Saturday, December 21, 2024
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कुंवर साहब के निधन से काव्य जगत बेचैन, कोरोना से साहित्य का सूरज अस्त

जनवाणी डिजिटल डेस्क |

साहित्य का एक और सूरज कोरोना के चलते अस्त हो गया। गुरुवार को डॉक्टर कुंवर बेचैन का निधन हो गया, वह लंबे समय से संक्रमण से लड़ रहे थे। हिंदी ग़ज़ल और गीत के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर कुंवर बेचैन का जन्म उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के उमरी गांव में हुआ था।

मुरादाबाद से उनका विशेष लगाव था। चंदौसी के मेला गणेश चौथ और मुरादाबाद के जिगर मंच और कलेक्ट्रेट मैदान के कवि सम्मेलनों और मुशायरों में वह हर वर्ष आते थे।

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कुंवर बेचैन साहब ने कई विधाओं में साहित्य सृजन किया। कवितायें भी लिखीं, ग़ज़ल, गीत और उपन्यास भी लिखे।

बेचैन’ उनका तख़ल्लुस है असल में उनका नाम डॉ. कुंवर बहादुर सक्सेना है। बेचैन जी गाजियाबाद के एम.एम.एच. महाविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष रहे। उनका नाम सबसे बड़े गीतकारों और शायरों में शुमार किया जाता था। उनके निधन को साहित्य जगत को एक बड़ी क्षति पहुंची है।

व्यवहार से सहज, वाणी से मृदु इस रचानाकार को सुनना-पढ़ना अपने आप में अनोखा अनुभव है। उनकी रचनाएं सकारात्मकता से ओत-प्रोत हैं।

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‘पिन बहुत सारे’, ‘भीतर साँकलः बाहर साँकल’, ‘उर्वशी हो तुम, झुलसो मत मोरपंख’, ‘एक दीप चौमुखी, नदी पसीने की’, ‘दिन दिवंगत हुए’, ‘ग़ज़ल-संग्रह: शामियाने काँच के’, ‘महावर इंतज़ारों का’, ‘रस्सियाँ पानी की’, ‘पत्थर की बाँसुरी’, ‘दीवारों पर दस्तक ‘, ‘नाव बनता हुआ काग़ज़’, ‘आग पर कंदील’, जैसे उनके कई और गीत संग्रह हैं, ‘नदी तुम रुक क्यों गई’, ‘शब्दः एक लालटेन’, पाँचाली (महाकाव्य) कविता संग्रह हैं।

कवियों में शोक                                                                      

उनके निधन पर उनकी समकालीन गीतकार डॉ. मधु चतुर्वेदी ने दुख प्रकट किया है। उन्होंने कहा कि कुंवर जी का जाना बहुत दुखद है। हिंदी गीतों की वाचिक परंपरा के हस्ताक्षर के जाने से आए अवकाश को भरा नहीं जा सकता। उन्होंने बताया कि लंदन के हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में दो भारतीय गीतकारों के सम्मान हुआ था। मेरा सौभाग्य है कि वह मैं और कुंवर जी थे। उनके साथ अनेक कार्यक्रम और यात्राएं की, जो अब यादों में हैं।

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कुंवर बेचैन की यादगार रहीं कुछ रचनाएं                                            

जिस मृग पर कस्तूरी है
मिलना और बिछुड़ना दोनों
जीवन की मजबूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे,
जितनी हम में दूरी है।

शाखों से फूलों की बिछुड़न
फूलों से पंखुड़ियों की
आंखों से आंसू की बिछुड़न
होंठों से बांसुरियों की
तट से नव लहरों की बिछुड़न
पनघट से गागरियों की
सागर से बादल की बिछुड़न
बादल से बिजुरियों की
जंगल जंगल भटकेगा ही
जिस मृग पर कस्तूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे,
जितनी हम में दूरी है।

सुबह हुए तो मिले रात-दिन
माना रोज बिछुड़ते हैं
धरती पर आते हैं पंछी
चाहे ऊंचा उड़ते हैं
सीधे सादे रस्ते भी तो
कहीं कहीं पर मुड़ते हैं
अगर हृदय में प्यार रहे तो
टूट टूटकर जुड़ते हैं
हमने देखा है बिछुड़ों को
मिलना बहुत जरूरी है।
उतने ही हम पास रहेंगे,
जितनी हम में दूरी है।

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ग़ज़ल                                                                                 

देखते ही देखते पहलू बदल जाती है क्यूं
नींद मेरी आंखों में आते ही जल जाती है क्यूं

हाथ में ‘शाकुंतलम’ है और मन में प्रश्न है
याद की मछली अंगूठी को निगल जाती है क्यूं

ऐ मुहब्बत, तू तो मेरे मन में खिलता फूल है
तुझसे भी उम्मीद की तितली फिसल जाती है क्यूं

