Saturday, August 23, 2025
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चीन के विरुद्ध चारकोणीय मोर्चा


इंडो-पेसिफिक व साउथ चाइना सी में चीन के विस्तारवाद पर काबू पाने के लिए क्वाड और आॅकस के बाद अमेरिका ने एक ओर अंतरराष्ट्रीय गठबंधन का ऐलान किया है। अमेरिका, भारत, इस्राइल और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ मिलकर बनाए गए इस गठबंधन का नाम आई2यू2 (आईटूयूटू) रखा गया है। ‘आई’ का उपयोग इंडिया और इस्राइल के लिए किया गया है, जबकि अमेरिका (यूएस) व संयुक्त अरब अमीरात (यूएईयू) के लिए ‘यू’ अल्फाबेट का इस्तेमाल किया गया है। गठबंधन के तहत चारों देश बुनियादी ढांचें के विकास, डिजिटल इंफ्रास्टक्चर, परिवहन, सामुद्रिक सुरक्षा व अन्य जरूरी क्षेत्रों में मिलकर काम करेंगे। खाड़ी क्षेत्र में खासतौर से चीन-ईरान एलाइंस के खिलाफ निर्मित इस चार कोणीय साझेदारी का विचार पिछले साल अमेरिका की यात्रा पर गए इस्राइल के विदेशमंत्री ने दिया था। उस वक्त इस गठबंधन को पश्चिमी एशिया का क्वाड कहा गया था। अमेरिका के अनुसार आई2यू2 का अर्थ ‘इंटरेक्शन इन अंडरस्टैंडिंग द यूनिवर्स’ है। अक्टूबर 2021 में इस्रराइल में भारत, अमेरिका, इस्रराइल और यूएई के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई थी। बैठक में पश्चिमी एशिया और मध्यपूर्व क्षेत्र के लिए क्वाड की तर्ज पर गठबंधन बनाने पर सहमति बनी थी। उस वक्त इस गठबंधन को इंटरनेशनल फोरम फॉर इकॉनमिक कोआॅपरेशन नाम दिया गया था। लेकिन आने वाले समय में इसका विस्तार सामुद्रिक सहयोग के क्षेत्र तक किया जा सके इसके लिए भी विकल्प खुले रखे गए थे।

दरअसल, अमेरिका, इस्रराइल और यूएई ने मध्य एशिया में चीन-ईरान एलाइंस के विरुद्ध मजबूत साझेदारी के प्रयास उस वक्त शुरू कर दिए थे जब अगस्त 2020 में चीन ने ईरान के साथ 400 अरब डॉलर का स्टैट्रेजिक समझौता करके पश्चिम एशिया में जोरदार पैठ स्थापित की थी। इसके बाद पश्चिम एशिया में चीन-ईरान एलाइंस व ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं पर नियंत्रण के विरूद्ध क्वाड जैसे चार कोणीय गठबंधन की जरूरत महसूस की जा रही थी। ऐसे में अमेरिका और इस्रराइल पिछले एक साल से भारत को इस गठबंधन में शामिल होने के लिए राजी कर रहे थे। लेकिन ईरान के साथ रिश्तों के चलते भारत वेस्ट क्वाड को लेकर असमंजस की स्थिति में था। चीनी विस्तारवाद के अलावा आई2यू2 गठबंधन की दूसरी बड़ी वजह ईरान का परमाणु कार्यक्रम भी है। ईरान का परमाणु कार्यक्रम इस्रराइल और यूएई के लिए चिंता का बड़ा कारण था। ईरान के कारण ही यूएई ने इस्रराइल के साथ डिप्लोमेटिक संबंध स्थापित किए हैं। खाड़ी देशों के साथ ईरान के संबंध चाहे जैसे रहे हों, लेकिन भारत और ईरान के संबंध अलग तरह के हैं।

