Tuesday, July 9, 2024
- Advertisement -
HomeUttar Pradesh NewsBaghpatजाट-मुस्लिम गठजोड़ से खुश हैं रालोद कार्यकर्ता

जाट-मुस्लिम गठजोड़ से खुश हैं रालोद कार्यकर्ता

- Advertisement -
  • गैर जाट व गैर मुस्लिम वोटों पर भाजपा का है सबसे बड़ा भरोसा

जनवाणी संवाददाता  |

बड़ौत: बागपत जिले की छपरौली और उसके बाद बड़ौत विधानसभा सीट को रालोद के मजबूत गढ़ के रूप में जाना जाता है। हालांकि बड़ौत विधानसभा की सीट पिछले दो चुनाव में रालोद के हाथ नहीं लग पाई। छपरौली में जरूर रालोद के कई दशक से सफलता मिलती रही है।

बड़ौत हो या छपरौली मुस्लिम मतों के सहारे ही रालोद की ताकत बनती व बिगड़ती रही है। इस गढ़ में रालोद की परम्परागत वोटों के अलावा इस बार गठबंधन के पक्ष में जिस तरह मुस्लिमों ने बढ़-चढ़कर मतदान किया। इससे रालोद के खेमें में खुशी झलक रही है। वहीं भाजपा के लोग गैर जाट व गैर मुस्लिम मतों की एक तरफा चाल से खुश दिख रहे हैं।
जिले में रालोद की मजबूती के लिए जाट और मुस्लिम मत ही आधार स्तंभ हैं।

पिछले 2012 व 2017 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम व जाटों का बिखराव हुआ। दोनों बिरादरियों का झुकाव रालोद के बजाय दूसरे दलों के साथ रहा। तभी रालोद के प्रत्याशियों को शिकस्त मिलती रही। 2014 के लोकसभा के चुनाव में यहां से रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह को तीसरे स्थान पर खिसकना पड़ा था।

चूंकि मुस्लिम मतदाताआें की पहली पसंद सपा रही है। यहं से सपा ने गुलाम मौहम्मद को चौधरी अजित सिंह के सामने प्रत्याशी बनाया था। गुलाम मौहम्मद उप विजेता बनकर उभरे थे। यह कारण जाट व मुस्लिम मतो का बिखराव ही था। 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा व रालोद ने अपने-अपने प्रत्याशी मैदान में उतार दिए थे।

फिर से रालोद को शिकस्त झेलनी पड़ी थी। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव को सपा व रालोद ने मिलकर लड़ा था। लेकिन 2013 के मुजफ्फर नगर दंगों का प्रभाव और भाजपा की चुनावी नीतियों के कारण चौधरी जयंत सिंह को हार का सामना करना पड़ा था। किसान आंदोलन का प्रभाव इस बार गांवों में खूब देखने को मिला। भाजपा से रुष्ट हुए किसान और सपा रालोद के गठबंधन ने मुस्लिम वोटों पर मजबूत पकड़ बनाई।

रालोद का परंपरागत जाट वोट बैंक का कम से कम 70 प्रतिशत एकजुट होना और मुस्लिमों का भाजपा का कट्टर विरोधी होने से रालोद कार्यकर्ताओं में इस बार खुशी की लहर बनी हुई है। हालांकि जाट मुस्लिम समीकरण के आगे गैर जाट व गैर मुस्लिम बिरादरियों की संख्या भी कम नहीं है। चुनावी विशेषज्ञ बताते हैं कि इस बार बड़ौत व छपरौली में भाजपा व रालोद की सीधी टक्कर है।

इस टक्कर में बड़ौत और छपरौली विधानसभा चुनाव में बसपा व कांग्रेस प्रत्याशियों द्वारा हासिल किए गए वोट उलटफेर कर सकते हैं। यदि छपरौली में कांग्रेस व प्रत्याशियों ने लोगों की अपेक्षा से अधिक मत हासिल किए तो यह दोनों पार्टियों के प्रत्याशी रालोद को बड़ा नुकसान करने में सक्षम हो सकते हैं। हालांकि जिस तरह से मतदान दिखा, वह दोनों रालोद पर प्रभावित करने में सक्षम नहीं दिखे। चूंकि बसपा व कांग्रेस ने मुस्लिम प्रत्याशी उतार रखे थे। मुस्लिमों का झुकाव गठबंधन प्रत्याशी की ओर रहा है।

वहीं बड़ौत में भी बसपा व कांग्रेस ही रालोद व भाजपा प्रत्याशियों की जीत-हार का आंकड़ा तैयार कर रहे हैं। यहां कांग्रेस व बसपा प्रत्याशी भाजपा को प्रभावित करते हैं। चूंकि जिस वर्ग से यह प्रत्याशी हैं। यह वर्ग अक्सर भाजपा का समर्थक रहा है। लेकिन मतदान को देखते हुए नहीं लग रहा है कि वह लोगों की अपेक्षा के अनुरूप वोट हासिल कर लेंगे। अब लोग मतदान के आंकड़े जुटाकर गांवों में फोन के माध्यम जानकारी लेकर चुनावी मंथन में जुट रहे हैं।

What’s your Reaction?
+1
0
+1
3
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments