एक गांव के पास एक खेत में सारस पक्षी का एक जोड़ा रहता था। वहीं उनके अंडे थे। अंडे से समय पर बच्चे निकले। लेकिन बच्चों के बड़े होकर उड़ने योग्य होने से पहले ही खेत की फसल पक गई। सारस बड़ी चिंता में थी कि किसान खेत काटने आवे, इससे पहले ही बच्चों के साथ उसे वहां से चले जाना चाहिए तब बच्चे उड़ भी नहीं सकते थे। एक दिन जब सारस चारा लेकर शाम को बच्चों के पास लौटा तो बच्चों ने कहा कि आज किसान आया था और गांव वालों से फसल कटवाने की कह रहा था। कई दिन बाद जब एक दिन सारस शाम को बच्चों के पास आए तो बच्चे बहुत घबराए थे- वे कहने लगे कि अब हम लोगों को यह खेत झटपट छोड़ देना चाहिए। आज किसान फिर आया था, वह कहता था, कि गांव वाले स्वार्थी हैं। कल मैं अपने भाइयों को भेजकर खेत कटवा लूंगा। सारस बोला, अभी तो खेत कटता नहीं दो-चार दिन में तुम लोग ठीक-ठीक उड़ने लगोगे। कई दिन और बीत गए सारस के बच्चे उड़ने लगे थे और निर्भय हो गए थे। एक दिन शाम को सारस से वे कहने लगे, यह किसान हम लोगों को झूठा डराता है। इसका खेत तो कटेगा नहीं, वह आज भी आया था और कहता कि मेरे भाई बात नहीं सुनते, फसल सूखकर झर रही है। कल बड़े सवेरे में आऊंगा और खेत काट लूंगा। सारस घबराकर बोला-चलो जल्दी करो! दूसरे स्थान पर उड़ चलो। कल खेत अवश्य कट जाएगा। किसान जब तक गांव वालों और भाइयों के भरोसे था। खेत के कटने की आशा नहीं थी। जो दूसरों के भरोसे कोई काम छोड़ता है, उसका काम नहीं होता, लेकिन जो स्वयं काम करने को तैयार होता है उसका काम रुका नहीं रहता। किसान कल स्वयं फसल काटने आएगा। सारस अपने बच्चों के साथ वहां से चला गया।