- डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया और वायरल फीवर का खतरा बढ़ा
जनवाणी ब्यूरो |
सहारनपुर: कोरोना का संक्रमण लगभग खत्म हो गया है। लेकिन, मौसमी बीमारियों का खतरा शुरू हो गया है। खासकर बरसात के इस मौसम में डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया और वायरल फीवर से बचाव जरूरी है।
जिला मलेरिया अधिकारी शिवांका गौड़ ने बताया – इस समय जिले मे डेंगू की रोकथाम के लिए अभियान चलाया जा रहा है। विभाग का सबसे अधिक फोकस ग्रामीण क्षेत्रों में है।
जमा हुए पानी में डेंगू मच्छर न पनपें, इसके लिए दवा डाली जा रही है। शहरी क्षेत्रों में भी अभियान चलाया जा रहा है। उन्होंने बताया -डेंगू एडीज प्रजाति के मच्छरों से फैलता है।
अस्पतालों में बुखार के मरीजों की संख्या बढ़ी
मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डा. संजीव मांगलिक ने बताया -जिला अस्पताल व मेडिकल कालेज में पिछले एक सप्ताह में ओपीडी में बुखार, खांसी जुकाम के मरीजों की संख्या बढ़ी है। ओपीडी में आये लोगों को दवा के साथ लापरवाही न बरतने की सलाह दी जा रही है।
मच्छर काटने के बाद चार से सात दिनों के भीतर कुछ लोगों को तेज या हल्का बुखार, आंखों और सिर में दर्द, जी मिचलाना, पेट में दर्द, त्वचा पर लाल रैशेज और मांसपेशियों में दर्द आदि की शिकायत होती है। गंभीर स्थिति में ब्लड प्लेटलेट्स काउंट तेजी से गिरने लगते हैं, जिसकी वजह से शरीर के किसी भी हिस्से से ब्लीडिंग होने लगती है। ऐसी स्थिति में लापरवाही कतई न बरतें, तुरंत चिकित्सक से परामर्श लें।
सीएमओ ने बताया-जो लोग कोरोना से ठीक हो चुके हैं और उनका इम्यून सिस्टम कमजोर है तो ऐसे लोगों में डेंगू की आशंका अधिक होती है। बच्चों और बुजुर्गों की रोगप्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। इस वजह से उन्हें भी डेंगू हो सकता है। जब ब्लड में प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती है, तो शरीर में पनपने वाला वायरस किडनी, लिवर, लंग्स, हार्ट और ब्रेन जैसे प्रमुख अंगों पर हमला शुरू कर देता है और यह स्थिति खतरनाक साबित होती है।
डेंगू के लिए कोई विशेष दवा उपलब्ध नहीं है। चिकित्सक बुखार और दर्द को नियंत्रित करने के लिए दवा देते हैं। शरीर को हाइड्रेट रखना डेंगू नियंत्रित करने का सबसे कारगर तरीका है।
पानी और जूस जैसे तरल पदार्थों का पर्याप्त मात्रा में सेवन करने से मरीज की सेहत में तेजी से सुधार होता है। ऐसी स्थिति में पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ पानी पीना चाहिए।
हालांकि, गंभीर लक्षणों वाले मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत होती है। अत्यधिक गंभीर मामले में पीड़ित व्यक्ति को इंट्रावेनस फ्लूड या इलेक्ट्रोलाइट सप्लीमेंट दिया जाता है। कुछ मामलों में ब्लड प्रेशर मॉनिटरिंग और प्लेटलेट्स ट्रांस्फ्यूजन द्वारा भी उपचार किया जाता है।