एक युवक ने ध्यान की बड़ी महिमा सुनी। उसने सुना कि ध्यान करने से मस्तिष्क की क्षमता बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। अत: उसने ध्यान की विधि सीखने की ठानी ली। ध्यान की विधि सीखने की इच्छा से वह एक योगीजी के पास पहुंच गया। युवक योगीजी से बोला-गुरूजी मुझे ध्यान की विधि सीखा दो। योगीजी बोले, अच्छा! सिखा देंगे, पहले ये बताओ कि तुम्हे कौनसी चीज सबसे ज्यादा अच्छी लगती है? युवक बोला-मुझे गाय और बन्दर अच्छे लगते है? योगीजी बोले, कोई एक चुन लो? अब वो फंस गया, कभी गाय को सोचता है कभी बंदर को सोचता है। वो सोच ही रहा था, काफी देर हो गई। तब योगीजी बोले, तू गाय का ध्यान करना, बंदर का मत करना। युवक घर गया और रोज ध्यान का अभ्यास करने लगा। लेकिन एक समस्या हो गई, वह जितना बन्दर का ध्यान नहीं करने की कोशिश करता, उतना ही बन्दर उसके ध्यान में आता था। वह परेशान हो गया। गाय तो उसके ध्यान में टिकती नहीं, बन्दर ही बन्दर आता रहता। चार-पांच दिन बाद वह फिर से योगीजी के पास गया और बोला, गुरुजी एक दुविधा है, जितना मैं बंदर का ध्यान नहीं करने की कोशिश करता हूं, उतना ही बन्दर मेरे ध्यान में आता है, गाय तो टिकती ही नहीं। योगीजी मुस्कुराये और बोले, तूने मेरी बात के विधेयात्मक पक्ष को पकड़ने के बजाय नकारात्मक पक्ष को पकड़ लिया। अगर तू गाय का ध्यान करना है, इस बात को पकड़ लेता तो गाय का ध्यान ही करता, लेकिन तूने बन्दर का ध्यान नहीं करना, इस बात को पकड़ लिया। इसलिए केवल बन्दर का ध्यान ही आया। इस छोटी सी कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को हमेशा विधेयात्मक सोचना चाहिए।
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