Monday, July 1, 2024
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कश्मीर में टारगेट किलिंग

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YOGESH KUMAR SAINI

एक बार फिर आतंकवादियों ने जम्मू-कश्मीर में खूनी खेल शुरू कर दिया। इस बार आतंकी दहशत फैलाने के लिए सुरक्षा बलों और प्रवासी मजदूरों को निशाना बना रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार दो अक्टूबर से लेकर अब तक तीन बडे हमले के दौरान सात लोगों व नौ जवानों की जान चली गई।

आतंकियों ने संदेश दिया है कि ‘हमारे निशाने पर केवल गैर-कश्मीरी, गैर मुस्लिम, कश्मीरी पंडित, प्रवासी मजदूर और सुरक्षा बल हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यहां रह रहे मुसलमानों को हम कोई नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।’

बीते शनिवार बिहार के रहने वाले अरविंद कुमार साह को गोली मार दी। अरविंद बीते कई वर्षों से गोलगप्पे बेचते थे। आतंकियों ने पहले अरविंद से उनका नाम पूछा उसके बाद तुरंत गोली मार दी। हालांकि दो अक्टूबर से अब तक सुरक्षाबलों ने 13 आतंकियों को भी मौत के घाट उतार दिया।

सुरक्षाबलों को बड़ी कामयाबी मिली जिसमें पुलवामा के पंपोर इलाके में लश्कर कमांडर उमर मुश्ताक खांडे व दो आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। इस वर्ष सुरक्षा बलों एक सूची जारी की थी जिसमें खांडे का नाम शीर्ष दस आतंकवादियों में शामिल था।

मीडिया से मुखातिब होते हुए एनएसजी के महानिदेशक एमए गणपति ने बताया कि संघीय आतंकवाद रोधी और हाइजैक रोधी कमांडो बल अब आतंकवाद रोधी अपनी क्षमता में और इजाफा कर रहा है।

बल नई सुरक्षा चुनौतियों से निपटने की तैयारियों में जुट गया है। सुरक्षा बलों की संख्या से आतंकवाद पर नियंत्रण पाया जा सकेगा। दरअसल धारा 370 हटने के बाद ऐसी स्थिति पहली बार बनी है।

दरअसल जम्मू-कश्मीर से लगातार अच्छी खबरें लगी थीं, पाकिस्तान को बर्दाश्त नहीं हो रही थी। दरअसल कुछ समय पहले भारतीय सेना ने बताया कि अब आतंकियों को कश्मीर के लोगों को समर्थन नहीं मिल रहा है।

पिछले कुछ समय से यहां के युवाओं ने आतंकी संगठनों को ज्वाइन नहीं किया, बल्कि इसके विपरीत सेना में भर्ती होने के लिए अपना पंजीकरण करा रहे हैं। इस आधार पर यह तय हो जाता है कि यहां के नागरिक अब शांति व खुशहाली से जीवन जीना चाहते हैं।

सेना के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल ने बताया था कि आतंकवादी इन इलाकों में सिर्फ सनसनी बनाए रखना चाहते हैं। हमेशा से पाकिस्तान का गुणगान करने वाले अलगाववादी नेता इस तरह का प्रोपेगेंडा चलाते हैं, जिससे यहां वो आतंकवाद के नाम पर अपनी रोजी-रोटी चलाते रहें लेकिन स्थानीय लोगों ने समर्थन देना बंद कर दिया, जिससे आतंकवाद की कमर टूट गई थी।

इस वर्ष सेना में अगामी भर्ती के लिए दस हजार युवाओं ने रजिस्ट्रेशन कराया है। पिछले वर्ष यह पांच हजार के लगभग था और उससे पहले बहुत ही कम होता था।

लगातार बढ़ रहे आंकड़ों से सबसे ज्यादा झटका उनको लगा है जो यहां लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ करके जहर की खेती कर रहे थे। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल से ही यह बदलाव की ब्यार बड़े स्तर पर देखने का मिल रही थी।

विगत दिनों धारा 370 हटी तो यहां के लोगों ने और ज्यादा आजादी महसूस की, जिससे इनको इस बात की प्रमाणिकता मिल गई। अब यहां के हाल बिल्कुल गए बदल गए, जिससे आतंकियों की कमर पूरी तरह टूट गई।

