Saturday, May 3, 2025
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सत्याग्रह के रास्ते पर किसान

Samvad


KP MALIKपिछले दिनों प्राकृतिक आपदा यानि बेमौसम की घनघोर बारिश और बेतादाद ओले पड़ने की घटना ने किसानों को खून के आंसू रुला दिए और उनकी गेहूं, सरसों व रबी की अन्य फसलों को बर्बाद कर दिया, लेकिन केंद्र सरकार ने आज तक उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी तक फसलों को देने के लिए कोई नियम कानून बनाने को तैयार नहीं है। क्या सरकार की इस ढुलमुल नीति के पीछे किसानों की फसलों को मुफ्त में लूटने जैसी कोई चाल या मंशा है? यह बात मैं ऐसे ही नहीं कह रहा हूं, बल्कि इसके पीछे तथ्य है। क्योंकि पंजाब हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश के अधिकतर किसानों की सरसों की फसलें बेमौसम बारिश में बर्बाद हो गयी और जो बची कुछी मंडियों में पहुंची, उसके सही दाम किसानों को नहीं मिले, इससे सबसे ज्यादा प्रभावित राजस्थान और मध्य प्रदेश के किसान हुए हैं।

किसानों को इस बार सरसों के उचित दाम तक किसानों को नहीं मिल पा रहे हैं। कई जगहों पर किसान आंदोलित है और सत्याग्रह कर रहे हैं। दरअसल, केंद्र की मोदी सरकार ने खुद ही पिछले साल 2021-22 में देश में सरसों का भाव 7 हजार 444 रुपए प्रति कुंटल तय किया था।

लेकिन इस बार किसानों को सरसों का बढ़ोतरी के सात उचित भाव तो छोड़िए, पुराना भाव भी नहीं मिल रहा है। इस साल किसानों को सरसों का बाजार भाव महज 4 हजार 500 रुपए प्रति कुंटल तक ही मिल पा रहा है। पहले से ही बेमौसम हुई भारी बारिश और ओले पड़ने से तबाह किसान अब अपनी अगली फसल बोने की तैयारी को लेकर सरसों सस्ते भाव में बेचने को विवश होना पड़ रहा है।

इस प्रकार से एक ही वर्ष में एक कुंटल पर सीधे-सीधे करीब 3 हजार रुपए का घाटा किसानों को हो रहा है। महज एक साल में सरसों के भाव में यह गिरावट आई है, जो साधारण नहीं, बल्कि एक अनहोनी घटना है।

देखने वाली बात है कि पिछले 10 सालों में एक कुंटल सरसों के घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य में महज 2 हजार 410 रुपए की बढ़ोतरी है, जो कि बहुत कम है। वहीं दूसरी ओर, देखने वाली बात यह है कि जिस अनुपात में सरसों के दाम गिरे हैं, उस अनुपात में सरसों के तेल के भाव कम नहीं हुए हैं, बल्कि तेल के भाव एक बार आसमान पर जाने के बाद लगभग स्थिर बने हुए हैं।

इस हिसाब से किसानों को सरसों का भाव बहुत कम मिल रहा है, जबकि उन्हें खाने के लिए सरसों का तेल महंगा खरीदना पड़ रहा है। यह ठीक गन्ना और चीनी की तरह है, जिसमें किसानों को गन्ना सस्ते में देना पड़ता है, जबकि चीनी उन्हें महंगी मिलती है। दरअसल, सरसों का भाव गिरने से मोटा लाभ तो बिचौलियों और व्यापारियों को ही मिल रहा है, जो कि देश के ईमानदार और मेहनती किसानों के साथ-साथ आम उपभोक्ताओं के साथ भी बड़ी लूट की तरह है।

साल 2017-18 में अपरिष्कृत एवं परिष्कृत पाम आयल पर आयात शुल्क 45 फीसदी था तथा परिष्कृत पाम आयल पर अतिरिक्त 5 फीसदी सुरक्षा शुल्क भी था, जबकि पूर्व में अधिकतम आयात शुल्क 80 फीसदी तक था। इसके परिणाम स्वरूप किसानों को पिछले सालों की अपेक्षा अधिक दाम मिले थे।

