12 फरवरी 1809 को एक निर्धन परिवार में जन्म लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के विख्यात वकील, राजनेता और 16 वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की जीवन-यात्रा को यदि गौर से देखें तो दुनिया का एक सत्य जो शिद्दत के साथ हमारे सामने आ खड़ा होता है वो यह है कि मानव जीवन आसान नहीं है और यह अनिश्चितताओं और कठिन परिस्थितियों से भरा होता है। विश्व इतिहास में महापुरुषों के जीवन के गहन अध्ययन से भी हमें इस निष्कर्ष पर पहुंचते देर नहीं लगती है कि अब्राहम लिंकन ने अपने जीवन में धैर्य और साहस की दृढ़ता से जितनी मुसीबतों का सामना किया, उतना किसी और ने नहीं किया है। एक के बाद एक कठिन परिस्थितियों के बावजूद उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी और संघर्ष पथ पर बिना रुके चलते रहे। दुख की घड़ी में इंसान धैर्यवान नहीं रह पाता है और उसका साहस टूट जाता है लेकिन लिंकन हर मुसीबत के साथ अपने इरादे में फौलाद जैसे मजबूत होते गए और अंतत: सफलता के शीर्ष पर जा पहुंचे।
कहा जाता है कि अब्राहम लिंकन कुल मिलाकर महज एक वर्ष की ही स्कूली शिक्षा प्राप्त कर पाए थे। वे पढ़ने के शौकीन थे और सेल्फ-स्टडी के माध्यम से ही उन्होंने अपने जीवन में संपूर्ण शिक्षा प्राप्त किया था। जब वे महज नौ वर्ष के थे तो उसी समय उनकी मां का देहांत हो गया था। बाद के वर्षों में वे अपने व्यापार में असफल रहे, राज्य के लेजिस्लेचर का चुनाव हारे, अपनी नौकरी गंवा गए, लॉ स्कूल में दाखिला लेने में असफल रहे, अपने किसी दोस्त से बिजनस स्टार्ट करने के लिए पैसे उधार लिए किंतु दीवाला हो गए, पूरी तरह से नर्वस ब्रेकडाउन के शिकार हुए, कांग्रेस का चुनाव हार गए, सीनेट का चुनाव हार गए, उपराष्ट्रपति का चुनाव हार गए, सीनेट का चुनाव दुबारा हार गए और अंत में 1860 के राष्ट्रपति चुनाव में सफलता के बाद वे संयुक्त राज्य अमेरिका के 16वें प्रेसीडेंट के रूप में कामयाबी हासिल कर पाने में कामयाब हुए।
सच पूछिए तो एक निर्धन परिवार से व्हाइट हाउस तक के अब्राहम लिंकन के जीवन-सफर का यह साहसिक संघर्ष न तो किसी फिल्मी कहानी का हिस्सा है और न ही किसी लेखक की मन की कल्पना। लिंकन का अपने जीवन की विभिन्न कठिन परिस्थितियों से साहस के साथ लड़ते हुए जीवन में कामयाबी पाने की निरंतर कोशिशों में एक संदेश बार-बार उभर उठता है कि जीवन में सफलता की राहें आसान नहीं होती हैं। जो व्यक्ति अपने जीवन के मुसीबतों से बिना हिम्मत हारे हुए आगे बढ़ता जाता है वही अंत में अपनी मंजिल तक पहुँचने में सफल हो पाता है। लेकिन बिना साहस खोए जीवन की कठिन परिस्थितियों के बवंडर से जूझते हुए आगे बढ़ते रहने की बातें पढ़ने झ्र सुनने मे जितनी आसान प्रतीत होती है, व्यावहारिक जीवन में ऐसा करना उतना ही कठिन होता है।
