Saturday, June 28, 2025
- Advertisement -

व्यंग्य दूसरों के कंधों पर भरोसा न करो ?

 

WhatsApp Image 2022 03 25 at 12.35.56 PM 4

 


इन दिनों मन लड़ाई के मैदान जैसा हो गया है। चारों ओर बमबारी और फिर उठता सन्नाटा, फिर सन्नाटे को चीरती….खैर। देश और दुनिया का हर बड़ा खबरिया चैनल इन दिनों सिर्फ और सिर्फ युद्ध की खबर दिखा रहा है। कई बार तो खबर देखते हुए लगता है हम जैसे खुद ही वहां पहुंच गए हों। कई जगहें तो बार-बार दिखाई जाने पर अपने गली-मुहल्ले जैसी दिखने लगी हैं। रेलवे स्टेशन, ऊंची ध्वस्त होती इमारतें और सड़क किनारे खड़े सैनिक, कुल मिलाकर केवल युद्ध, विनाश और कराहती मानवता जिसमें वर्चस्व की लड़ाई लड़ता युद्धोन्मादी देश और अपना बचाव करता देश साफ नजर आता है।

एक ओर जहां देश-विदेश के सभी छोटे-बड़े चैनल और छुट्टे-फुट्टे पत्रकार वहां डेरा जमाए बैठे हैं। वहीं अपनी जिम्मेदारी समझते हुए हमारे भी चंडूखाने के दो-चार रिपोर्टर वहां पहुंच गए हैं जो वहां से हमें पल-पल की खबर भेज रहे हैं। राजधानी कीव में सुरंग के अंदर चाय की ठेली पर बैठे यूक्रेनी सज्जन फरमा रहे थे कि जी, हम तो सोचे बैठे थे कि हमें बचाने बड़े मियां आएंगे। हम ताकते रह गए लेकिन बुढ़ऊ सिवाय जबानी जमा खर्च के कुछ किए ही नहीं। हमाय प्रेसिडेंट को पता होता तो इनके चक्कर में न फंसते। तुरंत दूसरे ने हांक लगाई- हम तो सोच रहे थे कि यहां हम पर बम गिरेगा, उधर दुनिया-भर के देश मदद को कूद पड़ेंगे पर ऐसा तो हुआ नहीं, सच्ची, ये तो गठबंधन के नाम पर बड़ा धोखा है

संयुक्त राष्ट्र पहुंचे हमारे एक चंडू ने फरमाया है कि सब देश मिलकर रूस की लानत-मलानत में लगे हैं पर रूस है कि मानता नहीं….। हमारे विशेषज्ञों का मानना है कि मुहल्ले के बच्चों जैसी लड़ाई की तर्ज पर रूस और यूक्र ेन भिड़े पड़े हैं। महाशक्ति का डर ये कि हमारे यहां ज्ञान-गंगा क्या कम बह रही थी जो यूक्रेनी छोरा, दूसरे मुहल्ले वालों से जा लगा गलबहियां करने। हमारे साथ ही उठे-बैठे, खाए-पिए, डोले डाले। क्या जरूरत है इधर-उधर भटकने की। यूक्रेन के अपने तर्क हैं कि क्या सारी दुनिया में अकेले तुम ही हो जिसे पक्का दोस्त बनाया जाए। अरे और भी हो सकते हैं जमाने में तुम्हारे अलावा…।

वैसे इस घमासान के बीच जब पूरी दुनिया आंख गढ़ाए सिर्फ और सिर्फ चैनलों में डूबी हो, कुछ भाई लोगों का बाबा जी को सुझाव है कि लगे हाथ कुछ और भी निपटा ही दो। लालकिले पर टंगा तिरंगा कहीं और भी फहरना चाहता है। पर कहाँ….रजिया ने हमसे पूछा। हम बोले- अरे वहीं, जिन्होंने घर में दीवारें खींच ली। वहाँ फहराना चाहिए तिरंगा क्योंकि इत्ता तो सारी दुनिया ने देख लिया कि जब कहीं लड़ाई छिड़ती है, बड़े मुहल्ले वाले सिर्फ हाय-तौबा मचाते हैं। मारने वाला ठोक कर चला जाता है, पिटने वाला पिट-पिटाकर खामोश हो जाता है, कुछ दिन बाद फिर राम-राम शुरू। रजिया मुस्कुरा दी। उसकी बुआ की लडकी की सास की भानजी के दूर के मुहल्ले वाली शबनम की फुफेरी बहन की समधिन की लड़की की भांजी भी तो वहीं रहती है। अब इत्ते पास के रिश्तेदार, इतनी दूर थोड़े न रहने चाहिए….।

हमने कहा- रजिया सुन, इस लड़ाई से एक संदेश भी मिलता है कि कभी भी दूसरों के कंधों पर भरोसा न करना चहिएं। अपने यहां जब ज्ञान-गंगा बह रही हो तो दूसरों के मुहल्लों में नहीं झांकना चाहिए। मुसीबत में सिर्फ अपने ही काम आते हैं और रायता बिखरने पर समेटने कोई नहीं आता। इससे पहले कि हम कुछ और ज्ञान की बातें रजिया को बताते, देखा सामने से उसके अब्बू चले आ रहे थे। हम बेताल की तरह एक बार फिर बगीचे से नौ-दो ग्यारह हो गए।

मनोज बिसारिया


janwani address 131

What’s your Reaction?
+1
0
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Diljit Dosanjh: ‘बॉर्डर 2’ की शूटिंग पर मचा बवाल, FWICE ने अमित शाह को लिखा पत्र

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

काम से पहचान

घटना तब की है जब अब्राहम लिंकन अमेरिका के...

सोनम बनाम सनम और तोताराम

शाम को हवाखोरी के इरादे से बाहर निकला ही...
spot_imgspot_img