- आठ कांवड़ियों की हुई सड़क दुर्घटनाओं में मौत, चालीस हुए घायल
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: श्रावण मास की शिवरात्रि पर हरिद्वार से गंगा जल लाकर भोले बाबा का जलाभिषेक करने के लिये इस बार राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और वेस्ट यूपी के डेढ़ करोड़ से ज्यादा लोग घर से तमाम मन्नतों को लेकर निकले थे। इनमें से वो चंद बदनसीब लोग घर से कांवड़ लेकर निकले तो जरूर, लेकिन वापस लौटकर नहीं आये।
उनकी वापसी खुशियों के रंग बिरंगे पन्नों से भरी हुई नहीं बल्कि मौत के चादर में सिमटी हुई थी। इस बार कांवड़ के कठिन और खतरनाक मार्ग ने दिल्ली देहरादून हाईवे पर 14 लोगों की जान ले ली और चालीस से अधिक लोगों को गंभीर रुप से घायल कर दिया। इसके बाद भी आस्था का सैलाब सड़कों पर बदस्तूर जारी रहा।
हरिद्वार की हर की पैड़ी से गंगा जल लाकर शिवालयों पर जलाभिषेक करने का इतिहास काफी पुराना है। जुलाई के महीने में कांवड़ महोत्सव पूरे वेस्ट यूपी को अपने दामन में समेट लेता है। तमाम व्यवसायिक गतिविधियां रुक जाती है और सड़कों पर सिर्फ हर हर महादेव और भोले बाबा की भक्ति में डूबे भजन डीजे के कानफोड़ू आवाज में सुनाई देते हैं। भगवान शिव से अपनी मन्नतें पूरी करवाने के लिये डाक कांवड़ ने इस बार कई परिवारों को सुख के बजाय हमेशा के लिये दुख के सागर में डुबो दिया।
जिनसे निकल पाना उन परिवारों के लिये नामुमकिन होगा। रुड़की रोड पर दो बड़ी कांवड़ के बीच फंसकर युवा सचिन की दर्दनाक मौत हो गई। उसके साथ भगवान से परिवार की समृद्धि के लिये मन्नत लेकर पत्नी मनीषा भी कांवड़ लेकर निकली थी। हरिद्वार से मेरठ तक का सफर पति और पत्नी ने तमाम कष्टों के बावजूद उम्मीदों को लेकर पूरा कर लिया था।
बस उनको रोहिणी दिल्ली जाकर शिवजी का जलाभिषेक करना था। मनीषा के सारे सपने एकबारगी चूर हो गए और मौत की इस अंधेरी रात में वो पति के शव के पास बैठकर बिलखती रही और कोसती रही वक्त के अचानक करवट बदलने पर। मनीषा अकेले नहीं थी जिसको आस्था के सागर में आंसुओं से सामना करना पड़ा हो। मेरठ और खतौली की सीमा पर अपने पापा और दादी के साथ हरिद्वार से आ रही किशोरी को बाइक सवार ने टक्कर मार दी थी जिससे उसकी मौत हो गई थी।
रास्ते भर माधुरी अपने पापा से कहती आ रही थी कि वो शिवरात्रि के बाद अपने लिये स्कूटी लेगी। दादी की आंखों में आंसू थे और कहती हुई गश खाकर गिर पड़ी थी कि पुलिस बनना चाहती थी पोती अब क्या होगा। मेरठ एक्सप्रेस वे तमाम कांवड़ियों के लिये अपशकुन ही साबित हुआ। हरियाणा के पलवल निवासी कल्लू पुत्र राधेश्याम जल लेकर घर जा रहा था। उसके साथ उसका दोस्त अनिल भी था।
कार की टक्कर से कल्लू की बाइक अंडर पास से तीस मीटर नीचे गिरी और कल्लू तमाम सपनों को लेकर दुनिया से चला गया जबकि उसका दोस्त जिंदगी और मौत से जंग लड़ रहा है। सबसे दर्दनाक मौत कांवड़ लेने जा रहे सन्नी की हुई। टाटा 407 पर खड़े होकर सेल्फी लेते समय असंतुलित होकर सड़क पर गिरा और उसकी दर्दनाक मौत हो गई। उसके भाइयों को मौत का पता करीब दस किलोमीटर आगे जाकर पता चला।
पूरा परिवार हरिद्वार की बजाय मोर्चरी पर आ गया और दुखी मन से भाई के शव को लेकर हरियाणा चले गए। अकेले एक्सप्रेस वे पर चालीस के करीब कांवड़िये दुर्घटनाओं में घायल हुए। इनमें 32 कांवड़िये जल लेकर लौट रहे थे जबकि बाकी आठ कांवड़िये जल लेने जा रहे थे।
कांवड़ में हर साल दर्दनाक हादसे होते हैं और परिवार के परिवार अपनों को खोने से जिंदगी भर का दुख मन में रख लेते हैं इसके बावजूद भगवान शिव की भक्ति और सावन के महीने का क्रेज लोगों को घर से कठिन रास्ते पर निकलने के लिये मजबूर कर देता है।