- सपा-रालोद और कांग्रेस की दोस्ती के बाद बसपा का रुख अहम
- 16 को जयंत चौधरी मेरठ में करेंगे समरसता सम्मेलन
- भाजपा बड़े पैमाने पर जिलों के संगठन में फेरबदल की तैयारी में
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: लोकसभा चुनाव के पहले सभी प्रमुख विपक्षी दल एकाएक पश्चिमी यूपी में अति सक्रिय हो गए हैं। विपक्षी दलों की एकजुटता से यहां नए सियासी समीकरण बनने जा रहे हैं। सपा रालोद और कांग्रेस के साथ आने के बाद सभी की निगाहें बसपा पर हैं। हालांकि मायावती स्पष्ट तौर पर अभी तक यही कह रही हैं कि बसपा अकेले दम पर चुनाव में उतरेगी,
लेकिन क्रिकेट की तरह सियासत भी असीम संभावनाओं का खेल है। ऐसे में अंतिम वक्त में वह क्या कदम उठाएंगी यह कोई नहीं कह सकता। विपक्ष की घेराबंदी को देखते हुए भाजपा ने भी सक्रियता बढ़ा दी है। जल्द ही बड़े पैमाने पर पार्टी जिलों के संगठन में बदलाव करने जा रही है।
भाजपा को 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद हुए ध्रुवीकरण के चलते 2014 के लोकसभा चुनाव में पूरे पश्चिमी यूपी में भारी बढ़त मिली थी। तब नरेंद्र मोदी ने मेरठ में विशाल रैली करके चुनावी शंखनाद किया था। इसके बाद 2019 में भी मेरठ से ही पीएम मोदी ने चुनावी जनसभाएं शुरू कीं। दोनों ही बार पश्चिमी यूपी की सीटों पर लोकसभा चुनाव पहले चरण में ही हुआ। यहां मिली बढ़त का लाभ भाजपा को पूरे यूपी में मिलता चला गया।
पश्चिमी यूपी में मुस्लिम और दलित वोटर बेहद अहम हैं। इसी वजह से भाजपा यहां ध्रुवीकरण को धार देने में कामयाब होती रही है। यूपी में 2017 के बाद योगी सरकार ने कई बड़े मुस्लिम चेहरों के आभामंडल को खत्म करने के लिए कानूनी डंडा जमकर चलाया है। रामपुर में आजम खां, मेरठ में हाजी याकूब, सहारनपुर में हाजी इकबाल पर लगातार कार्रवाई में भी सियासी संदेश निहित है।
सोतीगंज और एनकाउंटर जैसे मसलों पर भाजपा कानून व्यवस्था का माइलेज लेने की भरपूर कोशिश करेगी। पश्चिमी यूपी में दलित वोट बैंक पर भी सबकी निगाहें हैं। जयंत चौधरी और अखिलेश यादव दलितों को साधने के लिए आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर को साध रहे हैं। बसपा से निकाले गए सहारनपुर के नेता इमरान मसूद को भी जयंत साधने की जुगत में हैं। वह त्यागी और गुर्जर नेताओं को भी तरजीह दे रहे हैं।
विपक्षी दल जहां सोशल इंजीनियरिंग में जुटे हैं वहीं भाजपा की तैयारी भी कम नहीं। जल्द ही पश्चिमी यूपी के करीब आधे जिलाध्यक्षों को बदलने की आहट सुनाई दे रही है। भाजपा और आरएसएस के आनुषांगिक संगठनों की सक्रियता बढ़ गई है। सभी में संगठन को कसा जा रहा है। भाजपा का मुख्य फोकस जहां अति पिछड़ी जातियों पर है वहीं पार्टी संगठन से टिकट वितरण तक जाटों को खासी तरजीह दी जा रही है। जाट, गुर्जर और यादव मतों में सेंध लगाने में भाजपा ने पूरी ताकत झोंक दी है।
सोशल मीडिया पर सबका फोकस
सभी प्रमुख दल इन दिनों सोशल मीडिया में जंग के लिए वार रूम बना रहे हैं। आईटी सेल में नए युवाओें की टीमें तैयार हो रही हैं। जिम्मेदारियों के साथ इन्हें लैपटॉप, कंप्यूटर एवं अन्य संसाधन भी दिए जा रहे हैं। सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को भी अपने पाले में लाने के लिए बैठकें हो रही हैं।
वेस्ट यूपी में 2022 के विधानसभा चुनाव में किसान आंदोलन का खासा असर रहा। मुजफ्फरनगर जैसे जिले में भाजपा को मुसीबतों का सामना करना पड़ा। सेना में अग्निवीर भर्ती और बेरोजगारी जैसे मसले भी यहां बेहद अहम हैं। पश्चिम के गांवों से बड़ी संख्या में युवा पुलिस और फौज की नौकरी में जाते हैं। छोटी छोटी सरकारी नौकरियों का यहां गांवों की तरक्की में खासा योगदान है।