भारतीय संस्कृति में एक ओर ‘सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वे सन्तु निरामया:, सर्वे भद्राणि पश्यंतु मां कश्चिद् दु:खभाग भवेत्’ कहकर समस्त जीव जगत् के कल्याण की बात कही गई है, वहीं दूसरी ओर ‘…वसुधैव कुटुम्बकम’ कहकर इस संपूर्ण वसुधा को ही एक परिवार के रूप में स्वीकार किया गया है। तात्पर्य यह कि हमारी संस्कृति ने ‘एकल’ की जगह ‘सकल’ को हमारे जीवन-यज्ञ में स्थापित करने का कार्य किया। हमारे पूर्वजों ने हमें ‘व्यष्टि’ के स्थान पर ‘समष्टि’ को महत्व और प्राथमिकता देने की बात सिखाई। मनुष्यता का ऐसा औदात्य भाव, संस्कारों की ऐसी तरलता, सरलता, ऐसी आध्यात्मिक गहराईऔर ऐसी सांस्कृतिक ऊंचाई दुनिया के किसी भी अन्य समाज, संस्कृति या धर्म में नहीं मिलती, जबकि हमारी संस्कृति में ये हमारी धमनियों में प्रवाहित होने वाले लहू तथा श्वांसों केसाथ हमारी देह में प्रविष्ट करने वाली प्राण-धारा के समान है। लेकिन क्या कारण है कि समस्त जीव जगत के कल्याण की चिंता करने वाला समाज आज स्वयं ही इतना लापरवाह, लाचार और गैर जिम्मेदार हो गया कि उसके इर्द-गिर्द के भय, भूख, तड़प, पीड़ा, संकट और समाधान से उसका कोई वास्ता ही नहीं रहा।
आखिर यह कैसे संभव हुआ कि स्वयं से पहले दूसरों को भोजन कराने वाले समाज मेंही करोड़ों जनों को आज भी दो जून की रोटी मिलना संभव नहीं हो पा रहा है।‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023’ के अनुसार 28.7 अंक के साथ भारत में भूखका स्तर गंभीर है। वहीं, महज उंगलियों पर गिने जाने योग्य कुछ लोग ही देश की अधिकांश संपदा के स्वामी बने बैठे हैं। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की ओर से ‘भोजन’ से जुड़ी दो बेहद महत्वपूर्ण रपटें दुनिया के पटल पर रखी गर्इं। इनमें एक भोजन की बर्बादी से संबद्ध है, जबकि दूसरी रपट भोजन के अभाव यानी भुखमरी से जुड़ी है। वैसे देखा जाए तो भोजन के अभाव के कई कारण हो सकते हैं, किंतु भोजन की बर्बादी इसकी मुख्य वजह होती है। यदि भोजन की बर्बादी पूर्णत: रोक दी जाए तो इस समस्या की भयावहता कम हो सकती है। बहरहाल, अप्रैल के अंत में जारी संयुक्त राष्ट्र की ‘ग्लोबल रिपोर्ट आॅन फूड क्राइसिस’ में बताया गया है कि विश्व भर के कुल 59 देशों के लगभग 28.2 करोड़ लोग भूख से तड़पने के लिए मजबूर हैं। रपट के अनुसार युद्धग्रस्त गाजा पट्टी और सूडान में बिगड़े खाद्य सुरक्षा के हालात के कारण 2022 में 2.4 करोड़ से भी अधिक लोगों को खाद्य सामग्री के अभाव में भूखे रहना पड़ा। बता दें कि भोजन के अभाव को लेकर रपट जारी करने की शुरूआत संयुक्त राष्ट्रज् ने 2016 में की थी।
गौर करें तो पहली रपट की तुलना में हालिया रपट में भूखे लोगों की संख्या में चार गुणा की वृद्धि हो चुकी है। साथ ही खाद्य सामग्री के अभाव में भूख से तड़पने वालों की यह संख्या अब तक की सर्वाधिक भी है। हालांकि भूखे रहने का कारण गरीबी और बेरोजगारी भी हो सकते हैं, जो भोजन के अभाव और भूख से संबद्ध भारतीय परिदृश्य में बिल्कुल सार्थक और सटीक प्रतीत होती है। भुखमरी की समस्या का विश्लेषण करते हुए विश्व भर के विशेषज्ञों ने भूख को समझने के लिए एक पैमाना निर्धारित किया है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन के अर्थशास्त्री मैक्सिमो टोरेरो के अनुसार इसके कुल पांच चरण हैं। इनमें भूख से सर्वाधिक पीड़ित लोगों को पांचवें चरण में रखा गया है, जिसके अंतर्गत भारत समेत पांच देशों के 705000 लोग शामिल किए गए हैं। इनमें से 80 प्रतिशत यानी 577000 लोग तो अकेले युद्धग्रस्त गाजा पट्टी में ही हैं। बताना जरूरी है कि ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023’ के अनुसार भुखमरी के शिकार 125 देशों की सूची में भारत को 111वां स्थान प्राप्त हुआ है। जरा सोचिए कि 21वीं सदी में पहुंचकर भी हमारे देश की पहचान भुखमरी से पीड़ित लोगों वाले देश के रूप में जगजाहिर हो रही है। भोजन की बर्बादी की बात करें तो मार्च के अंत में जारी संयुक्त राष्ट्र की अधीनस्थ इकाई ‘संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम’ (यूएनईपी) की ‘फूड वेस्ट इंडेक्स 2024’ की रपट में कहा गया है कि रोजाना दुनिया में जितने लोग भूखे सो जाते हैं, उससे कहीं ज्यादा अनाज बर्बाद हो जाता है, जिसमें सबसे बड़ी भूमिका होटल और रेस्तरां वाले निभाते हैं। रपट के अनुसार साल 2022 में वैश्विक स्तर पर कुल अनाज उत्पादन का 19 प्रतिशत अनाज यानी लगभग 1.05 अरब टन अनाज बर्बाद हो गया था। रपट के अनुसार खेत से थाली तक पहुंचने में 13 प्रतिशत अनाज बर्बाद हो जाता है।
बता दें कि संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की खाद्य बर्बादी सूचकांक रपट वर्ष 2030 तक खाद्य बर्बादी को आधा करने के लिए देशों की प्रगति की निगरानी करती है। इस रपट में कहा गया है कि यदि अनाज की बर्बादी को रोक लिया जाए तो दुनिया से भुखमरी समाप्त की जा सकती है, क्योंकि अभी दुनिया में रोजाना 78.3 करोड़ लोग गंभीर भूख का सामना करते हैं, जबकि एक अरब लोगों का खाना बर्बाद हो जाता है। शोधकर्ताओं के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति सालाना लगभग 79 किलोग्राम भोजन बर्बाद करता है, जो दुनिया भर में प्रतिदिन बर्बाद होने वाले कम से कम एक अरब भोजन थाली के बराबर है। देखा जाए तो भोजन की बर्बादी एक वैश्विक त्रासदी है, जिसे रोका जाना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह समस्या न केवल वैश्विक अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डालती है, बल्कि जलवायु परिवर्तन तथा जैव विविधता के नुकसान के लिए भी जिम्मेदार है।