कुत्ते, गाय व सांड तो पहले भी हमारे देश की सड़कों की ‘शोभा’ बढ़ाते रहते थे। परंतु विगत दस वर्षों में इनकी संख्या में कई गुना इजाफा हो गया है। शायद ही देश का कोई शहर ऐसा हो जहां आवारा कुत्ते द्वारा रोजाना किसी न किसी को काटे जाने व घायल करने की घटनाएं न होती हों। इसी तरह सड़कों पर बेलगाम टहलने वाले गाय, बछड़े व सांडों की संख्या भी पहले से कई गुनी हो चुकी है। शहरों से लेकर गांव तक, सड़कों गलियों, चौराहों, राजमार्ग, एक्सप्रेसवे कहीं भी चले जाएंगे सांड व बछड़ों की भरमार देखने को मिल जाएगी। ये सड़क हादसों का कारण बन रहे हैं। अक्सर इनके सड़कों पर बैठे रहने या सांड युद्ध होने की वजह से सड़कों पर जाम भी लगा रहता है।
यह रास्ता चलते लोगों को सींग मार देते हैं। कभी कभी तो यह इतना आक्रामक हो जाते हैं कि इंसान की जान तक ले लेते हैं। सड़कों गलियों में जगह जगह गाय सांड के गोबर पेशाब फैले रहते हैं। चतुर राजनीतिज्ञों ने धार्मिक महत्व का पशु होने के नाते गाय व सांड के मुद्दे को लेकर समाज को भी दो हिस्सों में विभाजित कर दिया है। एक वह वर्ग है जो अपने दरवाजों पर बुलाकर गाय व सांड को रोटी आदि खिलाता है या किसी निर्धारित स्थान पर चारा आदि डाल देता है। दूसरा वर्ग वह है, जो इन जानवरों से होने वाले किसी नुकसान को लेकर सजग रहता है।
परन्तु दरअसल ‘पुण्यार्थियों’ द्वारा इन्हें खिलाने की वजह से ही यह बार बार उसी द्वार या स्थान पर जाते हैं, जहां से इन्हें कुछ मिलता है। इन गौ ग्रास डालने वाले पुण्यार्थियों की इसी दैनिक प्रवृत्ति का लाभ तमाम चतुर व शातिर गोपालक भी उठाते हैं। वे सुबह सवेरे गाय का दूध निकाल कर अपने पशुओं को घर से बाहर निकाल देते हैं।
और बेचारी गौ माता दिन भर दर दर की ठोकरें खाती रहती है और दरवाजे दरवाजे जाकर एक एक रोटी के लिए तरसती रहती है। परंतु वही गाय शाम को फिर अपने घर वापस पहुंचकर उसी ‘निर्दयी’ पशुपालक को दूध देती है। पिछले दिनों तो उत्तर प्रदेश विधान सभा में सांड गाय व अन्य पशुओं से होने वाले नुक़्सान को लेकर सत्ता और विपक्ष के मध्य बहस छिड़ी।
समाजवादी पार्टी अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश विधान सभा में नेता विपक्ष अखिलेश यादव ने विधानसभा में सड़कों व खेतों में बेलगाम फिरने वाले आवारा पशुओं का मुद्दा उठाते हुए योगी सरकार पर निशाना साधा। अखिलेश ने केवल गाय व सांड ही नहीं, बल्कि गुलदार और टाइगर द्वारा की जाने वाली जनहानि का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि किसान खेतों में काम नहीं कर पा रहा है, डर के कारण खेतों में नहीं जा पा रहे हैं।
उन्होंने बताया कि पीलीभीत टाइगर रिजर्व में 40 लोगों की जान चली गई। इसी तरह उन्होंने सदन में दावा किया कि ऐसा कोई जिला नहीं बचा जहां पर सांड से किसी की जान न गई होगी। स्वयं मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के कार्यालय के एक अधिकारी की कार आवारा पशु से टकराई जिसमें अधिकारी की मौत हो गई थी।
अखिलेश ने बताया कि उन्होंने इनके हमले से मरने वालों की सूची सरकार को सौंपी थी, लेकिन उनकी कोई मदद नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि सरकार इस पर काम करे, ताकि लोगों की जान बच सके। ऐसे उपाय करें कि सड़कों पर सांड खुले आम न घूमें, ताकि लोग न मरें और कोई दुर्घटना भी न घटे।
नेता विपक्ष ने तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से यह भी पूछा कि क्या सड़कों पर सांड घुमते हुये उत्तर प्रदेश से ही एक ट्रिलयन डॉलर की इकोनॉमी का सपना पूरा होगा? उन्होंने यहां तक कहा की अगर मुख्यमंत्री से कुछ नहीं हो सकता है तो कम से कम गोरखपुर में ‘सांड सफारी’ ही बना लें।
परंतु इन आवारा पशुओं से किसानों और राहगीरों को राहत देने के नाम पर मुख्यमंत्री ने किसी योजना या रोडमैप का जिक्र करने के बजाय इसका पूरी तरह से राजनैतिक उत्तर दिया जो उनका वोट बैंक सुनना चाहता है। योगी ने कहा कि जिस सांड की आप (अखिलेश) बात कर रहे हैं, वह खेती बाड़ी (पशुधन) का हिस्सा होता है। आपके जमाने में ये बूचड़खाने के हवाले होते थे, हमारे समय में ऐसा नहीं है।
छुट्टा जानवरों से दुखी किसानों का रोष पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के पशुपालन व पशुधन मंत्री धरम पाल सिंह पर उस समय उतरा जब वे बरेली जिले के अपने गृह क्षेत्र सिरौली में जा रहे थे। उनके साथ अपर मुख्य सचिव डा रजनीश दुबे भी थे। ग्रामीणों ने उस समय सैकड़ों छुट्टा गोवंश बीच मार्ग पर खड़ा कर मंत्री व अधिकारीयों का काफिला रोक लिया।
उन्होंने करीब 40 मिनट तक मंत्री के काफिले को रोके रखा और नारेबाजी करते रहे। ग्रामीण किसानों व महिलाओं ने मंत्री को खूब खरी-खोटी सुनाई। इस दौरान अधिकारियों व किसानों के बीच नोक-झोंक भी हुई। बाद में स्वयं मंत्री को गाड़ी से नीचे उतरना पड़ा और छुट्टा जानवरों से निजात दिलाने का वादा करने पर ही किसानों ने उन्हें आगे जाने दिया।
दरअसल वर्तमान सरकार को ऐसे आवारा पशुओं से किसानों की फसलों को होने वाले नुकसान की फिक्र नहीं। न ही सड़कों पर इनके कारण होने वाले हादसों में मरने वालों से कोई वास्ता। कई वीडियो तो ऐसे दर्दनाक देखने को मिले, जिनमें स्कूल जाते बच्चों पर गायों व सांडों ने जानलेवा हमला कर दिया। बुजुर्गों व औरतों को मार डाला। कभी कभी तो बीच बाजार में यह अचानक ही भड़क उठते हैं और सरपट जिधर चाहें उधर भागने लगते हैं।
नतीजतन तमाम लोग जख़्मी हो जाते हैं। सरकार जनता की उस बेबसी व मजबूरी पर चिंतित नहीं, बल्कि वह गर्व इस बात पर करती है कि वह गऊ माता और नंदी महाराज का संरक्षण कर रही है। शायद इसी लिए बेलगाम पशुओं के हमलों से लोग मर रहे हैं और लोगों की मौत पर भी सरकार मूक दर्शक बनी बैठी है।
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