Wednesday, July 3, 2024
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संसद में फिर पेगासस की गूंज

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Rajesh Maheshwariबीते वर्ष जुलाई में संसद का मानसून सत्र की शुरुआत में चंद ही घंटे शेष थे। इस बीच एक खबर ने भारत के राजनीतिक गलियारों में भूकंप ला दिया था। बवाल ऐसा मचा कि संसद का पूरा मानसून सत्र ही हंगामे की भेंट चढ़ गया। सिर्फ भारत ही नहीं पूरी दुनिया में इस खबर ने हंगामा खड़ा कर दिया। वो खबर पेगासस के बारे में थी। अब फिर से वहीं घटनाक्रम दोहराया जा रहा है। संसद का बजट सत्र चल रहा है। और फिर से पेगासस का शोर सुनाई दे रहा है। वो अलग बात है मानसून सत्र के बाद विपक्ष के किसी नेता के मुंह से पेगासस सुनाई नहीं दिया। चूंकि कृषि बिलों की वापसी के बाद विपक्ष के पास कोई ऐसा मुद्दा नहीं था जिससे सरकार को घेरा जा सके। वहीं पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भी विपक्ष को मोदी सरकार पर हमले के लिए कोई हथियार चाहिए। ऐसे में पेगासस से बेहतर और क्या हो सकता है। विपक्ष खासकर कांग्रेस ने दोबारा से बोतल में बंद पेगासस के जिन्न को फिर से बाहर निकाला है। पेगासस स्पाइवेयर के जरिए विपक्ष ने मोदी सरकार पर जासूसी के आरोप लगाए थे। दावा था कि इस स्पाइवेयर की मदद से 300 से ज्यादा भारतीय नंबरों की जासूसी की है। इसमें पत्रकार और नेताओं की निगरानी करना भी शामिल हैं। मोदी सरकार पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, कुछ मंत्रियों और जजों समेत कई वरिष्ठ लोगों की कथित जासूसी का आरोप लगा था, बाद में ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा।

अमेरिकी समाचारपत्र ‘द न्यूयार्क टाइम्स’ के खुलासे से कि वर्ष 2017 में भारत के इस्राइल से हुए दो अरब डॉलर के रक्षा सौदे के साथ ही इस्राइली स्पाइवेयर पेगासस भी खरीदा गया था, देश की राजनीति इस मुद्दे पर फिर गरमा गई है। रिपोर्ट के खुलासे की टाइमिंग को लेकर सवाल खड़ा किया जा रहा है कि पहले की तरह ही यह संसद सत्र से ठीक पहले आई है, लेकिन मुद्दा बेहद गंभीर है और विशिष्ट लोगों की निजता के हनन से जुड़ा है। जहां तक भारत की बात है तो जुलाई 2017 में पीएम नरेंद्र मोदी ने इजरायल की यात्रा की थी। यह किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा इस्राइल की पहली यात्रा थी। न्यूयार्क टाइम्स ने रिपोर्ट में कहा कि यह यात्रा तब हुई जब भारत ने फिलिस्तीन और इस्राइल के बीच रक्षा समझौता हुआ था। 2 बिलियन डॉलर के रक्षा करार के तहत हथियारों और खुफिया उपकरणों की खरीद शामिल था। विपक्षी दलों काद दावा है कि इस डील में पेगासस भी शामिल था।

रिपोर्ट में इसका उल्लेख किया गया है कि उस दौरान इस्राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने भी भारत की यात्रा की और जून 2019 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद में इस्राइल के समर्थन में मतदान किया ताकि फिलिस्तीनी मानवाधिकार संगठन को पर्यवेक्षक का दर्जा देने से इनकार किया जा सके। हालांकि अब तक न तो भारत सरकार और न ही इस्राइली सरकार ने माना है कि भारत ने पेगासस को खरीदा है। इंडिया में द वायर द्वारा की गई जांच में बताया गया था कि जिन-जिन के खिलाफ जासूसी होने की संभावना थी उसमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी, राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर, तत्कालीन चुनाव आयुक्त अशोक लवासा, सूचना और प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव शामिल थे। इस सूची में द इंडियन एक्सप्रेस के दो वर्तमान संपादकों और एक पूर्व संपादक सहित लगभग 40 अन्य पत्रकारों के नाम भी शामिल थे।

यह मामला पहले ही सुप्रीम कोर्ट में है और कोर्ट ने इस बाबत स्वतंत्र विशेषज्ञों वाली समिति जांच के लिए गठित की है। लेकिन अब तक सरकार ने यह नहीं बताया था कि उसने स्पाइवेयर खरीदा था या नहीं। निस्संदेह ताजा खुलासे से राजग सरकार की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं, जिसके चलते बजट सत्र के हंगामेदार होने के आसार हैं। साथ ही पांच राज्यों के चुनाव, खासकर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश करेगा। इसी गहमागहमी के बीच सुप्रीम कोर्ट में नई याचिका दायर की गई है और चुनिंदा लोगों की जासूसी कराने पर आपराधिक मामला दर्ज करने की मांग की गई है। जैसा कि तय था विपक्ष ने इस मुद्दे को हाथोंहाथ लपक लिया और सोशल मीडिया के जरिये मोदी सरकार पर हमले तेज कर दिए।

पेगासस जासूसी करने वाला एक सॉफ्टवेयर है। इस सॉफ्टवेयर को इस्राइल की कंपनी एनएसओ ग्रुप ने बनाया है। बिना बताए इसे लक्षित आदमी के फोन, लैपटॉप या कंप्यूटर में इंस्टॉल किया जाता है। इसके बाद यह स्पाईवेयर उस शख्स पर नजर रखने लगता है। यह सॉफ्टवेयर उसके डिवाइस से पर्सनल डेटा चुराने लगता है। यही नहीं डेटा को लेकर यह थर्ड पार्टी को भी डिलिवर कर देता है। वैसे इस स्पाईवेयर को बनाने का मकसद आतंकियों और क्रिमिनल्स पर नजर रखना था। एक्सपर्ट के मुताबिक, पेगासस स्पाईवेयर सबसे आसानी से व्हाट्सऐप मिस्ड कॉल के जरिए इंस्टॉल कर दिया जाता है। इसके अलावा आईफोन में यह आईमैसेज की सिक्योरिटी की कमी का फायदा उठाते हुए इंस्टॉल हो जाता है। एक्सपर्ट बताते हैं कि यह स्पाईवेयर इतना खतरनाक है कि यह जीरो क्लिक मैथड का इस्तेमाल करता है। यानी बिना किसी लिंक पर क्लिक किए भी यह आपके डिवाइस में इंस्टॉल हो सकता है। यहां तक कि अगर आप संदिग्ध लगने पर मैसेज को डिलीट भी कर देते हैं तो भी यह आपके डिवाइस में आ जाता है।

दरअसल, विगत वर्ष भी इस मुद्दे पर विवाद के चलते मानसून सत्र धुल गया था। कुछ अंतर्राष्ट्रीय मीडिया समूहों के संगठन ने आरोप लगाया था कि कई भारतीय राजनेताओं, मंत्रियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, बिजनेसमैन तथा मीडियाकर्मियों के विरुद्ध इस्राइली सॉफ्टवेयर पेगासस के जरिये जासूसी की गई थी। विपक्ष का आरोप है कि इस मुद्दे पर संसद व शीर्ष अदालत को अंधेरे में रखा गया। आरोप है कि इस संवेदनशील मामले में सरकार की खामोशी संदेह पैदा करती है। तमाम सवाल उठाये जा रहे हैं कि साइबर हथियार की खरीद, प्रयोग व लक्ष्यों के निर्धारण की अनुमति किसने दी। साथ ही यह कि यह जुटाई जानकारी किसे दी गई।

नए खुलासे के बाद रविवार को सुप्रीम कोर्ट में पेगासस मामले में नई याचिका दायर की गई और 2017 में हुए भारत-इस्राइल रक्षा सौदे की जांच के लिए आदेश का आग्रह किया गया। उल्लेखनीय है कि गत 27 अक्तूबर को तीन सदस्यीय स्वतंत्र विशेषज्ञ समिति गठित करके सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि हर बार राष्ट्रीय सुरक्षा का खतरा बताकर सरकार सुलगते सवालों से नहीं बच सकती। बहरहाल, आने वाले दिनों में अवैध जासूसी के मुद्दे पर भारतीय राजनीति के हंगामेदार होने के आसार बन गये हैं। बजट सत्र से पहले कांग्रेस ने इस मुद्दे पर अपनी राय साफ कर ही दी है। ऐसे में अनुमान इस बात का है कि संसद का बजट सत्र भी मानसून सत्र की भांति हंगामे की भेंट चढ़ सकता है।


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