Saturday, May 31, 2025
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राम कृष्ण एक

Amritvani


तुलसीदास जी के विषय में कहा जाता है कि कलियुग में इन्हें भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी के दर्शन प्राप्त हुए थे। तुलसीदास जी के विषय में यह भी मान्यता है कि यह पूर्वजन्म में रामायण के लेखक महाकवि वाल्मीकि थे। भगवान राम के अनन्य भक्त होने के कारण ही तुलसीदास जी के रूप में इन्हें राम दर्शन का सौभाग्य मिला।
तुलसीदासजी बृंदावन पहुंचे। नंददास उन्हें कृष्ण मंदिर में ले गए। तुलसीदास जी ने शीश नवाने की अजीब शर्त आराध्य के सामने रख दी। मैं तो अपने राम को खोज रहा हूं, कृष्ण के राम-रूप में।

बालहठ में पड़े तुलसी ऐसे रामभक्त बन गए जो गंगा में बैठकर गंगाजल खोजता है। लीला केवल भगवान ही करें, ऐसा जरूरी तो नहीं। भक्त भी करता है और भगवान उसका रस लेते हैं-कृष्ण भी भक्त की हठ पर पुलकित होकर राममय हो गए। कृष्ण की मूर्ति राम की मूर्ति में बदल गई। हाथ में बांसुरी की जगह, धनुष बाण ने ले ली। दोनों में कोई भेद ही नहीं है तो कृष्ण में राम कैसे न दिखते तुलसी को..

गीता में अर्जुन से श्रीकृष्ण कहते हैं-मैं पावनकर्ता में पवन और शस्त्रधारियों में राम हूं। राम ने जो किया वह भी सर्वोत्तम और श्रीकृष्ण ने जो बताया वह भी सर्वोत्तम है। मानव से महामानव बनने का यही मार्ग है। कहने का मर्म यही है कि जो प्रभु राम हैं और प्रभु कृष्ण हैं, दोनों में कोई भेद नहीं है।

गोस्वामी तुलसीदास जी सगुण भक्ति के प्रतिनिधि हैं तथा उनकी भक्ति दास्य स्वभाव की भक्ति है। जिस में भक्त का सर्वस्व अपने इष्ट को समर्पित है। भक्त की भक्ति प्रभु मात्र के लिए होनी चाहिए, फिर भगवान कृष्ण को राम और भगवान राम को कृष्ण होते देर नहीं लगती। भक्त जिस रूप में देखना चाहता है, वह उसे उसी रूप में दिखते हैं।

प्रस्तुति: राजेंद्र कुमार शर्मा


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