
शाम को हवाखोरी के इरादे से बाहर निकला ही था कि पड़ोस के पार्क की दीवार पर लगे रंगीन पोस्टर को देखकर ठिठक गया। ‘सोनम बनाम सनम’। पोस्टर का ये हेडिंग किसी का भी ध्यान खींचने के लिए पर्याप्त था तो भला हमारा ध्यान इस पर क्यों न जाता। पोस्टर के मजमून को ध्यान से पढ़ा तो समझ आया कि समय की रफ्तार के साथ चलने वाले किसी प्रबुद्ध समाजसेवी ने एक सुरक्षा एजेंसी खोली है। पोस्टर में लिखा था कि यदि आप हनीमून पर बाहर जाने का इरादा रखते हैं तो हमारी सुरक्षा एजेंसी में अपना पंजीकरण कराए, हम आपको भारत के किसी भी शहर में सुरक्षा प्रदान करेंगे।
अभी हम पोस्टर के मंतव्य पर मंथन कर ही रहे थे कि हमारे पड़ोसी तोताराम जी अपने घर से निकले और पोस्टर का विहंगमावलोकन करते हुए बाजार की तरफ बढ़ गए। उनकी कलाई में लिपटा सब्जी का खाली झोला और उनकी तेज रफ्तार मानो आपातकाल की पचासवीं वर्षगांठ मना रहे थे। हालात पर तबसरे का मौका हाथ से जाता देख हमने तोताराम जी को आवाज लगा दी। वे रुके और रिवर्स गियर में तीन कदम पीछे हट कर प्रश्नवाचक मुद्रा में हमें घूरा। हमने पोस्टर की तरफ इशारा किया तो उन्होंने मामले को गंभीरता पूर्वक लिए बगैर जवाब दिया-किसी शोहदे का काम है, गुरु। पता नहीं क्या क्या अनाप शनाप चिपका जाते हैं। हमने कहा-जरा ध्यान से पढ़िए भाई साहब। मामला सुरक्षा का है। तोताराम जी ने पोस्टर पर पैनी नजर डाली और बोले-ओहो, तो ये मामला है, लेकिन यार ये बताओ कि ये सनम का क्या मामला है?
हमने कहा-मामला कुछ नहीं है, एजेंसी का नाम है। जरा ध्यान से पढ़िए, संग्राम सिक्योरिटी सर्विसेज फॉर न्यूली मैरिड मेन। नाम की नव्यता ने तोताराम जी का मन मोह लिया-वाह यार, बढ़िया एक्रोनिम बनाया बंदे ने, यस यस यस यन यम यम-सनम, वाह। वैसे भी आइडिया बढ़िया है, आजकल नए नए दूल्हे हनीमून के बहाने हचाहच मार डाले जा रहे हैं, सुरक्षा रहेगी तो जान बचेगी। पर यार ये बताओ, इतने दूर दूर के शहरों में ये बंदा कहां कहां मारा मारा फिरेगा दूल्हा दुल्हन के पीछे ? इतना खर्चा कौन देगा इसको? सरकार को तो फिकर है नहीं किसी की सुरक्षा की।
हम बोले-मारे मारे फिरने की जरूरत नहीं है, आजकल तो फ्रेंचाइजी चलता है। लोग एक जगह बैठकर सोशल मीडिया और इंटरनेट के सहारे गठजोड़ करके दुनिया भर में बिजनेस चला रहे हैं। और रही बात खर्चे की तो जिसको जान की परवाह होगी वो खर्च भी करेगा। सरकार की भी समस्या है, किस किस की सुरक्षा करे, कहां से लाए इतने सुरक्षाकर्मी। तोताराम जी ने अपना मुंह ऊपर उठाया ही था कि उनकी नजर अपने घर के बरामदे में प्रकट हो चुकी मिसेज तोताराम पर पड़ी गई और उन्हें अपनी कलाई में लिपटा सब्जी का झोला और 1975 के आपातकाल के हालात, दोनों एक साथ याद आ गए। एक नजर फिर से पोस्टर पर डालकर वे बड़बड़ाते हुए आगे बढ़ लिए-हमारे जमाने के लोग तो अपने घर में सुरक्षित नहीं हैं, क्या बोलें, कुत्ता बना दिया…
