Monday, July 8, 2024
- Advertisement -
HomeUttar Pradesh NewsSaharanpurसियासत के दो रसूखदार घरानों में फिर से दो-दो हाथ

सियासत के दो रसूखदार घरानों में फिर से दो-दो हाथ

- Advertisement -
  • चौधरी यशपाल और काजी रसीद मसूद की विरासत बचाने की चुनौती

जनवाणी संवाददाता  |

सहारनपुर: वैसे तो सहारनपुर में कई सियासी घराने हैं किंतु चौधरी यशपाल और काजी रसीद मसूद ही लंबे समय तक यहां की सियासत की धुरी रहे हैं। हालांकि, अब ये दोनों दिग्गज दुनिया में नहीं हैं और इनकी विरासत को बचाने की चुनौती इनके परिवार वालों पर है। काजी परिवार की बात करें तो इनमें फूट पड़ चुकी है। काजी के भतीजे इमरान सपा तो उनके सगे भाई नोमान बसपा की झंडाबरदारी कर रहे हैं। इमरान चार तो नोमान दो चुनाव हार चुके है|

WhatsApp Image 2022 02 03 at 5.48.10 PM

उधर, चौधरी यशपाल सिंह की संतति पर भी विरासत को सहेजने की कठोर चुनौतियां हैं। चौधरी यशपाल के बेटे इंद्रसेन भी दो चुनाव हार चुके हंै। फिलवक्त, इन दोनों परिवारों का यह विधानसभा चुनाव फिर से इम्तेहान लेने जा रहा है। यशपाल के बेटे इंद्रसेन गंगोह सीट पर सपा के तो काजी के भतीजे नोमान मसूद बसपा के टिकट पर इसी सीट से उम्मीदवार हैं।

बताते चलें कि सहारनपुर की राजनीति में काजी रसीद मसूद ने हमेशा से चौधरी यशपाल को टक्कर दी। कभी यशपाल सिंह का पलड़ा भारी रहता तो कभी काजी रसीद मसूद का। मसूद का सियासी सफर हालांकि, यशपाल सिंह के थोड़ा बाद शुरू हुआ। रसीद मसूद वर्ष 1974 में नकुड़ विधानसभा क्षेत्र से पहला चुनाव लड़े और हार गए थे।

वर्ष 1977 में जनता पार्टी से लोकसभा का चुनाव सहारनपुर सीट से वह जरूर जीते थे। इसके बाद कई बार काजी रसीद मसूद ने दिल्ली की डगर आसान की। वह राज्य सभा सदस्य भी रहे। केंद्र में काजी रसीद मसूद स्वास्थ्य राज्यमंत्री भी रहे। जिंदगी के आखिरी पड़ाव में उन्हें सजा भी हुई।

अब काजी रसीद मसूद के धुर विरोधी चौधरी यशपाल की बात करें तो उनका भी राजनीतिक सफर काफी चमकदार रहा है। यशपाल चौधरी पांच बार विधायक, एक बार एमएलसी और एक बार सांसद रहे। वह 1980 में विश्वनाथ प्रताप सिंह व श्रीपति मिश्रा के मुख्यमंत्रित्व काल में प्रदेश के कृषि मंत्री के पद पर भी रहे। 1984 में वह कांग्रेस टिकट पर सहारनपुर सीट से लोकसभा के लिए चुने गए। तब उन्होंने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी काजी रशीद मसूद को पराजित किया था।

चौ. यशपाल सिंह का ज्यादा समय कांग्रेस में बीता। 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा के टिकट पर सहारनपुर सीट से भी चुनाव लड़ा। चौ. यशपाल सिंह गुर्जर नेता के रूप में सहारनपुर की सियासत में चार दशक तक छाए रहे। 1977 में जनता पार्टी की लहर में भी वह सहारनपुर की नकुड़ विधानसभा सीट से चौ. रामशरणदास को हराकर विजयी हुए थे। फिलहाल, ये दोनों दिग्गज अब दुनिया में नहीं हैं। और इन दोनों परिवारों पर विरासत बचाने का संकट है।

काजी परिवार में फूट पड़ चुकी है। काजी रसीद मसूद के भतीजे इमरान मसूद सपा में आ गए हैं तो उनके भाई नोमान मसूद गंगोह सीट से बसपा के उम्मीदवार है  नोमान इस सीट से दो बार चुनाव हार चुके हैं। इमरान की बात करें तो वह भी दो बार लोकसभा और दो ही बार विधानसभा का चुनाव हार गए हैं। चौधरी यशपाल के परिवार में भी विरासत को लेकर पहाड़ सी चुनौतियां।

चौैधरी रुद्रसेन एक बार विस चुनाव दो उनके भाई इंद्रसेन दो बार विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। सन 2022 का विधानसभा चुनाव इन दोनों परिवारों का कड़ा और बड़ा इम्तेहान ले रहा है। कि गंगोह जिसे कि सहारनपुर की राजनीतिक राजधानी कहा जाता है, वहां काजी और चौधरी यशपाल का परिवार फिर आमने-सामने है। जीत का सेहरा किसके सिर बंधेगा, यह तो वक्त बताएगा किंतु गंगोह सीट पर जंग दिलचस्प हो चुकी है।

What’s your Reaction?
+1
0
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments