सर्वेश तिवारी श्रीमुख |
कहते हैं भगवान शिव के स्वेद से उत्पन्न हुई यह नदी, इसका कंकण कंकण शंकर है। इसके हर पत्थर में शिव का प्राण है, उसकी प्राणप्रतिष्ठा की कोई आवश्यकता नहीं। देवताओं को राक्षसों के वध का पश्चाताप करना था, सो महादेव ने नर्मदा को उत्पन्न किया। यह किसी सभ्यता की सहिष्णुता की पराकाष्ठा है कि उसके देव आततायियों के वध का भी प्रायश्चित करें। पर यही हम हैं। हिंसा हमारा मूल स्वभाव नहीं, हमने हिंसा की भी तो शान्ति की स्थापना के लिए की। शास्त्र कहते हैं, कलिकाल के अंत में गं्गा धरा से विलुप्त हो जाएगी, पर नर्मदा का प्रलय में भी नाश नहीं होगा। उन्हें सृष्टि के अंत तक बहते रहने का वर प्राप्त है। तभी वर्ष में एक बार मां गंगा स्वयं नर्मदा में स्नान करने आती हैं।
इन दोनों पवित्र धाराओं के अस्तित्व के इस अंतर पर सोचता हूँ तो एक ही कारण समझ में आता है कि माँ गंगा परलोक सुधारती हैं पर माँ नर्मदा इहलोक सुधारती हैं, उनका जीवन सुधारती हैं। नर्मदा सम्भवत: एकमात्र नदी है जिसकी परिक्र मा की परम्परा रही है। कहते हैं, नर्मदा की पैदल परिक्र मा करने से व्यक्ति लोक से जुड़ता है। संसार के सारे धर्मों के धार्मिक अनुष्ठान व्यक्ति के परलोक को सुधारने के लिए होते हैं, पर नर्मदा यात्र इहलोक से जुड़ने के लिए होती है। जैसे परम्परा कह रही हो, ह्यपहले संसार को तो जान लो बेटा! उसके बाद स्वर्ग-नरक को जानना।
भारत में होने वाली धार्मिक यात्रएं वस्तुत: स्वयं को साधने की यात्रएं रही हैं। अपने लोभ, मोह, मद, अहंकार, घृणा आदि पर विजय पाने की यात्र! मैंने देखा है सुल्तानगंज से वैजनाथ धाम की पैदल यात्र करते कांवरियों को, वे किसी को पीड़ा नहीं देते। आगे आते कुत्तों को भी डपट कर नहीं भगाते, किसी से कोई विवाद नहीं करते। न सही जीवन भर, इस यात्र के बहाने व्यक्ति कुछ दिनों के लिए तो स्वयं को शुद्ध कर ही लेता है। विश्वास कीजिये, स्वयं को दुगुर्णों से मुक्त कर लेना भी मोक्ष है, कुछ दिन के लिए ही सही…।
नर्मदा यात्र पर मन से निकला व्यक्ति भी स्वयं को मुक्त कर लेता है। वह सबको उसके सर्वश्रेष्ठ स्वरूप में देखता है। उसके लिए हर स्त्री मां होती है, हर जीव सहयात्री होता है, नदी मातृदेवी होती है, प्रकृति देवतुल्य होती है। वह किसी का अहित नहीं करता, कोई उसका अहित नहीं करता। सोच कर देखिये, जीवन इससे भी अधिक सुंदर हो सकता है क्या? नहीं हो सकता। माता नर्मदा की धारा के संग थोड़ी दूर तो चलना बनता है पर तभी, जब रोम रोम कह रहा हो, नर्मदे हर! नर्मदे हर।