डॉ. नीरज सुधांशु |
कुपोषण का अर्थ है पोषण की कमी। पोषण मिलता है उचित आहार-विहार द्वारा। जब अनुचित या मिथ्या आहार-विहार किया जाता है तो प्राय: शरीर में किसी न किसी पदार्थ की कमी होना स्वाभाविक है एवं उस पदार्थ की कमी विभिन्न लक्षणों के रूप में व्यक्त हो कर शरीर को रोगी बना देती है। कुपोषण स्त्री, पुरूष व बच्चे किसी में भी पाया जा सकता है। यहां हम चर्चा करेंगे स्त्रियों में कुपोषण की समस्या पर।
स्त्री चूंकि परिवार व समाज का महत्त्वपूर्ण स्तंभ है-अत: उसका स्वस्थ रहना अति-आवश्यक है। रोगिणी या कमजोर स्त्री का परिवार कभी सुखी नहीं हो सकता, अत: यह समस्या केवल शारीरिक ही नहीं अपितु सामाजिक समस्या भी है।
लक्षण
कुपोषण होने पर प्राय: शारीरिक कमजोरी, मानसिक अवसाद, खून की कमी, शरीर का पीला या सफेद पड़ना, आंखों के चारों ओर कालिमा होना, आंखें गड्डे में धंसी दिखाई पडा, भूख की कमी, थोड़े प्रयास से भी श्वांस चढ़ना, चक्कर आना, इसके अलावा किसी विशेष विटामिन या आयरन, प्रोटीन व मिनरल की कमी से होने वाले विशेष लक्षण दिखलाई पड़ते हैं। प्रोटीन की कमी के कारण मांसपेशियों का कमजोर होना और यकृत का ठीक से कार्य न करना, विटामिन ए की कमी से आंखों का कमजोर व बीमार होना पाया जाता है।
विटामिन बी की कमी से विभिन्न विकार व नाड़ी विकार होते हैं।
विटामिन सी की कमी होने पर स्कर्वी रोग एवं शरीर की रोग प्रतिकारक शक्ति में न्यूनता आती है।
विटामिन डी की कमी होने पर विभिन्न अस्थि रोग होते हैं।
इसी प्रकार अन्य अनेक रोगों से शरीर ग्रस्त हो जाता है।
कारण: कुपोषण के अनेक कारण हैं, इनमें से कुछ निन प्रकार से हैं।
गरीबी, भुखमरी, अपर्याप्त भोजन लेना। गलत भोजन का चयन अर्थात ऐसा भोजन जिसमें विटामिन-मिनरल या अन्य पोषक पदार्थों का अभाव हो अर्थात असंतुलित भोजन। आवश्यकता से अधिक भोजन लेना अपच पैदा कर कुपोषण का कारण बनता है। एक ही प्रकार के विटामिन की अधिकता युक्त भोजन लेना। प्राकृतिक विषमताजन्य पदार्थ जैसे वनस्पतियों के बीज, पीतल, अल्यूमीनियम के बर्तनों में पका खाना। कुसमय भोजन करना, भोजन के प्रति लापरवाही बरतना। सस्ते के चक्कर में नीम-हकीमों की सलाह लेना।
गरीबी, ईर्ष्या, घर की सफाई पर ध्यान न देना। किसी दिमागी या शारीरिक रोग की वजह से भूख न लगना। कट्टर शाकाहारी होना। नशेड़ी होना। गर्भावस्था के दौरान, स्तनपान के दौरान। कड़ा परिश्रम करने वालों में खासकर ठंडे प्रदेश में सामान्य खुराक पर्याप्त नहीं होती। कभी-कभी किन्हीं रोगों के कारण भी कुपोषण की समस्या उत्पन्न होती है। लंबी अवधि तक किसी शल्य कर्म के कारण ग्लूकोस का चढ़ना। लंबी अवधि तक एंटीबायोटिक लेने से आंतों के बैक्टीरिया की क्रियाशीलता का कम होना।
नेफ्रोटिक सिंड्रोम में प्रोटीन का मूत्र द्वारा बाहर निकल जाना प्रोटीन की कमी का कारण बनता है। डायबिटीज में ग्लूकोज का अधिक मात्र में मूत्र में आना। अधिक माहवारी होना लौह तत्व की कमी का कारण बनता है। अतिसार या दस्त आना पोटेशियम की कमी करता है।
इस प्रकार उपरोक्त कारणों में से कोई एक कारण भी कुपोषण पैदा कर सकता है। उपरोक्त लक्षणों की जानकारी हासिल कर लेने के पश्चात आप स्वयं भी इसका निर्णय कर सकते हैं कि कहीं आप कुपोषण से ग्रस्त तो नहीं हैं।
घर की व घर के अन्य सदस्यों की देखभाल करने में स्त्रियां प्राय: अपनी स्वयं की ओर ध्यान नहीं दे पाती। काम निपटाकर ही भोजन करने की प्रवृत्ति उन्हें रोगी बना सकती है परंतु उन्हें अपनी इस आदत को त्यागकर अपना ध्यान अवश्य रखना चाहिए। ऐसा न हो कि कुपोषण का छोटा स्वरूप भी कहीं किसी गंभीर रोग में तब्दील हो जाए।
यदि उपरोक्त एक भी लक्षण आपको स्वयं में दिखाई दे तो समय नष्ट किए बिना चिकित्सक से परामर्श लें व उचित उपचार में लापरवाही न बरतें।
पौष्टिक, विटामिन-मिनरल इत्यादि तत्वों से भरपूर आहार, समय पर व उचित मात्र में लेने पर कुपोषण से बचा जा सकता है। भोजन में दाल, चावल, गेहूं, दूध, पनीर, सलाद, हरी सब्जियां, फल, घी-तेल इत्यादि का उचित मात्र में अवश्य समावेश करें। इसके अतिरिक्त उपरोक्त कुपोषण पैदा करने वाले कारणों से स्वयं को बचाकर रखें।
स्वस्थ शरीर दिखाई पड़ने पर भी समय-समय पर चिकित्सक से परामर्श अवश्य लें।