डॉ मनोज कुमार तिवारी
परीक्षा को चुनौती के रूप में न लेकर समाज के सभी घटकों का यह दायित्व है कि परीक्षा को उत्सव के रूप में मनाए ताकि विद्यार्थी अच्छे मनोदशा में रहकर अपने अधिगम, स्मृति, प्रत्यक्षीकरण, चिंतन एवं समस्या समाधान की क्षमताओं का सही ढंग से उपयोग कर न केवल परीक्षा में अच्छे अंक लाने में सफल हो बल्कि कई जिंदगियों को असमय मौत के आगोश में जाने से बचाया जा सकता है तथा एक उज्जवल राष्ट्र की परिकल्पना को साकार किया जा सकता है।
परीक्षा का समय निकट आते ही छात्रों की दिनचर्या अनियमित होने लगती है जिससे छात्रों का समय व्यवस्थापन, खानपान, आराम का समय, खेलकूद, मनोरंजन सभी की व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाता है। छात्रों के संवेगात्मक अवस्था में नकारात्मकता अधिक होने से उनकी संज्ञानात्मक क्षमताएं (सीखना, स्मृति, चिंतन, प्रत्यक्षीकरण व अन्य) ठीक से काम नहीं करती। छात्र अधिक श्रम करते हैं फिर भी अधिगम व स्मृति कम ही होता है जिसके परिणाम स्वरूप छात्रों में तनाव बढ़ने लगता है और यह श्रृंखलाबद्ध तरीके से बढ़ता ही जाता है इसलिए हर स्तर पर छात्रों के परीक्षा संबंधित तनाव को नियंत्रित एवं व्यवस्थित करने का प्रयास किया जाना चाहिए
2022 में एनसीईआरटी द्वारा की गई एक सर्वे के अनुसार कक्षा 9 से 12 तक के 80 प्रतिशत छात्रों मैं परीक्षा एवं प्राप्तांक संबंधित दुश्चिंता पाई गई जो उनके निष्पादन को नकारात्मक ढंग से प्रभावित करती है। अध्ययनों में यह पाया गया है कि छात्रों में परीक्षा तनाव परीक्षा के एक सप्ताह पहले सबसे उच्चतम स्तर पर होता है। परीक्षा तनाव के गंभीर परिणाम और उसके व्यवस्थापन के महत्व को देखते हुए माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी प्रतिवर्ष छात्रों से बातचीत करके परीक्षा तनाव व्यवस्थापन अभियान को राष्ट्रीय स्तर पर गति प्रदान करते हैं
परीक्षा तनाव के कारण
नियमित अध्ययन न करना, परीक्षा की घोषणा हो जाने पर तैयारी करना, समय की कमी, असफलता का डर, प्रयास के बजाय परिणाम पर अधिक सोचना, अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव, शिक्षक एवं माता-पिता द्वारा बोर्ड परीक्षाओं के लिए भय का माहौल खड़ा करना, अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा, जीवन में परीक्षा प्राप्तांक को ही सब कुछ मान लेना, अभिभावकों द्वारा बच्चों का अतार्किक रूप से दूसरे बच्चों से तुलना करना, अभिभावकों व शिक्षकों द्वारा बच्चों की क्षमता से अधिक की अपेक्षा रखना।
परीक्षा तनाव के लक्षण
हमेशा तनाव ग्रस्त रहना , अनिद्रा, सिर दर्द, पेट दर्द, मिचली, उदासी,
थकान, चिड़चिड़ापन, ध्यान की समस्या, भूख में गड़बड़ी, अव्यवस्थित दिनचर्या, नकारात्मक विचार आना, परीक्षा संबंधित डरावने सपने आना, अध्ययन में ध्यान केंद्रित न कर पाना, परीक्षा नजदीक आते ही शारीरिक बीमारी के लक्षण बिना कारण प्रदर्शित होना आदि।
समय व्यवस्थापन है महत्वपूर्ण
समय व्यवस्थापन अध्ययन कौशल का एक अहम् हिस्सा है जो विद्यार्थी अध्ययन समय-सारणी के अनुसार करते हैं वे न केवल कम समय में ज्यादा सीखते हैं बल्कि देर से भूलते भी हैं। जो विद्यार्थी लिखित समय- सारणी नहीं बनाते वे न केवल अधिक समय खर्च करते हैं बल्कि परीक्षा में उनकी सफलता संदिग्ध बनी रहती है क्योंकि वे कुछ विषय अधिक पढ़ते हैं तथा कुछ विषय कम पढने से परीक्षा के समय उच्च स्तर का तनाव होता हैं जिससे पढ़े हुए विषयों के भी विस्मरण होने की संभावना उच्च स्तर की रहती है। परीक्षा की तैयारी कर रहे विद्यार्थियों को अध्ययन हेतु लिखित समय-सारणी बनाकर अध्ययन वाले स्थान पर लगा के रखना चाहिए ताकि वे आवश्यकता अनुसार सभी विषयों को समुचित समय प्रदान कर सकें।
