Friday, December 13, 2024
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भाजपा की कमंडल के साथ मंडल की राजनीति

Nazariya


भाजपा ने राजस्थान और मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में गुमनाम चेहरों को सत्ता सौंप कर पार्टी आलाकमान ने जो संदेश देने की कोशिश की है, वो तो नेताओं को मिल चुका है। राजनीतिक विश्लेषक और तमाम जानकार इसके अपने अलग अलग मतलब निकाल रहे हैं। लेकिन ये एक दम सौ फीसदी तय है कि केंद्र में ऐसा नहीं होने वाला है। बल्कि केंद्र की सत्ता को और मजबूत करने के लिए ही इन राज्यों में इतनी कवायद की गई है। प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह राजनीति के व्याकरण को ही बदल रहे हैं। वह व्याकरण ये कि निर्णय एक है, लेकिन संदेश कई निकल रहे हैं। सकारात्मक संदेश ये निकला कि पिछली कतार में बैठा संगठन के लिए काम करने वाला कार्यकर्ता भी किसी दिन बड़ा नेता बन कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ सकता है। लेकिन इसे भाजपा में 2014 के बाद समय-समय पर लाई जा रही वीआरएस स्कीम भी माना जाना चाहिए।

अगर थोड़ा पीछे मुड़ कर देखा जाए तो इसी स्कीम के शिकार भाजपा के बड़े मुस्लिम चेहरे मुख्तार अब्बास नकवी और शहनवाज हुसैन के साथ बिहार में सुशील मोदी भी हुए थे। ये संदेश उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के लिए भी है। क्यों कि 2023 की जीत के बाद वसुंधरा राजे सिंधिया और शिवराज सिंह चौहान मान कर चल रहे थे कि उनको तो कोई हटाने की हिम्मत ही नहीं करेगा। मगर, वैसा हुआ नहीं। राज्यों में भाजपा का शिवराज सिंह चौहान के कद का कोई नेता नहीं है। इस लिए भाजपा आलाकमान 2022 में यूपी के घटनाक्रम को देखते हुए कोई जोखिम नहीं लेना चाहा। जब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भरोसेमंद नौकरशाह रहे अरविंद शर्मा से जिस तरह वो पेश आए, किसी ने कल्पना तक नहीं की थी। जबकि वसुंधरा राजे के तीखे तेवर और बीजेपी नेतृत्व से टकराव के किस्से कोई नये नहीं हैं।

2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बीजेपी की कमान संभालने से पहले भी वसुंधरा राजे अक्सर बीजेपी आलाकमान की परवाह न करते देखी गई हैं। वसुंधरा राजे को हटाकर बीजेपी नेतृत्व ने एक संदेश ये भी देने की कोशिश की है कि ये सब अब नहीं चलने वाला है। यहां तक कि परिणाम आने के बाद भी वसुंधरा विधायकों की बाड़ेबंदी में सक्रिय दिखीं। आखिर में राजनाथ सिंह ने उनको कोई घुट्टी पिलाई और विधायक दल की बैठक में केंद्रीय नेतृत्व की ओर से भेजा गया एक लाइन का प्रस्ताव उन्हीं से पेश करवाया। इन बदलावों के पीछे भाजपा का एक बड़ा मकसद ये भी है कि वह 2024 के चुनाव में विपक्ष को मंडल की राजनीति के दौर में नहीं लौटना देना चाहती है। वह 25 साल से सफलता का सूत्र बने कमंडल के साथ मंडल का सामंजस्य भी बैठाना चाहती थी। राजस्थान में भजन लाल शर्मा कमंडल के आइकन हैं तो एमपी में मोहन लाल यादव और छत्तीसगढ़ में साव मंडल का झंडा बुलंद करेंगे। सत्ता संभालते ही तीनों मुख्यमंत्री मंडल और कमंडल को साधने में जुट गए हैं। बीजेपी ने हिंदुत्व के मुद्दे के साथ-साथ विपक्ष को जातिगत राजनीति में भी पीछे छोड़ दिया है? सनद रहे कि मंडल आयोग ने क्षेत्रीय पार्टियों और जातिगत पहचान से जुड़ी राजनीति को भी पंख दिए थे। उत्तर प्रदेश और बिहार में आरजेडी, समाजवादी पार्टी, जनता दल यूनाइटेड जैसी पार्टियों का कद बढ़ा। राहुल गांधी सहित समूचा विपक्ष हर सभा में जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाते रहे हैं।

भाजपा ने तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्री का चुनाव अलग तरीके से कर के यादव ओबीसी के बीच एक मजबूत आधार बनाकर समाजवादी पार्टी और आरजेडी के यादव-मुस्लिम गठजोड़ को 2024 के लिए सीधे चुनौती दी है। आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश में 50 फीसदी ओबीसी मतदाता हैं। कहा जाता है कि मध्य प्रदेश में बीजेपी की जीत में ओबीसी समुदाय के वोटरों की बड़ी भूमिका रही है। इसीलिए भाजपा ने यहां ओबीसी समुदाय के मोहन यादव को ही सीएम बनाया, लेकिन साथ में ब्राह्मण राजेंद्र शुक्ला और अनुसूचित जाति से आने वाले जगदीश देवड़ा को डिप्टी सीएम बना दिया। राजेंद्र शुक्ला जो कभी कांग्रेसी हुआ करते थे, इस समय मध्य प्रदेश के सबसे बड़े और जनाधार वाले ब्राह्मण नेता हैं। विंध्य क्षेत्र में उनकी छवि विकास पुरुष की है। यही कारण है कि कभी कांग्रेस का गढ़ रहा विंध्य क्षेत्र चुनाव दर चुनाव भाजपा की सफलता की नई इबारत लिख रहा है। अर्जुन सिंह जैसे दिग्गज के पुत्र अजय सिंह राहुल को अपनी विरासत बचाने के लिए कठोर परिश्रम करना पड़ रहा है। सतना से भाजपा के कई बार के सांसद गणेश सिंह की हार को अपवाद माना जाना चाहिए। ये राजेंद्र शुक्ला का ही कमाल है कि ऐन चुनाव के समय कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए पूर्व विधानसभा अध्यक्ष श्रीनिवासन तिवारी के नाती सिद्धार्थ तिवारी को सिटिंग एमएलए का टिकट काट कर त्योंथर से जीता कर लाए।

वहीं छत्तीसगढ़ में आदिवासी इलाकों में मिली बढ़त को ध्यान में रखते हुए पार्टी ने इसी समुदाय के विष्णुदेव साय को सीएम पद दिया है। राजस्थान में भी पार्टी ने ब्राह्मण सीएम के साथ राजपूत और दलित समुदाय से आने वाले दो डिप्टी सीएम भी नियुक्त कर दिए हैं। जाहिर है कि मोदी शाह की जोड़ी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं, जिसका असर 2024 के चुनाव में दिखना चाहिए, वह भी बिना किसी चुनौती के साथ। मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने विधानसभा में आदिवासी नेता उमंग सिंगार को नेतृत्व सौंपा कर मुकाबले की कोशिश की है, लेकिन ये देखना होगा कि वह विपक्षी साथियों के साथ कितना तालमेल बैठाती है।


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