अगस्त 2020 में हुए चीन-ईरान समझौते के वक्त भी लेखक ने यह कहा था कि भारत को इस गठबंधन को साधने के लिए अमेरिका, इस्रराइल और यूएई जैसे देशों के साथ मिलकर मध्यपूर्व में चीन के विरुद्ध मोर्चा खोलने के लिए आगे बढ़ना चाहिए। चीन और ईरान अमेरिका को अपना सबसे बड़ा शत्रु मानते हैं। ऐसे में भारत को यह नेरेटिव भी विकसित करना चाहिए कि दो धुर विरोधी शक्तियों के एक साथ आने से पश्चिम एशिया में अमेरिका, इस्रराइल और यूएई को चुनौती देने वाला शक्ति का नया केंद्र विकसित हो सकता है। लेकिन ईरान के साथ रिश्तों को देखते हुए भारत की सुकचाहट को समझा जा सकता हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन अगले महीने 13 से 16 जुलाई तक पश्चिमी एशिया के दौरे पर रहेंगे। इस दौरे में वे वेस्ट बैंक, फिलीस्तीनी प्राधिकरण, जेद्दाह, सऊदी अरब और इस्रराइल का दौरा करेंगे। अपने इस दौरे में वे पश्चिमी एशिया के करीब एक दर्जन नेताओं से मुलाकात करेंगे। अपने पश्चिम एशिया दौरे के दौरान ही बाइडन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, इस्रराइल के पीएम नफ्ताली बेनेट और यूएई के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान के साथ वर्चुअल बैठक में वेस्ट एशिया क्वाड अर्थात आई2यू2 की शुरूआत करेंगे। पश्चिमी एशिया में चीन-ईरान एलाइंस की चुनौती को देखते हुए अमेरिका इस संगठन को लेकर काफी गंभीर हैं।

बाइडन राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बारी सऊदी अरब और इस्राइल के दौरे पर जा रहे हैं। उनकी इस पहल को मध्यपूर्वी देशों के साथ रिश्ते सुधारने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा हैं। बाइडन खुद भी मानवाधिकारों के खराब रिकॉर्ड का हवाला देकर सऊदी अरब की आलोचना करते आए हैं। साल 2019 में अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान भी उन्होंने पत्रकार जमाल खाशोज्जी की हत्या को लेकर दुनिया में सऊदी अरब को अलग-थलग करने की कसम खाई थी। साल 2018 में इस्तांबुल के वाणिज्यिक दूतावास में सऊदी के पत्रकार जमाल खाशोज्जी की हत्या हुई थी। इसको लेकर पश्चिमी खुफिया एजेंसियों ने संदेह जताया कि हत्या का आदेश क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने दिया था।

चीन साउथ चाइना सी के 90 फीसदी इलाके पर अपना दावा करता हैं, ऐसे में इस क्षेत्र से होकर गुजरने वाले समुद्री परिवहन का खतरा पैदा हो सकता है। अमेरिका इसी का विरोध करता है और दावा करता है कि उसका उद्देश्य नियम आधारति व्यवस्था को बनाए रखना है। जहां तक भारत की बात है, वेस्ट क्वाड में हिस्सा लेकर वह यह प्रदर्शित कर रहा है कि वह रिजनल संगठनों में शामिल होने की अपनी पुरानी नीति में बदलाव कर चुका है। यह इस बात का भी संकेत है कि भारत खाड़ी देशों की राजनीति में अब ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाने को तैयार हैं। मध्यपूर्वी देशों के साथ गठबंधन में शामिल होकर भारत ने विदेश नीति के मोर्चें पर यह तो जरूर साबित कर दिया है कि वह दुनिया के किसी भी कोने में बनने वाली क्षेत्रिय नीति का हिस्सा बन सकता है, लेकिन सवाल यह है कि उसकी इस नीति से भारत- ईरान संबंधों का क्या होगा।

सच तो यह है कि आजादी के बाद भारत ने जिस स्टैÑटिजिक अटॉनमी के नीति को अपनाया था उसका रंग धीरे-धीरे उतरने लगा है। गुटनिरपेक्षता का हमारा सिद्धांत कमजोर पड़ चुका है। साल 2016 में भारत-अमेरिका रक्षा समझौते (लेमोआ) के बाद भारत के पड़ोसी देशों के मन में यह विश्वास और गहरा हुआ है कि भारत कहीं न कहीं अमेरिकी प्रभाव में आ रहा है। एक हद तक यह सही भी है। लेमोआ के बाद भारत-रूस संबंधों में भी बदलाव आया है। रूस की शर्त पर अमेरिका से संबंध बढ़ाने की नीति से भारत वैश्विक मोर्चे पर कमजोर ही हुआ है। भारत को यह नहीं भूलना चाहिए कि उसके विकास का एक मार्ग यूरेशिया से भी जूड़ा हुआ है। ऐसे में भारत को न केवल अमेरिका बल्कि रूस और ईरान को भी साथ लेकर आगे बढ़ने की नीति पर चलना चाहिए।


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