इक सुहानी शाम मुझको भी मिले, चाहा अगर
आने से पहले ही फिर वो शाम ढल जाती है क्यूं

ये सुना था मौत पीछा कर रही है हर घड़ी
ज़िन्दगी से मौत फिर आगे निकल जाती है क्यूं

मेरे होठों पर हंसी आते ही गालों पर मेरे
आंसुओं की एक सन्टी सी उछल जाती है क्यूं

आंसुओं से जब भी चेहरे को निखारा ऐ ‘कुंअर’
ज़िन्दगी चुपके से आकर धूल मल जाती है क्यूं

ऐसी रही कुंवर बेचैन की जिंदगी                                                       

कुंवर बेचैन जी हिंदी के प्रमुख कवि हैं। ये अपनी कविता, गजलों व गीतों के जरिये सालो से लोगों के बीच एक खाश रिश्ता बनाते आये हैं। इन्होने आधुनिक ग़ज़लों के माध्यम से आम आदमी के दैनिक जीवन का वर्णन किया है।

 

कवि कुंवर बेचैन जी गजल लिखने वालें रचनाकारों में से एक प्रमुख गजलकार और संगीतकार हैं। लगभग 50 वर्षों से देश–विदेश के सैंकड़ों कवि सम्मेलनों में अपनी छवि बनाने वाले कवि कुंवर बेचैन जी का जन्म 1 जुलाई सन 1942 में जिला मुरादाबाद चंदोसी उत्तर–प्रदेश में हुआ था। इनका पूरा नाम कुंवर बहादुर सक्सैना था। इनके पिता जी का नाम श्री नारायणदास सक्सैना और माता का नाम श्रीमति गंगादेवी था।

 

बचपन में 2 वर्ष की आयु में ही इनके माता–पिता का साया इनके ऊपर से उठ गया था। इस घटना के बाद इनका पालन–पोषण बहिन–बहनोई के यहां पूरा हुआ। जब ये 9 वर्ष के हुए थे तब इनकी बहिन का भी सन 1979 में निधन हो गया था। इनका प्रारम्भिक जीवन विपदाओं से भरा हुआ था।

 

शिक्षा   

 

इन्होने शिक्षा में एम.काम., एम.ए., पीएच.डी. ग्रहण की। इनकी शिक्षा चंदोसी, मुरादाबाद उत्तर प्रदेश में ही रहकर संपन्न हुई।

 

कार्य क्षेत्र

 

1995 से 2001 तक एम.एम.एच. पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज गाजियाबाद में हिंदी विभाग में अध्यापन किया और बाद में हिंदी विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त हुए। वर्तमान में कुंवर बेचैन जी एक स्वतंत्र लेखक के रूप में हम सभी के बीच उपस्थित हैं।

 

काव्य संग्रह

 

कुंवर बेचैन जी को कविता लिखने का शौक बचपन से ही था पर इनके गांव में बिजली की सुविधा नहीं थी। इसलिए ये स्ट्रीट लाईट की धीमी रोशनी में खड़े होकर कविताएं लिखा करते थे।

 

9 गीत संग्रह

15 गजल संग्रह

2 कविता संग्रह

1 दोहा संग्रह
2 उपन्यास
1 महाकाव्य
1 सैद्धांतिक पुस्तक

 

कुल मिलाकर इन्होने 150 पुस्तकों की रचना की है। इसके अलावा ये एक चित्रकार के रूप में भी जाने जाते हैं। जिनकी प्रदर्शनियां भी लगाई जा चुकी हैं। इनके द्वारा गायी गई गज़लों की भी कैसेट और सीडी भी बनी हैं, जो आज भी लोगों का मनोरंजन करती हैं। इसके साथ ही आकाशवाणी और टीवी चैनलों के माध्यम से इनकी हिंदी फीचर फिल्म, सीरियलों में गीत लेखन भी उपलब्ध हैं।

 

विदेश यात्रा

 

कुंवर बेचैन जी ने कई विदेशी यात्रा भी की हैं। वे रुस, सिंगापुर, दुबई, हालैंड, फ़्रांस,जर्मन आदि देश जा चुके हैं। वहां पर उन्हें विभिन्न सम्मानों के माध्यम से सम्मानित भी किया जा चुका है।

 

सम्मान

 

कुंवर जी को देश-विदेश की लगभग 250 संस्थाओं ने सम्मानित किया है। उत्तर प्रदेश के हिंदी संस्थान द्वारा 50 हजार का साहित्यक भूषण पुरस्कार तथा 2 लाख का हिंदी गौरव सम्मान, मुंबई की परिवार संस्था द्वारा 51 हजार का परिवार पुरस्कार आदि प्राप्त कर चुके हैं।

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