डॉ सुरेश कुमार मिश्रा |
महंगाई के दिनों में हर चीज मुंह फुलाई पत्नी की तरह नजर आती है। मनाओ तो मानने का नाम ही नहीं लेती है। ऐसे में कहीं यह लिखा मिल जाए कि ‘गंदा है पर धंधा है’ तो आंखें फटी की फटी रह जाती हैं। ऐसे ही किसी साइनबोर्ड पर लिखा पाया। सोचा क्यों न एक बार जाकर देख ही लूँ। जाने में क्या हर्ज है? वैसे आजकल मेरे पैर खरीदने को कम बतकही करने के लिए ज्यादा चलने लगे हैं। सो चला गया।
वह एकदम गुप्त स्थान था। जैसे-तैसे पहुंचा और दरवाजे की कुंडी खड़खड़ाई। तभी एक काला कोट पहना कोई प्रकट हुआ। मैं समझा कि वह वकील होगा। मैंने उसी तरह संबोधित भी किया। इस पर वह नाराज हो गया। कारण पूछने पर बताने लगा-यहां केसरिया, हरा, पीला, नीला, लाल, सफेद जैसे रंग बांट लिए गए हैं। हर रंग का अपना अहंकार है। इनके साथ रहने से कोई देशभक्त तो कोई देशद्रोही तो कोई राइटिस्ट तो कोई लेफ्टिस्ट कहलाता है। काला रंग न इनको पसंद है न उनको। उजाले में काम करने के लिए कुछ बचा नहीं और रात को कुछ गलत करते हुए पकड़े न जाएं इसके लिए काला रंग पहनते हैं। वैसे हर रंग में कालापन होता है किसी-किसी को दिखता है, किसी-किसी को नहीं। यहाँ किसी की कालिख कोयले की तरह तो किसी की काजल की तरह है।
मैं उसकी बात से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। उसके पूछने पर आने का कारण बताया। उसने कहा -घर पर नारी युद्ध के संकट से उबरना बड़ा मुश्किल है। इसीलिए समझदार लोग शादी करने से बचते है और महापुरुष बन जाते हैं। अब मूर्खों को कौन समझाए कि शादी के कितने पंचाट होते हैं। उन्हें तो हर सफेद चीज ठंडी छांछ सी प्रतीत होती है, जब तक मुंह न जल जाए तब तक गर्म दूध कहने से बाज नहीं आते। जब आपने शादी कर ही ली है तो भुगतो।
मैं और नहीं भुगत सकता था, सो उसे चमत्कारी बाबा कहकर उसके पैरों पर गिर पड़ा। शायद उसे पहुंचे हुए योगी होने का भ्रम हो चुका था और निकट भविष्य में किसी राज्य के मुख्यमंत्री बनने के लक्षण प्रबल रूप में दिखाई पड़ रहे थे। सो उसने प्रसन्नमुख से मेरी ओर ताका और कहा-पत्नी और मां का संबंध विपक्ष और सत्ता पार्टी जैसा होता है। दोनों में सहमति बनना दिल्ली में आॅड-ईवन के खेल से भी मुश्किल काम है। दोनों एक साथ एक मंच पर इकट्ठा नहीं हो सकते। तुम्हारी स्थिति उस नेता की तरह है जो पहले माँ रूपी विपक्षी पार्टी के सत्ता में रहते समय मंत्री पद भोग चुके हो। अब चूंकि पत्नी नई उपज के रूप में अपनी पार्टी से तुम्हारा मन लुभा रही है, तुम उसमें जाने से स्वयं को रोक नहीं पा रहे हो। ऐसे में माँ अपनी पुरानी यादों को ताजा करती हुई विपक्ष में बने रहने का न्यौता दे रही है। उधर पत्नी अपनी अदाओं से तुम्हें अपनी ओर खींच रही है। तुम दो अल्पमत पार्टियों के बीच एक स्वतंत्र अभ्यर्थी की तरह हो जिसके किसी एक पक्ष में जाने से सरकार बन सकती है। न तुम इधर रह सकते हो और न उधर। अधबीच में फंसा भला कोई पार लगता है? इसलिए विपक्षी और सत्ता पार्टी के बीच संधि कर तुम गठबंधन सरकार के सूत्रधार बन जाओ। मां के सामने बहू की और बहू के सामने मां की शिकायत करो। तुम्हारा जीवन सुधर जाएगा। इस तरह दो विरोधी संगठनों के बीच सूत्रपात करना महागठबंधन कहलाता है।
मैंने कहा-यह तो संयुक्त परिवार की भावना को प्रोत्साहित करने वाली सोच है। इसमें नया क्या है? उसने कहा-पुरानी शराब को नई बोतल में, नागनाथ को सांपनाथ में, मूर्खों को विद्वानों में देखना ही तो आजकल का चलन है। बस इसी चलन को कुछ लोग ‘शांति’ से धंधा बनाकर ‘शोर’ मचाने का काम करते हैं।