Sunday, September 24, 2023
Homeसंवाददो नाव की सवारी

दो नाव की सवारी

- Advertisement -

Amritvani 21


दमन नामक एक छात्र अपने गुरु से धनुर्विद्या सीख रहा था। उसके गुरु अत्यंत प्रसिद्ध थे। वे सभी छात्रों को बड़े मनोयोग से सिखाते थे। दमन सभी छात्रों से प्रतिस्पर्धा करता था और उनसे हर हाल में आगे निकलना चाहता था।

वह अपने गुरु द्वारा सिखाई गई विद्या को पूरे मन से सीखता था, लेकिन उसे लगता था कि यदि उसे अन्य छात्रों से आगे निकलना है तो धनुर्विधा को एक और गुरु से भी सीखना चाहिए। जब वह दो-दो गुरुओं से विद्या सीखेगा तो निश्चय ही अन्य छात्रों से आगे निकल जाएगा।

वह अपने गुरु का बहुत सम्मान करता था। इसलिए उसने सोचा कि इस संदर्भ में उनसे भी पूछा जाए। दमन बोला, गुरुजी, मुझे धनुर्विद्या बहुत पसंद है। मैं चाहता हूं कि इसी में मैं अपना भविष्य बनाऊं। गुरु बोले, बेटा, यह तो बहुत अच्छी बात है। यदि तुम मेहनत करोगे तो अवश्य इस कला में सफल हो जाओगे।

दमन बोला, पर, गुरुजी अभी तो मेरे सीखने का समय है। मैं चाहता हूं कि आपके साथ-साथ एक और गुरु से मैं धनुर्विद्या की शिक्षा लूं। आपका इस बारे में क्या विचार है? उसकी बात सुनकर गुरुजी बोले, बेटा, दो नावों की सवारी करने वाला व्यक्ति कभी भी लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाता।

यदि तुम्हें इस विद्या में सफलता प्राप्त करनी है तो पहले एक तरफ पूरा ध्यान लगाओ। यदि तुम इस विद्या में पारंगत होना चाहते हो तो दूसरे गुरु की बजाय स्वयं इस प्रतिभा को निखारो और अकेले में अभ्यास करो। एक नाव पर ही सवारी करके लक्ष्य तक पहुंचो।

दमन गुरु का आशय समझ गया। वह अकेले में धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा। अक्सर ऐसा किया जाता है कि कई लोग कई काम एक साथ करना चाहते हैं, इसलिए किसी एक को भी पूरा नहीं कर पाते।


janwani address 3

- Advertisement -
- Advertisment -spot_img

Recent Comments