रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि जिसके पास आत्मविश्वास है, उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। आत्मविश्वास का अभाव ही मन में संशय को जन्म देता है और संशय हमें अपने कर्तव्य से विमुख कर देता है। इसी संशय को भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने मनुष्य का शत्रु बताया है। महाभारत के युद्ध में अर्जुन संश्यात्मक बुद्धि के कारण ही तो कर्तव्य से विमुख हो रहा था, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसका आत्मविश्वास बढ़ाया और विजयी बनाकर यश दिलवाया था। आत्मविश्वास कैसे बढ़ता है? एक दिन मैंने मंदिर में एक निर्धन व्यक्ति को यह प्रार्थना करते हुए देखा, हे भगवान! मुझे ऐसा आशीर्वाद दें कि मेरे विचार शुद्ध हो जाएं। मैंने उससे पूछा, तुमने गोविंद से संसार के सुख साधनों को छोड़कर ऐसा आशीर्वाद क्यों मांगा? उसने बड़ा ही तार्किक उत्तर दिया, मैंने भगवान से वो ही आशीर्वाद मांगा है, जिसके द्वारा मैं संसार के सबसे बड़े सुख, आत्मिक सुख को प्राप्त कर सकूंगा। मैंने विचारों की शुद्धता का आशीर्वाद मांगा है, क्योंकि जब तक इंसान अपने आचरण से लोगों पर अपनी अच्छाई व्यक्त न कर दे, वह लोगों से अच्छे व्यवहार की आशा कैसे कर सकता है? तात्पर्य यह है को विचारों की शुद्धता, व्यक्ति के चरित्र को बनाता है, उच्च चरित्र, आत्मसम्मान को बढ़ाता है, आत्मसम्मान से ही आत्मविश्वास बढ़ता है और आत्मविश्वास से ही जीवन में आत्मनिर्भरता आती है और आत्मनिर्भरता ही सभी संशयों का नाश करती है। आत्मनिर्भर व्यक्ति ही एकाग्रचित हो जीवन में अपने सभी कर्तव्यों को सफलतापूर्वक संपन्न करता हुआ, जीवन के सभी सुख साधन प्राप्त करने के साथ, आत्मिक सुख का भी भोग करता है। यही भारतीय दर्शन है।
प्रस्तुति : राजेंद्र कुमार शर्मा