आयात शुल्क में निरंतर गिरावट के क्रम में अक्टूबर 2021 को शून्य कर दिया गया। इस कारण विदेशों से आने वाले पाम आयल की मात्रा बढ़ गई। इतना ही नहीं तो सरसों का तेल आयात भी 2021-22 के उपरांत बढ़ना आरंभ हो गया। परिणाम स्वरूप किसानों को एक कुंतल सरसों पर करीब 3 हजार रुपए कम प्राप्त हो रहे हैं।

यह सरसों के दाम कम होने में जहां आयात-निर्यात नीति मुख्य कारक है, वहीं केंद्र की मोदी सरकार की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर न खरीदने की नीति भी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से वंचित करने के लिए उत्तरदायी है।

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग द्वारा वर्ष 2015-16 में तिलहन के न्यूनतम समर्थन मूल्यों का संयोजन तेल अंश के साथ करने की अनुशंसा की थी, जिसमें सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 35 प्रतिशत के मूल अंश के आधार पर निर्धारित किया जाना एवं 35 फीसदी के तेल अंश से ऊपर प्रत्येक 0.25 फीसदी बिंदु की दर पर 12.87 रुपए प्रति क्विंटल जोड़ने का उल्लेख है।

इसके मुताबिक, 35 फीसदी तेल अंश की सरसों का वर्ष 2022-23 में न्यूनतम समर्थन मूल्य 5,500 रुपए घोषित था, जबकि 48 फीसदी तेल अंश की सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 6,118 रुपए प्रति क्विंटल घोषित किया जाना चाहिए था। इस अनुशंसा की पालन नहीं होने से एक कुंतल के न्यूनतम समर्थन मूल्य 1068 रुपए कम था।

किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट कहते हैं कि पाम आयल को खाद्य तेलों की श्रेणी से हटाकर उसके खाद्य तेल के रूप में उपयोग करने पर प्रतिबंध लगाया जाए। आयातित खाद्य तेलों पर तत्काल रोक लगाई जाए और पाम आॅयल के आयात को सदा सर्वदा के लिए प्रतिबंधित किया जाए।

देश को तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में राष्ट्रीय पाम मिशन को बंद कर देश के परंपरागत खाद्य तेलों के विकास की योजना आरम्भ करे। आयात शुल्क को बढ़ाकर 300 फीसदी करने की तैयारी रखी जाए, जो 100 फीसदी से कम किसी भी स्थिति में न हो।

प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान में 25 फीसदी तक ही खरीद करने सहित एक दिन में एक किसान से अधिकतम 25 कुंतल तक की ही खरीद जैसे अवरोधों को समाप्त किया जाए। दाने-दाने की खरीद की नीति बनने तक तूर, उड़द एवं मसूर जैसी 40 फीसदी तक खरीद करने की छूट सभी दलहन एवं तिलहन की उपजों के लिए की जाए।

खरीद वर्ष भर चालू रखी जाए, जिससे दाने-दाने की खरीद सुनिश्चित हो सके। सरसों सहित सभी तिलहनों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों का निर्धारण तेल अंश के आधार पर किया जाए।आदर्श कृषि उपज एवं पशुपालन (सुविधा एवं संवर्धन) अधिनियम 2017 के प्रारूप के अनुसार संपूर्ण देश में आरक्षित मूल्य घोषित किया जाए, जिससे किसानों को घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य तो प्राप्त होने की सुनिश्चित हो सके।

अगर सरकार सरसों का सही भाव नहीं देती तो वे जंतर मंतर पर 6 अप्रैल 2023 को ‘सरसों सत्याग्रह’ करेंगे। अगर सरकार वास्तव में देश के अन्नदाता के लिए कुछ करना चाहती है तो जो पाम आॅयल, जो खाने योग्य नहीं है, पर तत्काल खाद्य पदार्थों में प्रयोग के लिए रोक लगाए।

सरकार अगर पाम आयल के प्रयोग पर रोक लगा देती है तो स्वत: ही सरसों और अन्य खाद्य तेलों कि कच्चे माल के दाम बढ़ जाएंगे, जिससे किसानों को केवल उनके मूल्य ही नहीं, बल्कि लाभकारी मूल्य मिल पाएगा और देश का किसान खुशहाल होगा। देश का किसान खुशहाल होगा तो हमारी कृषि अर्थव्यवस्था बढ़ाने में किसान का बड़ा योगदान होगा।


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