाव का वातावरण बना दिया है। यह जीवन की अपेक्षा जीवन को बोझिल बना देती है।
आज के दौर में नर्सरी एलकेजी यूकेजी के नाम पर बच्चों को उनके सही ढंग से बोलने और चीजों को समझने की आयु से पहले ही स्कूल में भेज दिया जाता है। जबकि भगवान श्रीकृष्ण ने 11 साल की आयु के बाद पढ़ाई शुरू की। इसका अर्थ यह नहीं कि वे पढ़ाई में किसी से पीछे रह गए, बल्कि जगतगुरु बने। उन्होंने गृहस्थ जीवन में जिम्मेदारियों के निर्वहन को एक तपस्या बताया। उन्होंने कहा कि जो सत्य की रक्षा करता है, सत्य उसकी रक्षा करता है। जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।
उन्होंने कहा कि भागवत का एक-एक शब्द बहुत विशाल है, और उसको कहने के लिए बहुत समय चाहिए। भावपूर्ण शब्दों में कथा समिति को अपना आशीर्वाद दिया और कथा को विराम दिया। इसके बाद महामंत्री ज्ञानेन्द्र अग्रवाल ने अपने समापन भाषण में भाई श्री को धन्यवाद देते हुए कहा कि कथा के माध्यम से राष्टÑ धर्म और भक्ति की प्रेरणा मिली है। कथा अध्यक्ष सतीश कमार सिंहल ने भाईश्री का आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद देकर आशीर्वाद लिया।
भाईश्री ने सतीश सिंहल, ज्ञानेन्द्र अग्रवाल, अशोक गुप्ता और मुख्य यजमान परिवार को रामनामी दुपट्टा ओढ़ाकर आशीर्वाद दिया। कथा समापन के पश्चात आरती हुई। कथा अध्यक्ष सतीश सिंघल, महामंत्री ज्ञानेन्द्र अग्रवाल, कोषाध्यक्ष अशोक गुप्ता, बजभूषण गुप्ता, सुरेश गुप्ता, अन्नी भाई, विपिन अग्रवाल अपने कर्तव्यनिष्ठ सहयोगियों के साथ कथा में उपस्थित रहे।