शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य शरीर बहुत ही दुर्लभ है। इसे आलस्य,प्रमाद और भोग आदि में व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए। यदि इसे ऐसे ही गंवा दिया तो यह इस अवसर की सबसे बड़ी हानि होगी। भारतीय दर्शन, भारतीय चिंतन और संस्कृति के अनुसार यह चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद ही मिलता है। कदाचित सब कुछ पता होने के बाद भी हम इसका सदुपयोग नहीं करना चाहते और जीवनभर मायाचक्र में फँसकर इसे चौरासी लाख योनियों में भटकने के लिए पुन: छोड़ देते हैं।
यह सत्य है कि मनुष्य शरीर में विराजमान आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है। इसे कोई मार नहीं सकता, जला नहीं सकता और काट नहीं सकता, क्योंकि यह ईश्वर का अंश है। यह हमें कभी गलत काम करने का आदेश नहीं देती। मन और इन्द्रियाँ ही मनुष्य को भटकाने का काम करती हैं। जो सतर्क और सजग हैं, उन्हीं का मनुष्य जीवन सफल है।
मनुष्य जीवन की सार्थकता तभी है जब हम लोक और परलोक को अच्छा बनाने का प्रयास करते हैं। अपने हित या स्वार्थ के लिए किसी का अहित नहीं करते । श्रुति कहती है कि यदि मनुष्य स्वयं को केवल शरीर या देह ही मानता है तो शरीरमात्र को सजाने, संवारने एवं इन्द्रियजन्य सुखों की प्राप्ति के पीछे उसकी सारी जीवन यात्र सिमटकर रह जाती है।
वह शरीर के लिए जीता है, इन्द्रियसुख की प्राप्ति के लिए ही जीता और मर जाता है, क्योंकि वह स्वयं को शरीरमात्र , देहमात्र ही मानता है अर्थात वह शरीरसुख, इन्द्रियसुख, विषयसुख को ही सच्चा सुख मानता है और इन्हीं सुखों को पाने के मायाजाल में वह घिनौने से घिनोने काम भी कर बैठता है और कानून उसे जीवनभर के लिए कारागार में डाल देता है। जीते जी उसका जीवन नरक बन जाता है। समाज में मुँह दिखाने योग्य नहीं रहता।
यह भी सत्य है कि भौतिकता के वशीभूत होकर जीवन एकांगी बन जाता है। भौतिकता की उतनी ही आवश्यकता है जिससे हमारे आत्मकल्याण पर प्रभाव न पड़े क्योंकि वर्तमान में बहुत कुछ बदल गया है। खानपान, व्यवहार, आचार विचार और विज्ञान की उन्नति ने समयानुकूल बदलने के लिए मजबूर कर दिया है।
गर्मी के दिनों में हमारे लिए बिना पंखे, कूलर , एसी और फ्रिज आदि के बिना कमसे कम नगरों में तो रहना बहुत मुश्किल है लेकिन हम जो भी सुख सुविधाएं जीवन जीने के लिए एकत्र करें, वह सब मेहनत की कमाई से ही हों। हम आलसी, प्रमादी न बनें। अपने आत्मकल्याण के लिए भी सोचें, अर्थात योग करें, वेद वेदांग और श्रेष्ठ पुस्तकों से जुड़ें और साथ ही अच्छे मनुष्यों का सत्संग भी करें। ऐसा करने से हमारा वर्तमान भी सुंदर बनेगा और भविष्य अर्थात परलोक भी सुधरेगा जिसके लिए ईश्वर ने हमें जन्म दिया है।
डॉ. राकेश चक्र