पाठ्यक्रम के अनुसार योजना बनाएं
विषयों के पाठ्यक्रम की मात्रा, उनकी प्रकृति तथा छात्र की उस विषय की तैयारी की स्थिति के अनुसार अध्ययन की योजना बनानी चाहिए जिस विषय का पाठ्यक्रम बडा तथा कठिन हो उस विषय को अपेक्षाकृत अधिक समय प्रदान करना चाहिए तथा जिस विषय की तैयारी हो चुकी हो उसे थोड़ा कम समय देना चाहिए लेकिन उसका भी नियमित अभ्यास करते रहना चाहिए अन्यथा उसके विस्मरण होने का जोखिम बढ़ जाता है।
अभिभावक की जिम्मेदारी
बच्चे को व्यवस्थित रूप से अध्ययन करने हेतु प्रोत्साहित करें, परीक्षा की तैयारी के समय सारिणी के बारे में बच्चों से चर्चा करें, संतुलित आहार की व्यवस्था करें, अध्ययन हेतु उचित वातावरण का निर्माण करें, परीक्षा के प्रति तनावपूर्ण माहौल न बनने दें, बच्चों के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखें, बच्चों के व्यवहार में अचानक से यदि कोई बड़ा परिवर्तन हो तो उससे बातचीत कर उसके कारण जानने का प्रयास करें यदि उसे किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता हो तो उसे उपलब्ध करें।
शिक्षकों की जिम्मेदारी
छात्रों में आत्मविश्वास जगाएं, छात्रों से चर्चा करें कि जैसे अन्य परीक्षाएं हुई है वैसे ही बोर्ड परीक्षा भी होगी घबराने ऐसी कोई बात नहीं है, बच्चों में शुरू से अध्ययन हेतु आदत विकसित करने का प्रयास करें, छात्रों को अध्ययन कौशलों की जानकारी प्रदान करें, छात्रों को बताएं की परीक्षा कोई चुनौती नहीं बल्कि आपके उन्नति के लिए अवसर है, छात्रों को एहसास दिलाएं कि किसी प्रकार की कठिनाई होने पर हम आपके सहयोग के लिए उपलब्ध हैं, बच्चों के मनोदशा में व्यापक परिवर्तन दिखाई पड़े तो उससे सहानुभूति पूर्वक बातचीत करके कारण का पता लगाएं तथा उसके निवारण में सहयोग प्रदान करें।
मनोवैज्ञानिक से मदद लेने में न करें संकोच
छात्रों को परीक्षा संबंधित तनाव न हो इसके लिए माता-पिता परिवार के सदस्यों, शिक्षकों, साथी समूह एवं समाज सभी की जिम्मेदारी है। उपर्युक्त बताए गए उपाय का उपयोग करने के बाद भी यदि छात्र का तनाव नियंत्रित न हो तो निसंकोच मनोवैज्ञानिक से मदद ली जा सकती है मनोवैज्ञानिक विशेष परामर्श विधियों, रिलैक्सेशन एक्सरसाइज व सोने के तरीके में बदलाव के माध्यम से छात्र के परीक्षा संबंधित तनाव को व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण रूप से मददगार साबित होते हैं। यदि छात्र के परीक्षा तनाव को सही समय पर व्यवस्थित नहीं किया जाता है तो न केवल उसका कैरियर खराब होता है बल्कि कई बार विद्यार्थी आत्महत्या जैसे आत्मघाती कदम भी उठा लेते हैं।
संक्षेप में कह सकते हैं कि परीक्षा को चुनौती के रूप में न लेकर समाज के सभी घटकों का यह दायित्व है कि परीक्षा को उत्सव के रूप में मनाए ताकि विद्यार्थी अच्छे मनोदशा में रहकर अपने अधिगम, स्मृति, प्रत्यक्षीकरण, चिंतन एवं समस्या समाधान की क्षमताओं का सही ढंग से उपयोग कर न केवल परीक्षा में अच्छे अंक लाने में सफल हो बल्कि कई जिंदगियों को असमय मौत के आगोश में जाने से बचाया जा सकता है तथा एक उज्जवल राष्ट्र की परिकल्पना को साकार किया जा सकता है।