गंगा नदी में वाराणसी से डिब्रूगढ़ तक सैलानियों को घुमाने निकला दुनिया का सबसे लंबा क्रूज गंगा विलास बिहार के सारण में डोरीगंज के पास गाद में अटकने के कारण किनारे तक नहीं पहुंच सका। पानी कम रहने के कारण क्रूज तट से दूर ही अटक गया। फिर वहीं लंगर लगाकर छोटे जहाजों के सहारे सैलानियों को सारण जिले के चिरांद तक लाकर महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थलों का भ्रमण कराया गया। जिस तरह बिहार में गंगा ही नहीं उसकी सहायक नदियों में गाद बढ़ रहा है, उससे नदियों के उथले होने का विचित्र संकट हर साल गहरा रहा है। समझना होगा कि गाद हर एक नदी का स्वाभाविक उत्पाद है, लेकिन उसका भली भांति प्रबंधन अनिवार्य है। गाद जैसे ही नदी के बीच जमती है तो नदी का प्रवाह बदल जाता है । इससे नदी कई धाराओं में बंटे जाती है, किनारें कटते हैं। यदि गाद किनारे से बाहर नहीं फैली, तो नदी के मैदान का उपजाऊपन और ऊंचाई दोनों घटने लग जाते हैं। ऊंचाई घटने से किनारों पर बाढ़ का दुष्प्रभाव अधिक होता है।
12 जुलाई 22 को सी गंगा यानी सेंटर फार गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट एंड स्टडीज ने जल शक्ति मंत्रालय को सौंपी गई रिपोर्ट बताती है कि उत्तर प्रदेश बिहार, उत्तराखंड, झारखंड की 65 नदियां बढ़ते गाद से हांफ रही हैं। हालांकि गाद नदियों के प्रवाह का नैसर्गिक उत्पाद है और देश के कई बड़े तीर्थ और प्राचीन शहर इसी गाद पर विकसित हुए है, लेकिन जब नदी के साथ बह कर आई गाद को किनारों पर माकूल जगह नहीं मिलती तो वह जल धारा के मार्ग में व्यवधान बन जाता है। गाद नदी के प्रवाह मार्ग में जमती रहती है और इसे नदियों उथली होती हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में ऐसी 36 नदियां हैं, जिनकी कोख में इतनी गाद है कि न केवल उनकी गति मंथर हो गई, बल्कि कुछ ने अपना मार्ग बदला और उनका पाट संकरा हो गया। बची कसर अंधाधुंध बालू उत्खनन ने पूरी कर दी। उत्तर प्रदेश के कानपुर से बिठूर तक, उन्नाव के बक्सर-शुक्लागंज तक गंगा की धार बारिश के बाद घाटों से दूर हो जाती है।
वाराणसी, मिजार्पुर और बलिया में गंगा नदी के बीच टापू बन जाते हैं। बनारस के पक्के घाट अंदर से मिट्टी खिसकने से दरकने लगे हैं। गाजीपुर, मिजार्पुर, चंदौली में नदी का प्रवाह कई छोटी-छोटी धाराओं में विभक्त हो जाता है।
प्रयागराज के फाफामऊ, दारागंज, संगम, छतनाग और लीलापुर के पास टापू बनते हैं। संगम के आसपास गंगा नदी में चार मिलीमीटर की दर से हर साल गाद जमा हो रही है। पिछले कई सालों से यह सिलसिला जारी है। गंगा की गहराई कम होने से उसकी धारा में भी परिवर्तन हो रहा है। आगे आने वाले दिनों में गंगा नदी की धारा और तेजी से परिवर्तित होगी, क्योंकि जब नदी की गहराई कम हो जाएगी तो नदी का स्वाभाविक बहाव रुक जाएगा। ऐसे में बाढ़ का खतरा स्वारभाविक है। गंगा में प्राकृतिक और आबादी दोनों ओर से गाद पहुंच रही है। तभी गंगा का पाट छिछला होता जा रहा है।
