भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने प्लेसिस आफ वरशिप एक्ट 1991 के तहत दायर किए जाने वाले मुकदमों में कोई भी आदेश देने और मस्जिदों का सर्वे करने पर रोक लगा दी है। इसी के साथ-साथ दोनों पक्षों को इस मामले पर अपने जवाब दाखिल करने के लिए दो महीने का समय दिया है। इस मामले को लेकर जनता के जागरूक तबके जैसे कवियों, लेखकों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं और वकीलों में काफी बेचैनी थी। संविधान के हिसाब से और कानून के शासन के हिसाब से काम करने वाले और साझी संस्कृति में विश्वास रखने वाले लोग उम्मीद लगाए हुए थे कि सुप्रीम कोर्ट मस्जिद के नीचे शिवलिंग और मंदिर ढूंढने की मुहिम पर सुप्रीम कोर्ट लगाम लगाएगी और रोक लगाएगी। वहीं दूसरी ओर मस्जिदों के नीचे शिवलिंग और मंदिर ढूंढने की सांप्रदायिक नफरत की आंधी फैलाने वाले लोग माने हुए बैठे थे कि सुप्रीम कोर्ट इन मामलों में मुकदमे दायर करने, आदेश पारित करने और सर्वे का आदेश देने पर कोई रोक नहीं लगाएगी। इसे लेकर लोगों में काफी बैचैनी फैलीं हुई थी।
बहुत से लोग डरे हुए थे कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में प्रभावी कार्रवाई नहीं की तो यह देश सांप्रदायिक नफरत की आग में जलने लगेगा। कई लोग डर रहे थे कि हमारा देश मणिपुर बन जाएगा। कुछ लोगों का कहना था कि हमारा देश इसराइल और फिलिस्तीन जैसी आग में जलने लगेगा। वे डर रहे थे की जो देश पिछले कई सौ सालो से हिंदू मुस्लिम एकता और गंगा जमुनी तहजीब की मिली जुली विरासत में रचा-बसा है, उसका इस सांप्रदायिक नफरत की आंधी के चलते क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से इस देश का भला चाहने वालों कि आज सांस में सांस आई है। इस देश की साझी संस्कृति और हिंदू मुस्लिम एकता में विश्वास रखने वाले लोग आज बहुत खुश हैं। आज उनको चैन की नींद आएगी। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से सच में हमारा देश हिंदू मुस्लिम की नफरत की आग में जलने से बच गया है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश ने हमारे देश को हिंदू मुसलमान में बांटकर सत्ता कब्जाने वाली संप्रदायिक ताकतों की नफरती मुहिम पर फिलहाल तो जोरदार और जरूरी रोक लगा दी है। हमारे देश में मौजूद हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक ताकतें पिछले 120 साल से ज्यादा समय से पूंजी पतियों और धनपतियों की जेब में बैठी हुई हैं। आजादी के समय में ये ताकतें हिंदू मुस्लिम एकता तोड़कर अंग्रेजों के साथ थीं और आजादी से लेकर आज तक ये ताकतें, जनता की एकता को तोड़कर, उसे हिंदू मुसलमान में बांटकर, खुले छिपे पूंजीपति और धनपतियों की जेब में बैठी हुई हैं और अब तो वे सत्ता और सरकार में बैठी हुई हैं। उनकी पूरी कोशिश है कि जनता की बुनियादी समस्याओं जैसे बेरोजगारी, भुखमरी, गरीबी, भ्रष्टाचार, महंगाई, प्रदूषण, समाज में अमीरी गरीबी की बढ़ती खाई, किसानों मजदूरों की बुनियादी समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए जनता की एकता को तोड़ा जाए और सांप्रदायिक नफरती मुहिम को जारी रखकर, जनता को हिंदू और मुसलमान में बांट दिया जाए ताकि जनता अपनी बुनियादी समस्याओं के बारे में न सोच कर, हिंदू मुस्लिम एकता तोड़कर, हिंदू मुसलमान में बंटकर, आपस में मारामारी करने लगे और एक दूसरे से नफरत करने लगें और ये जनविरोधी साम्प्रदायिक सौहार्द को तोड़ने वाली ताकतें सत्ता और सरकार में बनी रहें और और पूंजीपतियों और मनुवादियों की सत्ता और सरकार बनी रहें।
संसद ने इस नफरत की मुहिम पर रोक लगाने के लिए 1991 में पूजा स्थल अधिनियम बनाया था जिसमें यह प्रावधान किया गया था कि 15 अगस्त 1947 को जिस धार्मिक स्थल की जो स्थिति है, वह वैसे ही रहेगी, उसमें किसी प्रकार का कोई परिवर्तन या छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। इस कानून ने इन संप्रदायिक ताकतों की नफरत की मुहिम पर कारगर तरीके से रोक लगा रखी थी। मगर ये सांप्रदायिक ताकतें चैन से नहीं बैठी थीं । वे किसी तरह से जनता को बुनियादी मुद्दों से भटका कर उसकी एकता तोड़ना चाहती थीं ताकि वे जनता की एकता तोड़कर, हिंदू मुसलमान करके, सत्ता में आ जाएं और सत्ता में आकर संविधान पर हमला करें, कानून के शासन पर हमला करें, और उसके स्थान पर चंद पूंजीपतियों और मनुवादी व्यवस्था लागू कर दें।
इस मुहिम को आगे बढ़ाने और बल देने का काम भारत के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने किया था जब उन्होंने इस प्रकार के मुकदमों को दायर करने और सर्वे करने का मौखिक आदेश दे दिया था। इसी आदेश के तहत ये सांप्रदायिक ताकतें हर एक मस्जिद के नीचे मंदिर और शिवलिंग ढूंढने की अभियान में लग गई थीं। इन्हें लेकर कई सारे मुकदमें दायर किए गए थे जिससे अमन पसंद जनता की परेशानियां बढ़ रही थीं। आज सच में सुप्रीम कोर्ट ने समय की नजाकत को देखते हुए, इस देश की एकता और अखंडता को बचाए और बनाये रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। अब यकीनन संप्रदायिक नफरत की मुहिम पर रोक लगेगी और जनता राहत महसूस करेगी। सच में आज भारत की अमन पसंद जनता, किसानों, मजदूरों, बुद्धिजीवियों, लेखकों, कवियों और वकीलों को चैन की नींद आएगी। फिलहाल तो भारत के सर्वोच्च न्यायालय के इस जरूरी आदेश ने देश और जनता को नफरत की आग में जलने से बचा लिया है। सच में भारत का सर्वोच्च न्यायालय आज बहुत-बहुत बधाई का पात्र है। इसकी जितनी भी तारीफ की जाए वह काम है।