इस बात की जानकारी बहुत ही कम लोगों के पास होगी कि अलगावादियों की सुरक्षा व अन्य जीवन प्रक्रिया पर करोड़ों रुपया खर्च होता था। 2016 मे केंद्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट मे बताया गया था कि 2009 से 2014 तक अलगाववादियों को सुरक्षित स्थलों पर ठहरवाने, देश-विदेश की यात्राएं करवाने व स्वास्थय सेवाएं उपलब्ध कराने के अलावा भी कई प्रकार की सुविधाएं भी प्रदान की जाती थीं, जिसका 5 साल में 560 करोड़ रुपये का खर्चा आया था।

इस हिसाब से सालाना 112 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इतने बजट से किसी अन्य बडी योजना को अंजाम दिया जा सकता था, जिससे देश का भला होता। कांग्रेस सरकार में इतनी सुविधाएं मिलती थीं, मानों यह देश कोई मुख्य सिपलेसहार हों।

उनकी निजी सुरक्षा मे लगभग 500 व उनके आवास पर 1000 जवान तैनात रहते थे। जम्मू-कश्मीर के 22 जिलों में 670 अलगाववादियों को विशेष सुरक्षा प्रदान की गई थी। जबकि इन नेताओं का काम सिर्फ पाकिस्तान पक्ष की बातें करना या उनकी चमचागिरी करना था।

बंटवारे से लेकर अब तक हिंदुस्तान इस दुर्भाग्य से जूझ रहा था, लेकिन जब से मोदी सरकार ऐसी घटनाओं को लेकर एक्शन में आई है, तब से सब पूरी तरह बदल गया। जम्मू-कश्मीर में जवान होते ही लड़कियों को बुर्का और लड़कों के हाथ में पत्थर पकड़ा दिया जाता था।

कुछ युवाओं को धर्म के नाम पर भड़का कर उनको आतंकी बना दिया जाता था तो कुछ इन लोगों के डर की वजह से इनके आगे घुटने टेक देते थे। यदि वो विरोध भी करते थे तो शासन-प्रशासन कुछ भी नही कर पाता था।

दिहाड़ी वाले पत्थरबाजों को कतई भी एहसास नहीं था कि जितने भी अलगाववादी व हुर्रियत नेता हैं, वो आलीशान कोठियों मे रहते हैं व इनके बच्चे देश-विदेश की सबसे महंगी व अच्छी जगहों पर पढ़ते हैं।

लेकिन अब यहां की जनता को सारा खेल समझ आ चुका । धर्म के नाम पर कट्टरता फैलाने का खेल अब नही चल रहा। हर चीज की अति बुरी होती है और उसका अंत भी होता है और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को लेकर ऐसा ही हो रहा है।

आज हर कोई बदलती दुनिया में बदलाव चाहता है। स्पष्ट है कि जो समय के साथ नहीं चलता वो पीछे रह जाता है। पिछली सरकारों ने सिस्टम को ऐसा बनाया हुआ था कि जम्मू-कश्मीर की जनता उस मानसिकता से बाहर ही नहीं आ रही थी।

यहां की आवाम की सोच को कभी उभरने का मौका ही नहीं दिया, चूंकि नेताओं के साथ दुनिया ने भी यह मान लिया था कि यहां से धारा 370 व 35ए कभी नहीं हट सकती।

जिस वजह से यहां की आवाम में इतनी दहशत थी कि आतंकी के सामने झुकने के सिवा कोई अन्य विकल्प नहीं है।

जब भी कोई बात होती थी तो कहा जाता था कि यहां की जनता नहीं चाहती कि वो हिंदुस्तान का हिस्सा बने, वो पाकिस्तान जाना चाहती है, लेकिन मोदी सरकार के शिकंजे और नीतियों के कारण अब तो नेता अपने आप को देशभक्त बताने में लगे हुए हैं।

पिछले कुछ समय से यहां के युवाओं ने कई क्षेत्रों में नाम रोशन किया है। ऐसे बच्चों का केंद्र सरकार भी भरपूर सहयोग कर रही है।

दरअसल आतंकवादियों ने कभी यह सोचा भी नहीं था कि जम्मू-कश्मीर में उनकी दुकानदारी एकदम बंद हो जाएगी, लेकिन बीते दिनों में जो भी हो रहा है, उस पर केंद्र सरकार को एक बड़े एक्शन आफ प्लॉन की जरूरत है, क्योंकि अब लोगों को जम्मू-कश्मीर की बदली तस्वीर भाने लगी है।


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