पूर्व अमेरिकी प्रोफेशनल बॉक्सर मुहम्मद अली ने एक बार कहा था, मुझे अपने बॉक्सिंग ट्रेनिंग के प्रत्येक मिनट से नफरत होती थी, लेकिन मैंने कभी हिम्मत नहीं हारी, धैर्य नहीं खोया। मैं हमेशा खुद को यही समझाता था-अभी दर्द झेल लो बाद में शेष जीवन तो फिर किसी चैम्पियन की तरह बिताने के लिए मिलेगा। आशय यही है कि जीवन में लक्ष्य जितना बड़ा होता है उसे साकार करने के लिए मेहनत और संघर्ष भी उतनी ही कठिन करनी पड़ती है। कहते हैं कि जो अच्छा होता है वह आसान नहीं होता है और जो आसान होता है वह अच्छा नहीं होता है। अर्थात सपनों के छोटे-बड़े होने पर उन्हें साकार करने के लिए जरूरी मेहनत और प्रयास भी छोटा और बड़ा होता है। माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने के सपने को साकार करने के लिए कोशिशों और संघर्ष के पहाड़ की ऊंचाई कभी भी छोटी और आसान नहीं हो सकती है।
26 मील 385 गज की लंबी दूरी वाले मैराथन रेस में सफलता के लिए आवश्यक मेहनत और संघर्ष के बारे में अंदाजा लगाना कोई कठिन कार्य नहीं है। प्रख्यात बॉडीबिल्डर, अभिनेता और बिजनेसमैन अर्नोल्ड श्वार्ज़नेगर का मानना था कि असली ताकत प्रतियोगिताओं को जीतने से प्राप्त नहीं होती है, उन प्रतियोगिताओं को जीतने के लिए आपके द्वारा किए गए संघर्ष और कठिन मेहनत से ही आप में साहस और ताकत का विकास होता है। तो प्रश्न यह उठता है कि आखिर हम कामयाबी के लिए संघर्ष क्यों नहीं कर पाते हैं? आखिर मुसीबतों को देखकर हमारे पांव आगे बढ़ने से क्यों रुक जाते हैं?
सच पूछिए तो जब भी हम किसी सफल व्यक्ति के बारे में पत्र-पत्रिकाओं में पढ़ते हैं, टेलीविजन पर उनको देखते हैं या उनसे हमारी मुलाकात होती है तो हम उनकी उपलब्धियों से बड़ी आसानी से आकर्षित हो जाते हैं। हम उन्हें अपने जीवन का रोल मॉडल बना लेते हैं। बस हम उनके जैसा ही बनने का सपना देखने लगते हैं। लेकिन इस सम्मोहन के साथ जो सबसे अनिवार्य चीज अक्सर पीछे छूट जाता है और हम देख नहीं पाते हैं वो है उस शख्स के उस सफलता के शीर्ष पर पहुंचने के पीछे के त्याग, समर्पण, संघर्ष और मेहनत की कहानी और यही कारण है कि हमें कामयाबी इतनी आसान प्रतीत होती है।
महापुरुषों की आत्मकथाओं को पढ़ने के बाद हम इस नतीजे पर पहुंच पाते हैं कि उनके मंजिल की राहें कभी भी आसान नहीं थीं। उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत एक आम आदमी सरीखा ही किया था, किंतु सफलता की राहों में मिलने वाली विफलताओं के बावजूद वे कठिन मेहनत करते रहे, परेशानियों और चुनौतियों से जूझते रहे। निरंतर प्रयास और कठिन परिश्रम के फलस्वरूप ही वे अपने सपने को साकार कर पाए जिसकी चमक से हम सभी अभिभूत हो जाते हैं। किन्तु सफलता के चमकते कलश कंगूरों के बुनियाद में छुपे संघर्ष और त्याग हमारी नजरों से छुपे रह जाते हैं।
प्रतिकूल परिस्थितियों में भी खुद को मानसिक रूप से संतुलित रखकर जो जीवन पथ पर आगे बढ़ते जाता है, वही अपने सपने को साकार कर पाता है और अंतत: बेशुमार उपलबधियों के शिखर पर पहुंच पाने में सफल हो पाता है। जीवन में संघर्ष और असफलताओं से बिना भयभीत हुए निरंतर आगे बढ़ते रहना ही सफलता का रहस्य है। हकीकत तो यही है कि सफल होने की कोशिश में असफलता और संघर्ष की स्थिति महज सफलता के पूर्व की आवश्यक ट्रेनिंग सरीखा होता है और यही कारण है कि जो बिना संघर्ष किए जीवन के मुकाम पर पहुंचने का सपना देखता है वह इस अनिवार्य स्किल से महरूम रहता है और कामयाबी हासिल नहीं कर पाता है। सोने की असली परीक्षा आग में तपकर होती है। हीरे में चमक इसके घिसने के बाद प्राप्त होती है। मानव भी जब संघर्ष करता है तो वह अंतत: हीरे की तरह चमक उठता है।
-श्रीप्रकाश शर्मा