यह बात सरकारी रिकार्ड में है कि आज जहां पर संगम है, वहां यमुना की गहराई करीब 80 फीट है। वहीं, गंगा की गहराई इतनी कम है कि संगम के किनारे नदी में खड़ा होकर कोई भी स्नान कर सकता है, जबकि सहायक नदी यमुना की गहराई कम होनी चाहिए। यमुना की अधिक गहराई के चलते असंतुलन उत्पन्न हो रहा है। तभी संगम पूरब की तरफ बढ़ रही है। आज संगम का झुकाव अकबर के किले तक खिसक चुका है। कभी संगम सरस्वती घाट के पास हुआ करता था, लेकिन गंगा की गहराई लगातार कम होने से संगम पूरब की तरफ खिसकते हुए किला के पास आ गया है। यदि यही क्रम जारी रहा तो आने वाले दिनों में संगम और भी पूरब की तरफ खिसक जाएगा।
आजादी के बाद तक गढ़ मुक्तेश्वर से कोलकाता तक जहाज चला करते थे। गाद के चलते बीते पांच दशक में यहां गंगा की धारा आठ किमी दूर खिसक गई है। बिजनौर के गंगा बैराज पर गाद की आठ मीटर मोटी परत है। आगरा व मथुरा में यमुना गाद से भर गई है। आजमगढ़ में घाघरा और तमसा के बीच गाद के कारण कई मीटर ऊंचे टापू बन गए हैं। घाघरा, कर्मनाशा, बेसो, मंगई, चंद्रप्रभा, गरई, तमसा, वरुणा नदियां गाद से बेहाल हैं। गाद के कारण नदियों पर खड़े हो रहे संकट से उत्तरांचल भी अछूता नहीं हैं। यहां तीन नदियां गाद से बेहाल हैं। गंगा को बढ़ती गाद ने बहुत नुकसान पहुंचाया है। हिमालय जैसे युवा व जिंदा पहाड़ से निकलने वाली गंगा के साथ गाद आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन जिस तरह उत्तराखंड में नदी प्रवाह क्षेत्र में बाँध, पनबिजली परियोजनाएं और सड़कें बनीं, उससे एक तो गाद की मात्रा बढ़ी, दूसरा उसका प्रवाह मार्ग भी अवरुद्ध हुआ। गाद के चलते ही इस राज्य के कई सौ झरने और सरिताएं बंद हो गए और इनसे कई नदियों का उद्गम ही खतरे में हैं।
विदित हो सन 2016 में केंद्र सरकार द्वारा गठित चितले कमेटी ने साफ कहा था कि नदी में बढ़ती गाद का एकमात्र निराकरण यही है कि नदी के पानी को फैलने का पर्याप्त स्थान मिले। गाद को बहने का रास्ता मिलना चाहिए। एमए चितले की अध्यक्षता में एक्सपर्ट कमिटी ने मई, 2017 में अपनी रिपोर्ट जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय को सौंपी थी। कमिटी ने सुझाव दिया था कि नदियों में सिल्टेशन (गाद जमा होना) एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। फिर भी भारी वर्षा, जंगलों के कटान, जलाशयों के जल में संरचनागत हस्तक्षेप और बाड़ बनाने से नदियों में सिल्टेशन बढ़ता है। इसका नतीजा यह होता है कि नदियों की बहाव क्षमता कम होती है और बाढ़ की स्थिति पैदा होती है। साथ ही नदियों में जल भंडारण के उपायों को भी नुकसान पहुंचता है। जब नदी को चौड़ा या गहरा किए बिना उसकी प्राकृतिक क्षमता को बरकरार रखने के लिए महीन गाद और तलछट को निकाला जाता है तो उस प्रक्रिया को डीसिल्टेशन कहा जाता है।
डिसिल्टेशन से नदी के हाइड्रॉलिक प्रदर्शन में सुधार होता है। फिर भी अंधाधुंध गाद निकालने से नदी की इकोलॉजी और प्रवाह पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। तटबंध और नदी के बहाव क्षेत्र में अतिक्रमण न हो और अत्यधिक गाद वाली नदियों के संगम क्षेत्र से नियमित गाद निकालने का काम हो। जाहिर है कि ये सिफारिशे किसी ठंडे बस्ते में बंद हो गर्इं और अब नदियों पर रिवर फ्रंट बनाए जा रहे हैं, जो न केवल नदी की चौड़ाई को कम करते हैं, बल्कि जल विस्तार को सीमेंट कंक्रीट से रोक भी देते हैं। यह दुर्भाग्य है कि विकास के नाम पर नदियों के कछार को सर्वाधिक हड़पा गया। असल में कछार नदी का विस्तार होता, ताकि अधिकतम भी बरसात हो तो नदी के दोनों किनारों पर पानी विस्तार के साथ अविरल बहता रहे।